
Bhagat singh
विनोद निगम
कानपुर। शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा। हितैषी जी द्वारा लिखा यह गीत उन दिनों हर क्रांतिकारी के मन में नया जोश भर देता था और वो सिर पर कफन बांधकर जंग-ए-आजादी में हंसते-हसंते कूद पड़ते थे। ऐसे ही एक आजादी के पुरोधा शहीदे आजम भगत सिंह थे, जिन्होंने अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे में झूल गए थे। शहीदे आजम का कानपुर से गहरा नाता था। भगत सिंह 1925 में कानपुर आए और यहां से प्रकाशित होने वाले प्रताप अखबार में नौकरी की। आज भी जिस कुर्सी पर वह बैठकर खबरें लिखते थे, फीलखाना की टूटी - फूटी इमारत में रखी हैं।
फीलखाना की निवासी सर्वेश कुमार पांडेय ने बताया कि प्रताप अखबार तो अब नहीं छपता, लेकिन वह मशीन सहित वह कलम भी बिल्डिंग में सहेज कर रखा गई है। भगत सिंह ढाई साल तक नाम बदल कर प्रताप प्रेस में नौकरी की और यहीं से आजादी की लड़ाई का बिगुल भी बजाया था।
किराए के मकान में गुजारे कई दिन
भगत सिंह फरवरी 1925 को कानपुर आए। वह एक बेहतरीन कलमकार के साथ पंजाबी, हिंदी और अंग्रजी भाषा में निपुण थे। उन्हें प्रताप प्रेस में नौकरी मिल गई। कुछ दिन शहीद ने प्रताप प्रेस की बिल्डिंग में रहे, लेकिन मैनेजमेंट ने उन्हें कमरा लेने के लिए कहा। सर्वेश कुमार पांडेय बताया कि भगत सिंह रामायण बाजार स्थित किराए के मकान में रहे। वो एक आना हर माह किराया देते थे। क्रांतिकारी अख़बार ‘प्रताप’ में नौकरी करते वक्त वे दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगा कवर करने आए। दंगा दरियागंज में हुआ था। वे दिल्ली में सीताराम बाजार की एक धर्मशाला में रहते थे। प्रताप’ में भगत सिंह ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की।
घनी बस्ती में है इमारत
पांडेय ने बताया ‘प्रताप‘ प्रेस के निकट तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया, जिसमें सभी जब्त शुदाक्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थी। भगत सिंह यहां पर बैठक घंटों ही पढ़ते थे। वस्तुतः प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी है कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था तथा फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। इतना ही नहीं भगत सिंह कानपुर के नयागंज के स्कूल में बच्चों को पढ़ाया करते थे, जिसमें अब ताला पड़ा रहता है। कानपुर में ही भगत सिंह ने बम बनाने की कला सीखी और यहीं से बने बम से लहौर कांड को अंजाम दिया गया था।
विद्यार्थी जी ने कराई आजाद से मुलाकात
भगत सिंह ने कानपुर प्रताप प्रेस में करीब ढाई साल नौकरी की। इस दौरान उनके व्यक्तिगत संबंध विद्यार्थी जी से हो गए थे। सर्वेश कुमार पांडेय ने बताया कि भगत सिंह की एक खूबी थी कि वह जिससे एकबार मिल जाते, वह इंसान उनका कायल हो जाया करता था। बताया, अप्रेल 1927 को शाम के वक्त भगत सिंह और विद्यार्थी जी फीलखाना थाने के पास चाट खा रहे थे द्य ठेले के पास पंड़ित चंद्रशेखर आजाद भी विद्यार्थी जी से एक समाचार के लिए मिलने आए थे, जहां विद्यार्थी जी ने कहा था कि पंड़ित जी यह नौजवान से मिलिए, इसके हर खून की बूंद पर आजादी की खुशबू हमें सूंघने को मिलती है। उसी दिन से दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।
यहीं बनी थी लाहौर एसेंबली में बम फेंकने की योजना
पांडेय बताते हैं कि 30 मार्च 1929 को लाहौर एसेंबली में बम फेंकने की योजना कानपुर बनाई गई थी द्य उस समय पंड़ित चंद्रशेखर को सभी लोग अपना नेता मानते थे। चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह को लाहौर में बम फेंकने से मना कर दिया और वह मान भी गए थे। पांडेय के मुताबिक चंद्रशेखर आजाद ने लाहौर जाने के लिए किसी और को चुना था। आजाद यह मानते थे कि दल को भगत सिंह की बहुत जरुरत थी। भगत सिंह के मित्र सुखदेव ने भगत सिंह पर ताना कसा कि वे उस लड़की के कारण बम फेंकने नहीं जा रहे हैं। भगत सिंह इस ताने से काफी दुखी हुए। उन्होंनें दबाव बनाकर अपना चयन करवाया। भगत सिंह ने सुखदेव के नारी तथा प्रेम पर केंद्रित पत्र लिखा जो एसे बली बम धमाके के तीन दिन बाद सुखदेव की गिर तारी के समय प्रकाश में आया। इस पत्र में भगत सिंह ने प्रेम को मानव चरित्र को ऊंचा करने वाला अवधारणा बताया।
Published on:
28 Sept 2017 09:20 pm
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