
खोखली नींव पर खड़ी राहुल गांधी की कांग्रेस, बीजेपी को टक्कर दे रहे मायावती-अखिलेश
कानपुर। यूपी की सियासत से लेकर दिल्ली की सत्ता तक का केंद्र हमेशा कानपुर ही रहा है। कांग्रेस के लिए ये शहर संकट की घड़ी में शुभ साबित हुआ। लेकिन वर्तमान में पंजा खोखली नींव के सहारे टिका है। कभी तिलकहॉल पॉवर सेंटर हुआ करता था पर आज वहां गिनती के कुछ नेता आते ही हैं। कभी कभार कांग्रेस के नेता पुण्यतिथि, जयंती और धरना-प्रदर्शन कर अपनी अपनी उपस्थिती दर्ज करा चले जाते हैं। बदहाली के दलदल में कमर तक धंसी कांग्रेस उबरने के लिए मात्र इतने ही जतन करती नजर आ रही है। जबकि बीजपी को हराने के लिए सपा व बसपा यु़द्ध स्तर पर जुटे हैं और संगठन में युवाओं को जोड़ कर अपने-अपनी पार्टी को मजबूत कर रहे हैं।
उम्मीदों की पौध रोपने के लिए जुटी
बीते चुनावों में मिली हार-जीत के परिणामों से इतर आगामी लोकसभा चुनाव सभी दलों के लिए चुनौतियों के बड़े पहाड़ के समान हैं। कांग्रेस, सपा और बसपा को ’बंजर’ होती गई राजनीतिक जमीन पर फिर उम्मीदों की पौध रोपने के लिए जुटी हैं। इन तीनों दलों में से बसपा ने एक साल पहले से तैयारी शुरू कर दी थी। अमित शाह के बनाए कानपुर-बुंदेलखंड परिक्षेत्र की तरह मायावती ने भी रणनीति बनाई। संगठन के ढांचे में बदलाव कर सभी वर्गों को जोड़ा। मायावती के निर्देश पर जिले में 23 सदस्यों की बूथ कमिटियां की नियुक्ति हो चुकी है। जबकि पहले जितने चुनाव हुए उस वक्त पांच सदस्यों की बूथ कमिटियां होती थीं। इसी तरह जिला को-ऑर्डिनेटर के स्थान पर अब सेक्टर स्तर के प्रभारी बनाए हैं। ज्यादातर जिलों में 40 से ज्यादा सेक्टर प्रभारी बनाए जा रहे हैं। वहीं डिजिटल टीम भी हर जिलों में तैनात कर दी गई है, जो बीजेपी के भ्रामक प्रचार की पोल खोलेगी।
पंजे में अभी भी छेद
इन सारे प्रयासों के बीच कांग्रेस में पूरी तरह सन्नाटा ही दिखता है। दरअसल, जब संगठन को पूरी तरह सक्रिय करने का वक्त आया, तब सभी जगह अध्यक्षों को बदले जाने की चर्चाएं शुरू हो गई। एकजुट होकर पार्टी हित में जुटने की बजाए कार्यकर्ता अलग-अलग गुटों में दावेदारों के साथ खड़े हो गए हैं। दावेदारी की दौड़ से इतर मुंह बिचका कर खड़े वरिष्ठ नेता ही कहते हैं कि कुर्सी की यह जद्दोजहद ’सूखी हड्डी के लिए कबड्डी’ के समान नजर आती है। ध्वस्त संगठन का सुबूत महापौर चुनाव में भी सामने आ चुका है। इसके बावजूद अब तक बूथ कमेटियां बनाने या सदस्यता को लेकर कोई बैठक या अन्य आयोजन तक कांग्रेस में शुरू नहीं हुआ है। अब शहर, ग्रामीण और देहात के अध्यक्ष वही बने रहें या बदल दिए जाएं, लोकसभा चुनाव के लिए संगठन खड़ा करना बड़ी चुनौती होगी।
सपा-बसपा एक्टिव
