यह है मंदिर का इतिहास
शहर से 25 किमी की दूरी पर स्थिम महाराजपुर थानाक्षेत्र के रूमा में एक प्राचीन बालाजी मंदिर है। कहा जाता है कि यहां पर भूत-प्रेत व जटिल रोगों से ग्रस्त भक्त अगर पांच मंगलवार आकर पूजा-पाठ करें तो उनके सारे दुख बाला जी महाराज दूर कर देते हैं। पुजारी ज्ञानेंद्र बाजपेयीने बताया कि करीब डेढ़ सौ साल पहले भगवान बालाजी की मूर्ति धरती से प्रकट हुई थी। सुबह के वक्त आधी मूर्ति जमीन पर उतनी ऊपर दिख रही थी। गांववालों ने जैसे ही यह देखा तो पूरे इलाके में हड़कंप मच गया।यहां के एक कारोबारी ने भव्य मंदिर का निर्माण करा मुर्ति का स्थापना करवाई।
इसलिए इन्हें कहा जाता है बाला जी
मंदिर के पुजारी ने बताया कि पवन पुत्र हनुमान की लीलाएं बालपन से ही शुरू हो गई थीं। इसलिए कई जगहों पर इन्हें बालाजी के नाम से पूजा जाता है। मेहंदीपुर के बाद रूमा में में भी महाबली हनुमान अपने बाल स्वरूप में विराजमान है। पुजारी कहते हैं कि बालाजी के दर्शन करते ही इंसान के सभी प्रकार के संकट टलने लगते हैं। जो भी बालाजी धाम जाता है अपने सभी दुख, अपनी सारी विपत्तियां वहीं श्री बालाजी के चरणों में छोड़ आता है। पुजारी कहते हैं कि यहा पर बालाजी की सत्ता चलती है। जिसने श्री बालाजी का आशीर्वाद पा लिया उसके मन की हर कामना का भार स्वयं बालाजी महाराज उठाते हैं।
सोने का पहनाया गया मुकुट
महाराजपुर के बाला जी मंदिर में मंगलवार की भोर 3ः30 बजे से मंगलाआरती की गई, जो एक घंटा तक चली। इसमें बालाजी 101 किलो लड्डू का प्रसाद चढ़ाया गया और भक्तों को प्रसाद के रूप में बांटा गया। सुबह 10 बजे फूलों से बाबा का शृंगार किया गया। इसके बाद विशाल भण्डारे का आयोजन किया जाएगा। पुजारी ने बताया कि बताया कि बुढ़ावा मंगल को देखते हुए बाला जी को सोने के मुकुट पहनाया गया। वहीं बाला जी मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद थी। हर आने-जाने वालों की तलाशी लेने के बाद ही उसे मंदिर के अंदर प्रवेश कराया जा रहा था।