गुरु द्रोणाचार्य ने स्थापित किया शिवलिंग कानपुर देेेहात के रसूलाबाद के असालतगंज स्थित इस मंदिर की दास्तान अलौकिक है। बताया जाता है कि महाभारत में वीर धनुर्धर अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य राजा द्रुपद के अभिन्न मित्र थे, जो कि एक ब्राह्मण पुत्र थे। द्रोणाचार्य अस्त्र शस्त्र के मर्मज्ञ व धनुर्विधा मे निपुण थे, लेकिन किसी बात से नाराज होकर राजा द्रुपद ने द्रोणाचार्य को पूरे परिवार समेत अपने राज्य से निकाल दिया। जिसके बाद वे कोशों दूर चलकर यहां आकर रुक गये और एक शिवलिंग की स्थापना कर वहीं पूजा पाठ करने लगे। एक दिन भगवान शिव ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा तो द्रोणाचार्य ने शिव के नाम से अपना नाम जोड़ने का वरदान मांगा। जिसके बाद से मंदिर का नाम द्रोणेश्वर मंदिर पड़ गया। लोगो की आस्था बढ़ गई। आज दूर दराज से लोग यहां दर्शन के लिये आते हैं।
साक्षात भोलेनाथ का मानते हैं वास महाभारत काल की देवी की मूर्तियां हैं। विधमान इस मंदिर की खासियत ये है कि आज भी यहां महाभारत कालीन देवी की मूर्तियां जगह-जगह स्थित है। श्रद्धालु शिवलिंग के दर्शन के बाद उन प्राचीन देवी की मूर्तियों के दर्शन भी करते हैं। बताया जाता है कि यहां बहुत बड़ा खेड़ा हुआ करता था, जिसके चारों तरफ जंगल था। जिसका छोटा सा स्वरूप आज भी देखने को मिलता है। लोगों का कहना है कि यहां साक्षात स्वयं ही भूत भावन भोलेनाथ द्रोणेश्वर के रूप मे विराजमान है, जो सभी की मनोकामना पूर्ण करते है। मंदिर के पुजारी का कहना है कि कई पीढ़ियों से इस मंदिर को यथावत स्थित में देखा जा रहा है। इसके निर्माण की तिथि किसी को नहीं पता है। जर्जर हो चुके मंदिर के जीर्णोद्धार के लिये ग्रामीण आपस में सहयोग करके मरम्मत कराते है। लोगों की मान्यता है कि इस धाम में स्वयं भगवान शिव विराजमान है।