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जीवन यापन को आधी रात से आदिवासी परिवार कर रहे ये काम…

आधी रात से एकत्र करते हैं महुआ, हाथीभार गांव के आदिवासी परिवारोंं के पास नहीं आय के साधन

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कटनी

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Mukesh Tiwari

Apr 30, 2020

Mahua bean tribals since midnight

हाथीभार के आदिवासी परिवार।

कटनी. कोरोना संक्रमण के खतरे से जंगलों के किनारे रह रहे आदिवासी परिवार भी डरे हुए हैं। लोग घरों से बाहर सिर्फ काम से ही निकल रहे हैं। जंगली फलों से खाने के व्यंजन तैयार करते हैं और सुबह से महुआ एकत्र करने जंगलों की ओर जाते हैं ताकि आने वाले समय में उसे बेचकर परिवार को चला सकें। यह स्थिति है बहोरीबंद ब्लाक की किवलरहा ग्राम पंचायत अंतर्गत आने वाले आदिवासी ग्राम हाथीभार की। जंगल के किनारे बसे गांव के लोगों का कहना है कि कोरोना बीमारी के डर से वे अपने घरों से सिर्फ काम करने के लिए निकल रहे हैं और अधिकांश समय घर में ही बिताते हैं। आधी रात से ही आदिवासी परिवार महुआ बीनने जंगलों की ओर चले जाते हैं और सुबह तक एकत्र कर दिनभर उसे घरों में सुखाते हैं। हाथीभार निवासी लोटन सिंह, दरबारी लाल, नोने सिंह, कोमल सिंह आदि ने बताया कि उनके पास थोड़ी बहुत खेती है, जिसमें अनाज उगाते हैं। खेती का काम हो गया है और लॉक डाउन में वे जंगलों में होने वाले तेंदू, चार, कैथा, बेल आदि भी वे एकत्र करते हैं और उनसे व्यंजन बनाकर खा रहे हैं। आदिवासी परिवारों को ग्राम पंचायत द्वारा तीन माह का फ्री राशन बांटा गया था।

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लकड़ी, वनोपज बेचने का नहीं कर पा रहे काम
हाथीभार में रहने वाले आदिवासी परिवारों की आय का मुख्य स्त्रोत वनों से मिलने वाली सामग्री है। सूखी लकड़ी एकत्र कर उसे आसपास के गांवों में परिवार बेचते हैं तो महुआ, चिरौंजी सहित अन्य वनोपज को बेचकर वे साल भर के किराना, मसालों, कपड़ों आदि का इंतजाम करते हैं लेकिन लॉक डाउन में उनकी आय के साधन बंद हैं। गांव में अभी तक पंचायत की ओर से भी कोई रोजगार उपलब्ध नहीं है। वहीं ग्राम पंचायत सचिव डालचंद झारिया का कहना है कि गांव में रोजगार के लिए मनरेगा से एक-दो दिन में काम प्रारंभ कराया जा रहा है।