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सवर्ण समाज ने दिखाई ताकत, पीएम मोदी को दी नसीहत

संसद के दोनों सदन में बिल पास हो जाने के बाद भड़के सवर्ण, सड़क पर मार्च निकाल कर किया प्रदर्शन

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After the passage of SC-ST Bill, the upper caste society on Protest

सवर्ण समाज ने दिखाई ताकत, पीएम मोदी को दी नसीहत

कानपुर। संसद में एससी-एसटी संसोधन बिल पास हो जाने के बाद जहां दलित समाज खुश नजर आया और बंद नहीं करने का ऐलान कर दिया तो वहीं सवर्ण समाज इसके खिलाफ सड़क पर उतर आया। गुरूवार को सैकड़ों की संख्या में लोगों ने बिल के विरोध में मार्च निकाला और केंद्र सरकार से इसे तत्काल वापस लेने की मांग की। सवर्ण समाज के अध्यक्ष धमेंद्र तिवारी ने कहा कि सभी राजनीतिक दल वोटबैंक की सियासत कर रहे हैं। नया कानून बन जाने स ेअब बेगुनाहों के जेल भेजा जाएगा। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करते हैं कि जाति-धर्म के बजाए सबका-साथ, सबका न्याय करें। यदि वो ऐसा नहीं करते तो समाज के लोग लोकसभा चुनाव में अपने वोट के जरिए इसका माकूल जवाब देंगे।

क्या है पूरा मामला, क्यों खफा
एससी-एसटी (अत्याचार रोधी) संशोधन बिल 2018 लोकसभा और राज्यसभा में पास कर दिया गया। जिसमें अब एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 को पूर्व की तरह लागू हो गया। जिसके कारण दलित समाज ने अपना भारत बंद वापस कर लिया तो सवर्ण समाज इसके खिलाफ सड़क पर उतर गया। कानपुर के कई इलाकों में सवर्णो ने रैली निकाल कर बिल में इस एक्ट के हटाए जाने की मांग की। धमेंद्र तिवारी ने बताया कि इस धारा के चलते आज भी देश की जेलों में सैकड़ों लोग बेगुनाह होने के बावजूद सजा भुगत रहे हैं। अब एससी-एसटी समाज के कुछ लोग निजी दुश्मनी भुनाने के नाम पर इस कानून का दुरूपयोग कर सवर्णो को उत्पीड़न कर रहे हैं।

इसके चलते चर्चा में आया बिल
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च के अपने फैसले में इस कानून के कई प्रावधानों में बदलाव करते हुए इस कानून के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं फैसले में यह भी कहा गया था कि इस कानून केतहत एफआईआर डीएसपी स्तर के अधिकारी की जांच केबाद दर्ज की जा सकेगी और गिरफ्तारी एसएसपी स्तर के अधिकारी के आदेश के बाद ही की जा सकेगी। शीर्ष अदालत ने सरकारी कर्मचारियों को गिरफ्तार करने से पहले उससे जुड़े विभाग के शीर्ष अधिकारी की अनुमति भी अनिवार्य कर दी थी। इसके बाद सरकार को दलित संगठनों केसाथ ही अपने सहयोगी दलों और पार्टी के एससी-एसटी सांसदों के भी विरोध का सामना करना पड़ा था। समाज के लोगों ने बंद व जाम लगा कर प्रदर्शन किया। जिसके बाद केंद्र सरकार को आनन-फानन में संसद के जरिए कानून को बनाए रखने के लिए बिल पास करना पड़ा।

सवर्ण को करना होगा विचार
सवर्ण समाज के नेता राहुल शुक्ला ने कहा कि इतिहास गवाह है कि आजादी के सत्तर साल बीत जाने के बाद किसी भी सरकार ने सवर्ण के हित के लिए कभी आवाज नहीं उठाई। आज भी देश लाखों की संख्या में गरीब सवर्ण मजदूरी और साइकिल का पंचर जोड़कर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करते हैं। पर कभी आरक्षण व अन्य सरकारी सेवाओं में लाभ पाने के लिए आवाज नहीं उठाई। लेकिन राजनीतिक दलों ने सवर्ण समाज को हर वक्त ठोकर मारी। आज के वक्त दलित समाज के व्यक्ति को पचास फीसदी अंक लाने पर सरकारी नौकरी मिल जाती है, चहीं 95 फीसदी अंक लाने के बाद सवर्ण युवा को रिक्शा चलाना पड़ रहा है। हमें एसएसी-एसएटी को मिले आरक्षण से कोई लेना-देना नहीं। पर जो कानून आज मोदी सरकार ने पास किया है, उससे अब सवर्ण को बीजेपी के बारे में वोट देने के लिए विचार करना पड़गा।

मायावती, अखिलेश और राहुल दोषी
सवर्ण समाज के नेता राहुल शुक्ला ने कहा कि इस बिल के पीछे मायावती, अखिलेश यादव और राहुल गांधी की पार्टी सियासत कर रही है। वो दलित वोटबैंक को पक्का करने के लिए पहले संसद में हंगामा किया, फिर सड़क पर लेकर आए। जिसके चलते मोदी सरकार को लगा कि लोकसभा चुनाव के वक्त दलित वोटर्स कहीं नाराज न हो जाए। इसी के चलते आनन-फानन में दोनों सदनों की बैठक बुला बिल पास करा लिया गया। सवर्ण समाज अब सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजपी के अलावा पांचवे विकल्प की तलाश करेगा। लोकसभा चुनाव में हम उन्हीं का समर्थन और वोट करेंगे जो हमारी बात करेगा। अगर कोई राजनीतिक दल हमारे पक्ष में नही आता तो सवर्ण समाज अपना वोट निर्दलीय को देगा।