
Demand for Archaeological Museum in Bilhari
कटनी. बेशकीमती प्राचीन संपदा और धरोहरों से संपन्न जिला पुरातत्व पर्यटन के नक्शे पर अभी तक उभर नहीं सका है। इसकी बड़ी वजह विरासत को अतीत के अंधेरों से वर्तमान के उजाले में चमकाने में उदासीनता रही है। हैरान करने वाली बात है कि कटनी की अति प्राचीन विरासत से देश के पांच बड़े पुरातत्व संग्रहालय (जो कि अलग-अलग राज्यों की राजधानी में है) रोशन है। लेकिन जिले में अब तक एक म्यूजियम आकार नहीं ले सका है। ऐसी कोई जगह विकसित नहीं की गई कि जहां लोग जिले के ऐतिहासिक गौरवकाल से परिचित हो सकें। कलचुरी काल में शिलाओं पर की गई बेजोड़ कारीगिरी के नमूने को नजदीक से निहार सकें। जबकि जिले में चारों ओर पुरातत्व संपदा और प्राचीन विरासत के अवशेष बिखरे हुए हैं। खुदाई में मिली दुर्लभ और बेजोड़ शिल्प वाली प्रतिमाएं पुरातन समृद्ध इतिहास की हकीकत खुद बयां कर रही हंै। कसर रह गई तो सिर्फ सदियों पुरानी संस्कृति के चिन्हों को संजाने और प्राचीन विरासत को सहेजने की। पुरातत्व जानकारों की मानें तो जिले में मिली प्राचीन संपदा को यदि शहर या किसी एक जगह पर संग्रहित कर लिया जाएं तो यह दुर्लभ प्रतिमाओं का देश का सबसे बड़ा संग्रहालय बन जाएगा।
जिले में कई स्थान। 100 से 500 वर्ष पुरानी कई प्रतिमाएं उपेक्षित पड़ी हैं और क्षतिग्रस्त हो रही हैं। तिगवां, कारीतलाई, रूपनाथ, बिलहरी में हजारों प्राचीन कलाकृतियां और मूर्तियां उपलब्ध हैं। इनटैक कटनी को ऐसी मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक संग्रहालय की आवश्यकता है। कम से कम 2 से 3 एकड़ जमीन और कम से कम 15000 वर्गफीट के 3 मंजिल तक निर्माण के साथ 1000 वर्गफीट के प्रशासनिक कार्यालय, 2 और 4 पहिया वाहन पार्किंग शेड की आवश्यकता है। संग्रहालय को उन वस्तुओं के प्रदर्शन के लिए भी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है।
बिलहरी में संग्रहालय की मांग
बिलहरी में एक संग्रहालय बनाने की मांग फिर उठी है। जबलपुर चैप्टर के संयोजक डॉ. संजय मेहरोत्रा के पास पुरातत्वविदों और संरक्षण वास्तुकार और अन्य विषयों के विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ टीम है। बहोरीबन्द विधानसभा अन्र्तगत ग्राम बिलहरी कलचुरी शासन काल का मूर्तिकला एवं स्थापत्य का बहुमूल्य खजाना रहा है। रायबहादुर डॉ. हीरालाल एवं बालचंद जैन जैसे मध्य प्रांत में पुरातत्व के पितामह की जड़ें बिलहरी एवं रीठी की मिट्टी से जुड़ी हैं। संग्रहालय की स्थापना कर इन पुरखों के योगदान को याद किया जा सकता है। यहां से 30 कि. मी दूर तिगवां ग्राम में गुप्त कालीन प्राचीन कंकाली मंदिर, यहां से 5 किमी दूर बहोरीबंद में जैन तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की 16 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा, ग्राम के किनारे सिंदुरसी की पहाड़ी में चट्टानों में उत्कीर्ण 4 गुप्त कालीन प्रतिमाएं, कुछ दूर स्थित रूपनाथ में शंकरजी का मंदिर एवं तीन सदी पूर्व सम्राट अशोक द्वारा चट्टान में उकेरा कराया गया संदेश है, जिन्हे देखने पर्यटक निरंतर आते रहते हैं।
बिलहरी में संग्रहालय का औचित्य
यहां शोभा बढ़ा रहीं हमारी धरोहरें
जिले के पुरातन वैभव की चमक जबलपुर, भोपाल, नागपुर से लेकर विदेशों तक में है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरीटेज (इंटेक) से जुड़े और कटनी निवासी राजेन्द्र सिंह ठाकुर के अनुसार जिले में खुदाई में मिलीं कई प्राचीन प्रतिमाओं को जबलपुर, भोपाल, नागपुर, कोलकाता के पुरातत्व संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है। रायपुर के पुरातत्व संग्रहालय की तो शोभा ही कटनी की प्राचीन धरोहरें बढ़ा रही है। छत्तीसगढ़ के इस पुरातत्व संग्रहालय में आधी से ज्यादा प्राचीन प्रतिमाएं कटनी जिले से ले जाकर रखी गई है। जिले की बेशकीमती विरासत का हिस्सा रही बेजोड़ वास्तुशिल्प वाली कुछ दुर्लभ प्रतिमाएं विदेशों तक में चमक बिखेर रही है।
जिले से जुड़े पुरातत्वविदों का अनुमान है…
10वीं और 11वीं सदी की कलाकृतियां है-
जिले में कलचुरी काल के दौरान के कई अनूठे कलाशिल्प के अवशेष मौजूद है। 10वीं और 11वीं सदी की कई दुर्लभ प्रतिमाएं बिलहरी में खुदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिले है। कारीतलाई में 493 ईस्वी के पुरा अवशेष हैं। बडग़ांव और तिगवां में भी अति प्राचीन संपदा के अवशेषों का खजाना है। प्राचीन विरासत की झलक के निशान उमरियापान में भी मिलते है। बहोरीबंद के नजदीक रुपनाथ धाम में ईस्वी 232 पूर्व लिखे गए सम्राट अशोक के संदेश वाला शिलालेख है। इन्हें संरक्षित और सुरक्षित करने की जिम्मेदारों की लापरवाही प्राचीन विरासतों को संवारने में बाधा बनी हुई है।
सहेजने की कवायद में भी सुस्ती-
जिले की प्रचुर पुरातन संपदा को सहेजने में जिम्मेदार का रवैया सुस्त है। संभागायुक्त से लेकर एएसआई की मंशा प्राचीन प्रतिमाओं को एक जगह संरक्षित करके रखने के लिए संग्रहालय बनाने की है। इसके लिए बिलहरी क्षेत्र में तहसीलदार को जमीन चिन्हित करने के लिए कहा गया है। लेकिन संभागायुक्त की मंशा के निर्देश के बावजूद संबधित तहसीलदार और अन्य अधिकारी संग्रहालय से संबधित कामकाज को लेकर ढुलमुल रवैया बनाए हुए है। इससे पुरातत्व महत्व की संपदाओं को संरक्षित करके प्रदर्शित करने और पर्यटन सुविधा को विस्तार की कवायद ढीली पड़ गई है।
Published on:
12 Sept 2024 09:08 pm
बड़ी खबरें
View Allकटनी
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