सपा और बसपा एक-दूसरे का हाथ थामकर भाजपा का विजय रथ रोकने की मंशा से मैदान में उतरने की रणनीति बना रहे हैं। अखिलेश यादव युद्ध स्तर पर तैयारियों में जुटे हैं। बूथ कमेटियां बन रही हैं। सरकार की सोशल मीडिया पर घेराबंदी का भी प्लेटफॉर्म तैयार किया जा रहा है। अपने संगठन को चुस्त-दुरुस्त कर चालीस फीसद युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने को प्रयासरत है। साथ ही अखिलेश के बड़े नेता, कार्यकर्ता व जनप्रतिनिधि सड़क पर केंद्र व यूपी सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर लोगों के बीच अपनी उपस्थिती दर्ज कर रहे हैं जबकि कांग्रेस से सिर्फ नगर अध्यक्ष हरिप्रकाश अग्निहोत्री पुतले दहन कर पार्टी को िंजदा किए हुए हैं। पूर्व विधायक भूदल मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस का यह जो हाल है, उसके पीछे खुद कांग्रेस के नेता जिम्मेदार हैं। चुनाव के वक्त वो घर से निकलेंगे और पार्टी हाईकमान के पास जाकर टिकट ले आएंगे। वहीं वो कार्यकर्ता जो सरकार के खिलाफ लड़ता रहा, उसे बदले में कुछ नहीं मिलता। हाईकामन इन नेताओं की बात सुनने के बजाए जमीन कार्यकर्ताओं की राय ले तो कानपुर ही क्या पूरे यूपी में पंजे की जीत कोई रोक नहीं सकता।
बीजपी तीनों से निकली आगें
भाजपा इसी गंभीरता से चुनावी तैयारियों में जुट भी गई है। कानपुर-बुंदेलखंड में करीब दो हजार बूथ प्रमुखों की नियुक्ति के अलावा, दलित, ओबीसी और महिला मोर्चा की टीमों का भी गठन कर लिया है। साथ ही 11 लोकसभा सीटों के लिए 20 विस्तारक और 148 मंडल अध्यक्ष गांव-गली में चौपाल लगा मतदाताओं को कमल के पक्ष में लाने के लिए दिनरात एक किए हुए हैं। छोटे से लेकर बड़े पदाधिकारियों और सांसद, विधायकों व मंत्रियों को चुनाव के लिए काम पर लगा दिया है। कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र के मीडिया प्रभारी मोहित पांडेय के मुताबिक, पार्टी बूथ पर जीत ही चुनाव में जीत का मूल मंत्र मानती है। हमारी सभी बूथों पर कमेटियां हैं, फिर भी समय-समय पर निगरानी करते रहते हैं। इसके अलावा सदस्यता अभियान फिर शुरू कर दिया गया है।
कुछ इस तरह से बोले कांग्रेसी
नगर नगर अध्यक्ष ने बताया कि हां अभी कुछ बूथों पर पद खाली हैं, जिन्हें अगस्त तक भर लिया जाएगा। रही बात संगठन की तो हमारे पास बीजेपी से लड़ने के लिए सबसे ताकतवर संगठन मौजूद है। कानपुर में बीजेपी को सिर्फ कांग्रेस ने सीधे चुनौती दी है। मेयर चुनाव में पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था और पांच फीसदी से ज्यादा वोट भी बढ़े थे। नगर निगम की सदन में कांग्रेस दूसरी बड़ी पार्टी है, जिसके पार्षद सपा व बसपा से ज्यादा हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ही जीतेगी। क्योंकि बीजेपी ने इन चार सालों ने शहर को नर्क में तब्दील कर दिया है। नगर अध्यक्ष ने कहा कि अब भीतरघात करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्हें चिन्हित करने का काम चल रहा है। जल्द ही सारे भीतरघात करने वाले पार्टी से बाहर कर दिए जाएंगे।
Published on:
11 Aug 2018 03:54 pm
बड़ी खबरें
View Allकानपुर
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
