कानपुर

इन दो चाणक्यों के चलते सरपट दौड़ रहा हाथी, पीएम मोदी को सीधी टक्कर दे रहीं मायावती

2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ा धमाल मचाने को तैयार मायावती...

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Jul 27, 2018
इन दो चाणक्यों के चलते सरपट दौड़ रहा हाथी, पीएम मोदी को सीधी टक्कर दे रहीं मायावती

कानपुर. बसपा प्रमुख मायावती की गिनती उन नेताओं में होती है, जो हार के बाद जीत के लिए अपनी सियासी जमीन तैयार करने के लिए परदे के पीछे जुट जाती हैं। 2012 से लेकर 2017 तक जितने भी चुनाव हुए, उनमें बसपा की करारी हार हुई, पर मायावती के वोटों में गिरावट नहीं आई और इसी के चलते वो देश की राजनीति में आज भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा देश की सबसे पुरानी व बड़ी पार्टी को सरेंडर करने पर मजूबर तो मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश को त्यागी बना दिया। लेकिन इसके पीछे सिर्फ अकेले मायावती का हाथ नहीं, बल्कि उनके दो सबसे भरोसेमंद सिपहसलाहकारों का अहम योगदान है। जिनमें राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा और डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ ने विधानसभा हार के बाद पार्टी को खड़ा करने के लिए जबरदस्त रणनीति बनाई। पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी को बाहर करवाया और फिर गोरखपुर, फूलपुर में सपा को समर्थन देकर अपनी जमीनी हकीकत परखी। परिणाम यह रहा कि सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद के गढ़ में कमल मुरझा गया।

2007 में निभाया था अहम किरदार

बसपा की नींव रखने के दौरान मायातवी सर्वणों समाज के लिए कई जुमलों का इस्तेमाल अपनी आमसभाओं में किया करती थीं। उस वक्त बसपा के साथ स्वामी प्रसाद मौर्य, दद्दू प्रसाद, इंद्रजीत सरोज, नसीमुद्दीन सिद्दी की तूती बोला करती थी। 2002 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह के साथ गठबंधन कर सीएम बनने के बाद मायावती पॉपरफुल महिला के रूप में अपने को स्थापित किया और सतीश चंद्र मिश्रा को बड़े ओहदे पर बैठाया।2007 का विधानसभा चुनाव राज्यसभा सांसद सतीश मिश्रा की आगवाई में लड़ा गया। सौ से ज्यादा ब्राम्हण व सवर्ण समाज के लोगों को टिकट दिए गए और परिणाम यह रहा कि पहली बार बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनीं। मायावती की सरकार के दौरान सतीश चंद्र मिश्रा की ही चलती थी और बसपा प्रमुख उनसे बिना पूछे बड़े फैसले नहीं करती थीं।

फिर सिद्दीकी का चला राज

मायावती की सरकार में नसीमुद्दीन मंत्री बनाए गए। इसी दौरान सिद्दकी की गिनती मायावती के करीबी नेताओं में होने लगी। हालात इस कदर हो गए कि 2012 विधानसभा चुनाव से पहले मायावती सिर्फ सिद्दकी की सुनती और उनके हर फैसले पर अपनी मुहर लगा देतीं। वहीं राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा और डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ पार्टी से कुछ हद तक साइडलाइन कर दिए गए। सिद्दकी के कहने पर मायातवी ने 80 से ज्यादा जीते विधायकों के टिकट काट उनके पंसदीदा उम्मीदवारों को हाथी का सिंबल देकर चुनाव के मैदान में उतार दिया। अधिकतर विधायकों ने पार्टी छोड़ दी और बागी उम्मीदवार बन कर हाथी को ही हरा दिया। चुनाव में अखिलेश की साइकिल दौड़ी और वो सीएम बनें। पूरे पांच साल तक सिद्दकी मायावती के करीबी बनें रहे, पर 2017 विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद मायावती ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया।

तब से दिन बहुरे

पूर्व मंत्री नसीमुद्दी सिद्दकी के पार्टी से बाहर होते ही मायावती सिर्फ दो नेताओं पर भरोसा कर उनके निर्णय पर अपनी रजामंदी देने लगी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ को वहां के प्रभार दिया गया और पहली बार बसपा का दक्षिण में खाता खुला और दल का विधायक मंत्री बनाया गया। डॉक्टर अशोक सिद्धार्थ को इसके अलावा राजस्थान के साथ ही मध्यप्रदेश का प्रभार सौंपा गया है और वो इन दो राज्यों में होने वोल विधानसभा सभा चुनाव के लिए जिलों से लेकर बूथ तक में बसपा के कैडर्स की नियुक्ति करने के साथ ही कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए बातचीत कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो कांग्रेस के साथ बसपा का एमपी, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में गठबंधन होगा और मायावती को यहां अच्छी सीटें मिलने की उम्मीद हैं। जानकारों की मानें तो इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने यदि बसपा को उनके मनमुताबिक सीटें नहीं दी तो महागठबंधन में पंजे को जगह नहीं मिलगी।

तो छोड़ दी सरकारी नौकरी

बहुजन समाज पार्टी के राज्यसभा प्रत्याशी डा.अशोक सिद्धार्थ ने फर्रुखाबाद जिले के गुरसहायगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनाती के दौरान मायावती के निर्देश पर वर्ष 2008 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर सक्रिय राजनीति शुरू की और 2009 में विधानपरिषद के सदस्य बन गए। कायमगंज के पटवन गली निवासी डा. सिद्धार्थ ने मेडिकल कालेज झांसी से आर्थोमेट्री डिप्लोमा प्राप्त किया है। सरकारी सेवा के दौरान बामसेफ से जुड़े रहे और इन दिनों वह बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी, चित्रकूट मंडल के साथ ही कानपुर मंडल के जोनल कोआर्डीनेटर के रूप में कार्य कर रहें है। बसपा प्रमुख ने अशोक सिद्धार्थ को कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा पुडुचेरी राज्य का स्टेट कोआर्डिनेटर का दायित्व भी सौंप रखा है। 52 वर्षीय डा.सिद्धार्थ की पत्नी सुनीता वर्ष 2007 से 2012 तक राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।

सतीश चंद्र मिश्रा का सियासी सफर

कानपुर के रहनेवाले सतीश चंद्र मिश्रा स्वर्गीय जस्टिस त्रिवेणी सहाय मिश्रा और शकुंतला मिश्रा के बेटे हैं। इन्होंने 1970 में कानपुर के क्राइस्ट चर्च इंटरकॉलेज से 12वीं पास की। इसके बाद 1973 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री पूरी की। 1976 में कानपुर यूनिवर्सिटी से इन्होंने एलएलबी पूरी की। 1998 से 1999 तक ये यूपी बार काउंसिल के चेयरमैन रहे। दिसंबर 1980 में कल्पना मिश्रा से शादी की। दोनों की चार बेटियां (श्यामली, सुभाश्री, रूपश्री और भाग्यश्री) और एक बेटा (कपिल मिश्रा) है। 2007 में उन्होंने पार्टी की रणनीति चेंज कर उसे विधानसभा चुनावों में जीत दिलाई थी। उन्होंने पार्टी को नया स्लोगन ’हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है’, दिया था, जिससे पार्टी की कायपलट हो गई थी। 2004 से वे बसपा के नेशनल जनरल सेक्रेटरी हैं। इसी साल इनकी एंट्री राज्यसभा में भी हुई। 2016 में इनका चुनाव राज्यसभा में तीसरे टर्म के लिए हुआ।

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Published on:
27 Jul 2018 08:43 am
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