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​​​​​मैं परौंख हूं, मेरे राम का ख्याल रखना रायसीना

अपने लाड़ले रामनाथ कोविंद के शपथ ग्रहण पर रायसीना हिल्स को चिट्ठी में परौंख ने लिखी दिल की बात

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sanjiv mishra

Jul 25, 2017

ram nath kovind

ram nath kovind

डॉ.संजीव

प्रिय रायसीना,
तुम मुझे नहीं जानती हो, पर इधर बार-बार मेरा नाम सुन रही होगी। मैं परौंख हूं। तुमसे चार सौ किलोमीटर दूर कानपुर देहात का एक गांव। अभी तक तो मैं भी एक साधारण गांव था और तुम देश के सत्ता सिंहासन को सहेजे सबसे ऊंची रिहाइश। अब मैं अपना लाड़ला तुम्हें सौंप रहा हूं। सही समझीं, देश का नया प्रथम नागरिक बनने जा रहा राम नाथ कोविंद मेरा ही लाड़ला है। मेरी गोद में पले बढ़े राम का क्षितिज अब इतना व्यापक हो गया है कि मैं उसे संभाल नहीं सकता। लो, मैं तुम्हें उसे सौंपता हूं। उसका ध्यान रखना, मैं यहीं से खुश होता रहूंगा।

एक बात बताऊं रायसीना हिल्स, तुमने तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रणव मुखर्जी तक तमाम दिग्गजों को देखा होगा, पर मेरा राम थोड़ा अलग है। उसे जमीन से जुड़ा रहना पसंद है। हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद के उसके भाषण से भी तुम्हें यह बात समझ में आ गयी होगी। तब राम ने खुल कर अपने गांव को यानी मुझे याद किया था और कहा था कि वह देश के गरीबों, दलितों की आवाज बनकर तुम्हारे पास आ रहा है। तुम्हें याद होगा कि राष्ट्रपति चुनाव परिणाम वाले दिन दिल्ली में सुबह से बारिश हो रही थी। राम को यह बारिश अपने बचपन में ले गयी थी, जब वह मेरी गोद में रहता था, उसका घर कच्चा था, मिट्टी की दीवारें थीं और तेज बारिश के समय फूस की छत पानी रोक नहीं पाती थी और राम अपने भाई-बहनों के साथ कमरे की दीवार के सहारे खड़े रहकर बारिश खत्म होने का इंतजार करता था।

तब नहीं बुझ पाई थी आग

देखो रायसीना, जब राम तुम्हारे पास पहुंच गया है तो उसके तमाम दोस्त भी बार-बार तुम्हारे मेहमान बनेंगे। रामनाथ के साथ पढ़े रामसेवक, बिरजू और जसवंत से ही पूछो तो वह तुम्हें बचपन की तमाम कहानियां सुनाएंगे। वह आज तक नहीं भूले हैं, जब रामनाथ महज छह साल का रहा होगा। उनके घर में पक्की छत नहीं थी और घास-फूस और पुआल से बने छप्पर का ही सहारा था। अचानक आग लग गयी और छप्पर धू-धू कर जलने लगा। तमाम कोशिशें हुईं किन्तु आग नहीं बुझाई जा सकी और इस आग ने मासूम रामनाथ से उसकी मां फूलवती को छीन लिया था। उसने आम आदमी का दर्द झेला है और गरीबी का दंश भी समझता है। मुझे भरोसा है रायसीना, तुम्हारे बड़ी-बड़ी प्राचीरों में भी वह अपना पुआल का छप्पर नहीं भूलेगा, फिर भी उसे संभाल कर रखना।

इससे बड़ी खुशी कुछ नहीं

मेरी गोद से रायसीना के आगोश तक पहुंचने की रामनाथ की यात्रा भले ही दुश्वारियों भरी रही हो किन्तु आज मेरे सभी बच्चों के लिए इससे बड़ी खुशी कुछ नहीं हैै। चाहो तो ग्राम प्रधान चंद्रकली से पूछ लो। चंद्रकली तो खुलकर कहती है कि चाचा के राष्ट्रपति बनने से गांव ही नहीं पूरे कानपुर की किस्मत खुल गयी है। हमें सब कुछ मिल गया है। देखो न, अभी कल ही की तो बात है, उन्होंने शपथ भी नहीं ली थी किन्तु जिलाधिकारी सहित अफसरों का पूरा अमला गांव पहुंच चुका था। अभी भले ही गांव में बस जूनियर तक की पढ़ाई होती हो किन्तु अब उम्मीद है कि दुनिया मुझे ठाट-बाट से जानेगी। जब वे राज्यपाल बने तो गांव की किस्मत बदलनी शुरू हो गयी थी, अब तो राष्ट्रपति बन गए हैं, सब अच्छा ही होगा।

सब तो नहीं पहुंच सकते वहां

मुझे पता है कि अब तुम्हारी गोद मेरे राम को संभालेगी, पर मैं वहां मौजूद जरूर रहूंगा। यूं तो मेरे सभी बच्चे और एक तरह से पूरा गांव वहां शपथ ग्रहण का साक्षी बनना चाहता है किन्तु अब सभी तो वहां पहुंच नहीं सकते। दो दिन पहले बलवान सिंह की चाचा रामस्वरूप (रामनाथ के भाई) से बात हुई थी। उन्होंने बताया कि पहले बाहर शपथ ग्रहण होना था तो सात हजार लोग आ सकते थे, अब भीतर होगा इसलिए तीन हजार से ज्यादा लोग नहीं आ सकते हैं। ऐसे में ग्राम प्रधान सहित तमाम गांव वाले वहां नहीं जा पाएंगे। पर कोई बात नहीं, वे बाद में चले जाएंगे। तुम बस उसकी चिंता करना। उसे खाने में कढ़ी पसंद है और मठहा-आलू भी चाव से खाता है। मिठाई से बचता है। बस ये सब बातें ध्यान रखना। उम्मीद है तुम उसकी चिंता करोगी।

तुम्हारा ही,
परौंख