
world environment day- बबलू माली के पौधों से बड़ी ईदगाह गुलजार, ईदी पर नमाजियों को मिलेगा खुशनुमा माहौल
कानपुर। कुछ लोग तहजीब में रचे-बसे सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं, तो कुछ अपने फाएदे के लिए पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पर देश में आज भी ऐसे लोग हैं, जो इन्हें बचाने के लिए जुटे हुए हैं। इन्हीं में से एक बबलू माली हैं, जिन्होंने शहर की सबसे बड़ी ईदगाह को पिछले 35 साल से हरा-भरा किए हुए हैं। बबलू बताते हैं कि उनका जन्म ईहगाह में हुआ था। ईदगाह की देखरेख हमारे पिता करते थे। वह यहीं पर रहकर लोगों को पौधरोपड़ के लिए जगारूक किया करते थे। खुद पौधे तैयार करते और ईद-बकरीद के दिन नमाज अता करने वालों को पौधे देकर उनका स्वागत करते थे। उनके निधन के बाद हमने इस कार्य को अपने हाथों में उठाया और ईदगाह परिसर में पौधे तैयार करते हैं और यहां आने वाले लोगों को पौधा देते हैं। बदले में वह किसी से पैसे नहीं मांगते। अगर कोई अपनी खुशी से कुछ रूपए देता है तो वो इस पैसे से अपनी बगिया को गुलजार करने में लगा देते हैं।
बड़ी ईदगाह को कर दिया हरा-भरा
पर्यावरण प्रदूषण की वजह से हर किसी को मुश्किल उठानी पड़ती है, लेकिन इसके बारे में सोचने वाले लोग कम ही हैं। कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो पर्यावरण और प्रकृति को बचाने के लिए अपना सबकुछ लगा देते हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो बड़ी खामोशी और शिद्दत से प्रकृति को नवजीवन देने में लगे हुए हैं। ऐसे ही लोगों में से एक हैं बड़ी ईदगाह निवासी बबुली माली जो गंगा जमुनी के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने के लिए मुहिम छेड़े हुए हैं। बबलू अपने जज्बे से ईदगाह के अलावा शहर के इलाकों में पड़ी बंजर जमीन पर बिना किसी सरकारी मदद के बड़े पैमाने पर पौधे लगाकर हरियाली फैलाने का काम कर रहे हैं। वह अब तक करीब पांच लाख से अधिक पौधे लगा चुके हैं।
पिता की विरासत को संभाल रहा बेटा
बबलू बताते हैं कि उनके बाबा महाबीर प्रसाद बस्ती से कानपुर आए और यहीं पर बस गए। उन्होंने ईदगाह की देखरेख के साथ पौधरोपड़ किया। उनके इंतकाल के बाद हमारे पिता जी को इसकी जिम्मेदारी दी गई। 1984 तक वो गंगा-जुमनी की तहजीब को चलाते रहे और उनकी मौत के बाद अब हम उनके अधूरे काम को पूरा करने में लगे हुए हैं। बबलू ने बताया कि बड़ी ईदगाह में साल में सिर्फ दो बार ईद और बकरीद ? पर्व पर ही नमाज अता की जाती है। इन त्योहारों से पंद्रह दिन पहले बबलू करीब चार एकड़ में फैली ईदगाह की साफ सफाई करने में जुट जाते हैं। ईद के एक दिन पहले ईदगाह नमाजियों के लिए तैयार कर दी जाती है। नमाजियों को गर्मी से बचाने के लिए बबलू ने यहां पर सैकड़ों पौधे लगाए हुए हैं। बबलू ने बताया कि नमाज के बाद खुद नमाजी एक-एक पौधे यहां से जाकर अपने घरों में लगाते हैं और जो पैसा वह देते हैं उससे हम अपनी बगिया को संवारते हैं।
तीसरी पीढ़ी के हैं बबूल
बबलू ने बताया कि ईदगाह की रखवाली हमारा परिवार लगातार तीसरी पीढ़ी से करता आ रहा है। ईदगाह के अंदर ही हमारी माता जी की डोली आई और यहीं से पिता की अर्थी निकली। हम नौ भाई बहनों का जन्म यहीं पर हुआ और रहमान चच्चा की अंगुली पकड़कर हम बड़े हुए। जब-जब ईद-बकरीद आती है, तब-तब चांद बाबू और उनके परिवार को हम मुबारकबाद देने जाते हैं। चांदबाबू कब्रिस्तान में शवों को दफनाने के लिए गड्डा खोदते का काम करते हैं, तो हम ईदगाह की खूबसूरती के पेड़ों का रोपड़ करते उनकी रखवाली पिछले 35 साल से करते आ रहे हैं। बबलू ने बताया कि ईद के दिन बड़ी ईदगाह जहां रोशनी से सराबोर दिखेगी, वहीं हरे-भरे पौधों से लोगों को धूम और गर्मी से बचाएगी।
मिले पैसे से बगिया को सवांरते हैं बबलू
बबलू ने बताया कि ऐसे काम के लिए वह अब तक लाखों रूपए खर्च कर चुके हैं। यह पैसा ईद और बकरीद के दिन नमाजी देते हैं। बबलू की उम्र 45 साल के पार पहुंच गई है। मां शादी करने का दबाव बनाती हैं। बबलू ने अपनी मां का समझाया कि उनका रिश्ता पौधों से हो गया है और यही मेरा भविष्य हैं। बबलू पौधे लगाने के बाद उनकी बच्चों की तरह परवरिश करते हैं। बबलू के मुताबिक जिस तरह एक छोटे बच्चों को हैवी फूड व ज्यादा मात्रा में पानी नहीं दिया जा सकता, ठीक वैसा पौधों के साथ है। इन्हें वह ड्रिप सिस्टम से पानी, भोजन के तौर पर लिक्वेड, फर्टिलाइजर व कीड़ों से बचाने के लिए समय-समय पर दवाई देते हैं। उनकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा इसी पर खर्च होता है। बबलू ने बताया कि कानपुर के अलावा आसपास जिलों के साथ ही बड़ी ईदगाह से पौधो बांग्लादेश, सउदीअब, दुबई के साथ ही देश के अन्य शहरों में हमारी बगिया के पौधे लोगों को सुकून और पर्यावरण से बचाने के काम कर रहे हैं।
Published on:
05 Jun 2018 01:00 pm
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