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हैलट अस्पताल ने इस तकनीक से ब्लैक फंगस के 30 रोगियों की आंख बचा अमेरिका को पछाड़ा

-हैलट अस्पताल में ब्लैक फंगस के 30 रोगियों की एक साथ बचाई आंख,-नेत्र रोग विशेषज्ञों ने बलबर तकनीक का किया इस्तेमाल,-अमेरिका में सिर्फ एक मरीज की आंख इस तकनीक से बचाई गई,

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हैलट अस्पताल ने इस तकनीक से ब्लैक फंगस के 30 रोगियों की आंख बचा अमेरिका को पछाड़ा

हैलट अस्पताल ने इस तकनीक से ब्लैक फंगस के 30 रोगियों की आंख बचा अमेरिका को पछाड़ा

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
कानपुर. कानपुर के हैलट अस्पताल (Hallet Hospital Kanpur) के नेत्र रोग विशेषज्ञों ने ब्लैक फंगस के 30 रोगियों की आंख बचाकर अमेरिका को पछाड़ दिया है। दरअसल रेट्रो बलबर (Retro Bulber Technique) तकनीक से यह संभव हो सका है। अभी तक अमेरिका में रेट्रो बलबर (Retro Bulber Technique America) तकनीक से आंख बचाने का एक केस रिपोर्ट हुआ है। अब कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज (GSVM Medical College Kanpur) के नेत्र रोग विभाग के विशेषज्ञों ने हैलट में पहली बार एक साथ ब्लैक फंगस (Blach Fungus) के 30 रोगियों की इस तकनीक से आंखें बचाई हैं। जो कि बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। बताया गया कि इम्फोटेरेसिन बी का इंजेक्शन ब्लैक फंगस के रोगियों के आंखों के पिछले हिस्से में लगाया गया। क्योंकि ब्लैक फंगस इसी हिस्से में जड़ पकड़ती है।

रेट्रो बलबर तकनीक हुई कामयाब

अभी तक ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर आंख निकालने की ही गाइड लाइन है। मगर ऐसा पहली बार संभव हो सका है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभाग ने ब्लैक फंगस को लेकर दो शोध पूरे किए हैं। पहला शोध रेट्रो बलबर तकनीक से रोगियों की आंख बचाने का है। खास बात यह है कि एक तो इस तकनीक से रोगियों की आंखें बच गईं और दूसरे सीधे आंख में इंजेक्शन लगाने पर कम मात्रा में दवा दी जाती है। जिससे दवा का इस्तेमाल भी कम हुआ है। अब रेट्रो बलबर तकनीक से 30 रोगियों की आंख बचाने संबंधी शोध अमेरिका के जर्नल में भेजा गया है।

दूसरे शोध में मिली ऐसी कामयाबी

दूसरे शोध में डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस के संक्रमण में आंख की नसें खराब होने के मामले में कामयाबी पाई है। यह शोध छह रोगियों पर इस्तेमाल किया गया। नसों से संबंधित शोध ताइवान के जर्नल में भेजा गया है। नेत्ररोग विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने बताया कि अमूमन ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर रोगी की आंख निकाल दी जाती है। यहां रोगियों की आंख बचाई गई, आंख में मूवमेंट भी आ गया। हालांकि सिर्फ उन्हीं रोगियों की आंख निकाली गई, जो पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, जिसका कोई विकल्प नहीं था। फिलहाल रेट्रो बलबर तकनीक का प्रयोग कामयाब रहा है।