
Mother and Baby (Image Source: Freepik)
कटनी. जिला अस्पताल के एसएनसीईयू में सतमासे बच्चे को मिला नया जीवन मिला है। हैरानी की बात तो यह है कि जब बच्चे का जन्म के समय महज 830 ग्राम वजन था, सांस लेने में गम्भीर समस्या थी, संक्रमण बढ़ा हुआ था, श्वसन सहायता यंत्र और नली के माध्यम से 2-2 मिलीलीटर सिर्फ मां का दूध पिलाकर जान फूंकी गई, फिर एम्स अस्पताल दिल्ली भेजकर उपचार कराया गया, छह माह तक डॉक्टरों की टीम ने फॉलोअप लिया, तबजाकर शिशु पूरी तरह से स्वस्थ हुआ। जिला अस्पताल की विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई में चिकित्सकीय टीम ने अत्यंत कम वजन के नवजात शिशु को सफल उपचार देकर नया जीवन प्रदान किया। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सोनी की विशेष भूमिका रही।
जिला अस्पताल में एपीएच (अत्यधिक रक्तस्राव) के कारण भर्ती ज्योति शर्मा एवं प्रकाश शर्मा के यहां ऑपरेशन के माध्यम से सतमासे शिशु का जन्म हुआ, जिसका वजन मात्र 830 ग्राम था। जन्म के साथ ही नवजात शिशु (लडक़े) को सांस लेने में गंभीर समस्या हो रही थी। चिकित्सकों द्वारा शिशु को उच्च चिकित्सा केंद्र रेफर करने की सलाह दी गई, लेकिन परिजनों ने जिला अस्पताल की एसएनसीइयू इकाई में ही उपचार कराने का निर्णय लिया।
सतमासे शिशुओं में सांस लेने, हृदय गति में गड़बड़ी तथा संक्रमण का खतरा अधिक होता है। इन सभी जटिलताओं की जानकारी परिजनों को देते हुए उपचार प्रारंभ किया गया। पहले दिन से ही नवजात को श्वसन सहायता यंत्र पर रखा गया। शिशु की स्थिति अत्यंत नाजुक थी। प्रतिदिन माता-पिता की काउंसलिंग कर चिकित्सकों एवं नर्सिंग स्टाफ द्वारा सभी संभावित जटिलताओं की जानकारी दी जाती रही। नवजात को नली के माध्यम से दो-दो मिलीलीटर दूध पिलाना प्रारंभ किया गया तथा परिजनों को कंगारू मदर केयर की विधि सिखाई गई। माता का ऑपरेशन होने के कारण प्रारंभिक पांच दिनों तक बड़ी मां द्वारा कंगारू मदर केयर दी गई। परिजन पूरे उत्साह के साथ हर दो घंटे में कंगारू केयर कराने आते रहे और शिशु को केवल मां का दूध ही दिया गया। पांचवें दिन से शिशु के वजन में प्रतिदिन सुधार होने लगा। लगभग 45 दिनों के निरंतर चिकित्सकीय उपचार के बाद शिशु का वजन बढकऱ 1 किलो 380 ग्राम हो गया।
इस दौरान आंखों की जांच (आरओपी) रिपोर्ट असामान्य आने पर परिजनों को चित्रकूट में जांच कराने की सलाह दी गई। वहां भी रिपोर्ट सामान्य न आने पर शिशु को दिल्ली स्थित एम्स भेजा गया, जहां लेजर उपचार किया गया। तीन दिन के भीतर शिशु को वहां से छुट्टी दे दी गई। छह माह के फॉलोअप में शिशु का तंत्रिका विकास पूरी तरह सामान्य पाया गया। परिजनों ने जिला अस्पताल एवं एसएनसीइयू में कार्यरत सभी चिकित्सकों, नर्सों एवं सहयोगी स्टॉफ की सराहना की है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सोनी ने बताया कि समय से पूर्व जन्मे एवं कम वजन वाले शिशुओं की आंखों की जांच अब जिला चिकित्सालय की एसएनसीयू इकाई में प्रत्येक शुक्रवार को की जा रही है। शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत संचालित एसएनसीयू गंभीर नवजात शिशुओं को जीवनदान देने एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
इसके साथ ही जिले के सभी ग्रामों में कार्यरत आशा कार्यकर्ताओं द्वारा जन्म के उपरांत नवजात शिशुओं के घर जाकर गृह आधारित नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम के अंतर्गत 42 दिनों तक वजन, तापमान एवं स्वास्थ्य संबंधी जानकारी ली जाती है, आवश्यक परामर्श दिया जाता है। समय पूर्व जन्मे, कम वजन वाले एवं एसएनसीइयू से डिस्चार्ज शिशुओं के लिए आशा कार्यकर्ता 56 दिनों तक विशेष गृह भ्रमण कर नवजात की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं। जिले में इस कार्य की विशेष निगरानी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, जिला अस्पताल के सिविल सर्जन द्वारा की जा रही है। शिशु स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत जिले में 12 नवंबर से 28 फरवरी तक ‘सांस अभियान’ चलाया जा रहा है। इस अभियान के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, सहायक नर्स दाई एवं आशा कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर सर्दी, खांसी, निमोनिया एवं सांस संबंधी समस्याओं से ग्रस्त बच्चों की जांच कर परामर्श प्रदान कर रहे हैं। साथ ही जिले की समस्त स्वास्थ्य संस्थाओं में प्रसव एवं नवजात शिशु वार्डों में भी संबंधित जानकारी व परामर्श दिया जा रहा है।
Updated on:
20 Dec 2025 04:34 pm
Published on:
20 Dec 2025 04:12 pm
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