
अंग्रेजों के हाथ में नहीं लग पाई निशानियां, 700 साल से सहेज कर रखी पांडुलिपियां
कानपुर। अपने देश की एक कहावत है, कोस कोस पर पानी बदले, चार कोसा पर बानी। यानी लिपि और भाषा की दृष्टि से हमारा देश शुरू से ही समृद्ध रहा है। भाषा-जगत जितना अनूठा, विस्तृत और अगल है। उससे जरा भी कम लिपियों का संसार नहीं है। जितनी पुरानी मानव सभ्यता है, लिपियों का इतिहास भी करीब-करीब उतना ही है। कालांतर में कई लिपियों को पढ़ने में सफलता मिली है, लेकिन ऐसी कई लिपियां हैं, जो आज भी अबूझ हैं और उनके बारे में जानकारी हासिल करना बचा हुआ है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो विलुप्त होती इन लिपियों को बचाने के लिए लगे हुए हैं। इन्हीं में एक है कानपुर के हालसी रोड़ निवासी अशोक कुमार जैन (85) हैं, जिनके पास सात सौ साल पुरानी अलग-अलग भाषाओं और विषयों की पांडुलिपियां मौजूद हैं, जिन्हें देखने के लिए देश से ही नहीं विदेश से लोग आते है। अशोक बताते हैं कि हमारे पिता जी इन्हें संभल से बोरों में भर कर लाए थे और 85 साल से हम इनकी देखभाल कर रहे हैं।
अंग्रेज दरोगा ने उतार दिया था मौत के घाट
अशोक कुमार जैने बताते हैं देश में अंग्रेज हुकूमत का राज था। अंग्रेजों ने लोगों पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया। जिसने विरोध किया उसका अंग्रेज सिपाहियों ने कत्ल कर दिया। उसी दौरान अंग्रेज दरोगा हमारे, जिला संभल स्थित घर में आ धमका और और धर्म परिवर्तन का हुक्म सुना दिया। परिवार ने जब उसके आदेश को मानने से इंकार किया तो उसने सभी को मौत के घाट उतार दिया। लेकिन हमारी ददादी बच गई और अपने दो दो नाबालिग बेटे प्यारेलाल और कन्हैयालाल को लेकर कानपुर आ गई। दादी की मौत के बाद हमारे बाबा प्यारेलाल का निधन हो गया। पर मरने से पहले उन्होंने हमारे पिता पदमराज जैन को पांडुलिपियों के बारे में जानकारी दे गए। अशोक बताते हैं कि पिता पदमराज जैन 1932-33 में संभल गए और खंडहर हो चुकी हवेली के अंदर से रखी पांडुलिपियों को बोरों में भर कर कानपुर ले आए। पिता की मौत के बाद से हम इन्हें सहेज कर रखे हुए हैं।
12 साल तक पांडुलिपियों को पढ़ा
अशोक कुमार बताते हैं कि गंदगी से भरे इन कागजों को पढ़ने, समझने और साफ करने में 12 साल लग गए। इस पूरी कवायद से यह पता चला कि अलग-अलग विषयों की ये बेहद दुर्लभ पांडुलिपियां हैं। अशोक जैन ने अपने चैत्यालय (घर में बना जैन मंदिर) में इन पांडुलिपियों को रखवा दिया। अशोक बताते हैं कि ताड़पत्र पर लिखी पांडुलिपि करीब 700 साल पुरानी हैं, जिन पर मुहर पुरातत्व विभाग के साथ अन्य संस्थानों ने लगाई है। जैन दर्शन पर आधारित पांडुलिपि श्रीसूत्र 475 साल पुरानी है। यह अब तक कहीं भी नहीं छपी है। सुई की नोंक से ताड़पत्र पर तमिल में लिखा गया धर्मशास्त्र करीब 600 साल पुराना है। कन्नड़ में लिखी बोधकथाएं भी हैरान कर देती हैं। अशोक के खजाने में सनातन धर्मशास्त्र, जैन शास्त्र, ज्योतिष और आयुर्वेद से संबंधित पांडुलिपियां मौजूद हैं।
आधुनिक तकनीक से जिंदा है निशानी
अशोक ने बताया कि पहले लोग इन पांडुलिपियों को पानी में डालने के बाद भाप के जरिए इसका संरक्षण करते थे। लेकिन अब आधुनिक तकनीक की मदद से काम आसान हो गया है। कोल्ड प्रॉसेस से विशेषज्ञ इसे नया जीवन देते हैं। अशोक ने बताया कि एक पेज के संरक्षण की लागत करीब 60 रुपये आती है। इन पांडुलिपियों को औसत तापमान में रखा जाता है और साल में एक बार इनकी साफ-सफाई बेहद जरूरी होती है। संरक्षण के बाद इन पांडुलिपियों की उम्र बढ़ जाती है। अशोक ने बताया कि देश ही नहीं विदेश से शोधकर्ताओं यहां आते हैं और इन्हें पढ़ते हैं। अमेरिका के कई शोधकर्ता यहां आ चुके हैं और दो से तीन माह तक इन्हें पढ़ा और इनकी बारीकियों को समझा। अशोक अब उम्र के आखरी पड़ाव पर हैं। इसी के चलते उनकी विरासत में परिवार की नई पीढ़ी संभाल रही है।
सरकार चाहे तो बनवा दें संग्रालय
अशोक जैन कहते हैं कि योगी सरकार चाहे तो इन्हें संग्रालय में रखवा सकती है। अगर ऐसा होता है तो जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है, वह भी इन्हें पढ़ने, जानने के लिए आ सकते हैं। इससे सरकार के भी फाएदा होगा। विदेश से मेहमान आएंगे तो लोगों को आमदनी होगी। अभी अशोक जो कमाते हैं वह इन्हीं पांडुलिपियों की देखरेख में खर्च कर देते हैं। सालभर में करीब पांच से दस लाख का खर्चा आता है। कुछ अशोक व उनके परिजन व अन्य सस्थाएं धन मुहैया कराती हैं। अशोक का सपना है कि पांडुलिपियों की पहचान पूरे देश ही नहीं वर्ल्ड में हो। अशोक के मुताबिक अभी इतनी पुरानी पांडुलिपियां किसी अन्य देश के पास नहीं है। अशोक कहते हैं कि वह जल्द सीएम को पत्र लिखकर इन्हें सवांरने और लोगों तक इनकी जानकारी पहुंचाने के लिए पत्र लिखेंगे।
Published on:
11 Jun 2018 07:06 pm
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