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इस जिले में चिकित्सक-विशेषज्ञ न नर्सिंग स्टॉफ, नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड एग्जाम में बनेगा बाधा

नर्सिंग स्टॉफ और टैक्नीशियन न होने से नहीं हो पा रहा समुचित उपचार, गुणवत्ता सुधार के लिए मात्र तीन माह का मिला है समय, 70 फीसदी के ऊपर लाने पड़ेंगे जिला अस्पताल को नंबर

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कटनी

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Balmeek Pandey

Oct 31, 2020

इस जिले में चिकित्सक-विशेषज्ञ न नर्सिंग स्टॉफ, नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड एग्जाम में बनेगा बाधा

इस जिले में चिकित्सक-विशेषज्ञ न नर्सिंग स्टॉफ, नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड एग्जाम में बनेगा बाधा,इस जिले में चिकित्सक-विशेषज्ञ न नर्सिंग स्टॉफ, नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड एग्जाम में बनेगा बाधा,इस जिले में चिकित्सक-विशेषज्ञ न नर्सिंग स्टॉफ, नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड एग्जाम में बनेगा बाधा

कटनी. जिला अस्पताल में मरीजों को बेहतर इलाज मिले, सुविधाएं और संसाधन भी आधुनिक हों इसके लिए अस्पताल को नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड के मानकों पर खरा उतरना आवश्यक है। इसके लिए जिला अस्पताल के पास तीन माह का वक्त है, जिसमें दिशा और दशा सुधर गई तो अस्पताल और मरीजों के लिहाज से काफी बेहतर हो जाएगा, लेकिन जिला अस्पताल में चिकित्सक और विशेषज्ञों सहित टैक्नीशियनों और नर्सिंग स्टॉफ की कमी बड़ा रोड़ा साबित होगी। बता दें कि एनक्यूएएस का सर्वे शुरू हो गया है। क्वालिटी सर्टिफिकेशन के लिए तीन माह के लिए रिसर्च एसोसिएट से चिकित्सक डॉ. उत्कर्ष सक्सेना पहुंचे हैं जो तीन माह तक अस्पताल का एसेसमेंट करेंगे और सुधार के लिए पहल की जाएगी। इनकी रिपोर्ट के बाद टीम बिजिट करेगी और फिर रिजल्ट मिलेगा। इसमें प्रोसेसिंग, दस्तावेजों का संधारण, अस्पताल में दी जाने वाली सुविधाओं पर बेहतर काम करना होगा। इसमें बिल्डिंग, रिकॉर्ड, उपकरण पर भी फोकस करना होगा। बता दें कि दो माह पहले जिला अस्पताल राज्य स्तरीय मानकों पर तो खरा उतरा है, लेकिन अब नेशनल में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसके लिए 70 फीसदी के ऊपर अंक लाना आनिवार्य है।

चिकित्सकों की कमी सबसे बड़ी बाधा
अस्पताल में चिकित्सकों की कमी सबसे बड़ी बाधा है। 33 स्वीकृत पदों में से मात्र 8 विशेषज्ञ ही हैं और 25 पद खाली पड़े हैं। चिकित्सा 4, शल्य 1, स्त्री 4, शिशु 6, नेत्र, निश्चेतना, अस्थि, रेडियोलॉजी के एक-एक, पैथोलॉजी का एक, नाक-कान-गला एक विशेषज्ञ का पद खाली है। इसी तरह दंत और आयुष चिकित्सा का भी पद खाली है। ट्रामा सेंटर के लिए 13 में 11 विशेषज्ञों नहीं हैं। नर्सिंग अधीक्षक, मेट्रेन, सिस्टर-ब्रदर, स्टॉफ नर्स के 62 पद खाली पड़े हैं। चतुर्थ श्रेणी के 88 में 66 पद खाली हैं। 350 बिस्तर के अस्पताल के उन्नयन के अनुसार तृतीय श्रेणी के 74 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 50 पद खाली हैं व ट्रामा सेंटर के 6 पद रिक्त हैं। जिससे स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मरीजों को समुचित नहीं मिल रहा। इस पर किसी भी जनप्रतिनिधि और जिम्मेदार अधिकारियों का ध्यान नहीं है।

खास-खास:
- जिला अस्पताल में ब्लड बैंक और लैब एक साथ करनी होगी शिफ्ट, पुराने प्रसूती कक्ष में होगा विस्तार।
- तीन माह में कैजुअल्टी को करना होगा शिफ्ट, फीजियोथैरेपी सेंटर भी होगा चालू, मेन पॉवर के लिए जिम्मेदारों को देना होगा ध्यान।
- क्वालिटी एश्योरेंस के लिए सेवाओं, रोगी के अधिकारों का सम्मान, उपलब्ध संसाधनों की समीक्षा, सहायक सेवाओं की उपलब्धता पर देना होगा ध्यान।
- मुख्य रूप से चिकित्सालय में संक्रमण नियंत्रण पर देना होगा विशेष ध्यान, कार्यशैली व गुणवत्ता पर करना होगा फोकस।
- बेहतर ओटी, आइसीयू बनकर हुआ तैयार, लेकिन जिला अस्पताल में नहीं हैं विशेषज्ञ, मरीजों को नहीं मिल रहीं सुविधाएं।
- चतुर्थ श्रेणी के सेवानिवृत्त होते ही समाप्त कर दी जा रही पोस्ट, मात्र 20 फीसदी स्टॉफ के कारण बिगड़े रहते हैं हालात।

यह होगा फायदा
राष्ट्रीय स्तर पर जिला अस्पताल के पास होने से न सिर्फ विभाग को बल्कि मरीजों को भी बड़ा फायदा होगा। इसमें मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं तो मिलेंगी ही साथ ही चिकित्सालय को 10 हजार रुपये प्रति बिस्तर के मान से प्रतिवर्ष तीन साल तक राशि मिलेगी। रोगी कल्याण और कर्मचारी कल्याण की योजनाओं का विस्तार हो सकेगा और जिलेवासियों को बड़ा फायदा मिलेगा।

इनका कहना है
नेशनल क्वालिटी एश्योरेंस स्टैंडर्ड का एसेसमेंट शुरू हो गया है। तीन माह में व्यवस्थाएं और भी दुरूस्त करनी हैं। बिल्डिंग और उपकरणों की तो पर्याप्त उपलब्धता है, लेकिन मेन पॉवर होने की गंभीर समस्या है। इससे इलाज प्रभावित हो रहा है। मानकों पर खरा उतरने पहल शुरू कर दी गई है।
डॉ. यशवंत वर्मा, सिविल सर्जन।