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वैलेंटाइन-डे पर लेखिका ने खाेला राज, बचपन में पिटाई से बढ़ता गया किताबों से प्यार

कानपुर पुस्तक न्यास ने कराया लेखक- प्रकाशक और पाठकों का संगम टेलीविजन अपनी कल्पनाशक्ति थोपता है, इसलिए किताबें पढ़ना है जरूरी

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कानपुर पुस्तक न्यास ने कराया लेखक- प्रकाशक और पाठकों का ऑनलाइन संगम

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

कानपुर. कल्पनाशक्ति बचाए रखने के लिए किताबें पढ़ना बेहद जरूरी है। यह बात वैलेंटाइन-डे के माैके पर कानपुर पुस्तक न्यास की ओर से कराए गए लेखक, प्रकाशक व पाठकों के ऑनलाइन संगम में निकलकर सामने आई। जब सभी रूबरू हुए ताे किताबों से इश्क पर कहानियों के पिटारे से खुल गए। वक्ताओं ने कहा कि बचपन में किताबों से इश्क में पिटे तो उनके प्रति प्यार और बढ़ता गया।

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कानपुर पुस्तक न्यास ने इस वर्ष वैलेंटाइन-डे को 'पुस्तकों से प्रेम' विषय पर विमर्श के साथ मनाया। 'माई बुक माई वैलेंटाइन' अभियान के तहत आयोजित ऑनलाइन विमर्श में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डॉक्टर हरिओम, पैंगुइन रेंडम हाउस इंडिया की प्रकाशक वैशाली माथुर और कवयित्री व सोशल एंटरप्रेन्योर शेफाली बाजपेई ने कहा कि कहानियां सुनना व किताबें पढ़ना आज भी सर्वाधिक प्रभावी माध्यम है। टेलीविजन या वीडियो का कोई भी स्वरूप दर्शकों पर अपनी कल्पनाशक्ति थोपता है, इससे एक पाठक के रूप में भरी जाने वाली कल्पना की उड़ान थम जाती है।

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कहानियों का फिल्मी रूपांतरण तक तो मामला ठीक था, लेकिन अब तो ओटीटी और टेलीविजन ने कहानियों के नाम पर अराजकता का वातावरण बना दिया है। वक्ताओं ने ऑडियो बुक्स को क्रांतिकारी करार देते हुए कहा कि इससे कहानियां सुनने की परंपरा वापस आ रही है। संयोजक डॉक्टर संजीव मिश्र ने कहा कि किताबों से तारतम्य स्थापित करने के लिए नई पीढ़ी को इससे जोड़ना पड़ेगा। इसके लिए अभिभावकों व अध्यापकों को विशेष पहल करनी होगी। कानपुर पुस्तक न्यास इस दिशा में पहल कर रहा है और इसे लगातार जारी रखा जाएगा।

लिखना कठिन, प्रकाशन और भी कठिन
डॉक्टर हरिओम ने कहा कि किताब लिखना तो कठिन है ही, उसे प्रकाशित कराना और भी कठिन है। प्रकाशक बिक्री को आधार बनाकर किताबें स्वीकार करते हैं। लेखन प्रक्रिया पर उन्होंने कहा कि गजल की दो लाइन लिख ली जाएं तो पूरी हो सकती हैं, किन्तु कविता में ऐसा नहीं है। उसे पूरा सोचकर ही शुरू करना पड़ता है। नए लेखकों को उन्होंने पहले खूब पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि इंटरनेट आने के बाद किताबों के बारे में जानकारी मिलना आसान हो गया है। बचपन में गांव में किताबें मिलना कठिन होता था और तब पुस्तकालयों का सहारा ही रहता था। अब तो पुस्तकालयों की संख्या भी लगातार कम हो रही है।

अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना जरूरी
वैशाली माथुर ने कहा कि तमाम लेखक जल्दबाजी करने लगते हैं, इसलिए प्रकाशन में दिक्कतें आती हैं। अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना जरूरी है। लेखक पहले खूब पढ़ें, खूब लिखें और अपने लेखन को समय देकर उसमें परिपक्वता लाएं। प्रकाशक भी सोच समझ कर चुनें। पुस्तक प्रकाशन की चर्चा करते हुए कहा कि हर किताब कुछ सिखाती है। किताब की प्रकाशन यात्रा से जुड़े सभी लोग उस किताब के साथ यात्रा कर रहे होते हैं। जहां तक नई पीढ़ी को किताबों से जोड़ने की बात है तो माता-पिता को पहले पढ़ना शुरू करना होगा। कई घरों में लगातार टीवी सीरियल देखे जाते हैं और किताबों की बातें तक नहीं होतीं, ऐसे घरों के बच्चों में किताबों से जुड़ाव कैसे स्थापित हो सकता है।

किताबों की महक के बिना दुनिया आसान नहीं
शेफाली बाजपेयी ने कहा कि किताबों से मोहब्बत करने वालों को तमाम चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। बचपन में कोर्स की किताबें पढ़ने का अभिभावकों का जोर उन्हें छिपकर किताबें पढ़ने पर मजबूर करता है। किताबों का यही इश्क कई बार पिटाई करा देता है, वैसे किताबों की महक के बिना दुनिया आसान नहीं है। बचपन में मोहल्ले की तीसरी गली के नुक्कड़ पर किताबों की दुकान होती थी, वहां रखी किताबें रिझाती थीं, किन्तु अब तो ऐसी दुकानें ही नजर नहीं आतीं।

इन किताबों से करें शुरुआत
प्रेमचंद, सुमित्रा नंदन पंत, सआदत हसन मंटो, अमृता प्रीतम व कृष्णा सोबती की लिखी किताबों के साथ पंचतंत्र, मैला आंचल, गुनाहों का देवता, रोडलेस ट्रैवेल्ड जैसी किताबों से पढ़ने की आदत डालने की बात कही गयी।