कटनी जिले में 3,347 शिक्षकों की कमी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बन गई चुनौती, बच्चों का भविष्य अधर में
बालमीक पांडेय@ कटनी. सरकारी फाइलों में भले ही शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त दिखाई दे, लेकिन जमीनी हकीकत इससे एकदम विपरीत हो चली है, बच्चों के अधिकार, उनका भविष्य और उनका सपना इन सबका आधार शिक्षक ही हैं, अगर स्कूल में मास्साब ही नहीं होंगे, तो शिक्षा मंदिर नहीं, सूने ढांचे ही रह जाएंगे, समय आ गया है जब शिक्षकों की नियुक्ति और स्थानांतरण को प्राथमिकता देकर इस असंतुलन को दूर किया जाए…। सरकारी फाइलों में भले ही शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त दिखाई दे, लेकिन जमीनी हकीकत इससे एकदम विपरीत हो चली है, बच्चों के अधिकार, उनका भविष्य और उनका सपना इन सबका आधार शिक्षक ही हैं, अगर स्कूल में मास्साब ही नहीं होंगे, तो शिक्षा मंदिर नहीं, सूने ढांचे ही रह जाएंगे, समय आ गया है जब शिक्षकों की नियुक्ति और स्थानांतरण को प्राथमिकता देकर इस असंतुलन को दूर किया जाए…। जिस स्कूल को ‘ज्ञान का मंदिर’ कहा जाता है, वहां आज बच्चों के सामने मास्टरजी की जगह सिर्फ खाली कुर्सियां और सूने कमरे होते हैं। जिले के 48 शासकीय प्राथमिक, माध्यमिक हाइ व हॉयर सेकंडरी स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं है, वहीं दूसरी ओर 122 स्कूल ऐसे हैं जहां 135 शिक्षक जरूरत से अधिक पदस्थ हैं। इस असमानता और अव्यवस्था ने जिले में शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। बता दें कि जिले के कक्षा एक से लेकर 12 तक एक लाख 46 हजार 611 बच्चे अध्ययन कर रहे हैं। इन देश के भविष्यों के लिए जिले में शिक्षकों की कमी बनी हुई है। अतिथि शिक्षकों के भरोसे काम चलाया जा रहा है।
ऐसे कई स्कूल हैं जहां एक ही शिक्षक पर पांच कक्षाओं की जिम्मेदारी है। न तो विषय विशेषज्ञ मिल पा रहे हैं, न ही समय पर पढ़ाई हो पा रही है। नतीजा बच्चे बिना पढ़े क्लास से निकल जाते हैं और धीरे-धीरे विद्यालयों से उनका मन भी हटता जा रहा है। जहां शिक्षक पहुंच रहे हैं उनमें से कई पढ़ा भी नहीं रहे हैं, इसका खुलासा हाल ही में शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा की गई औचक जांच से खुलासा भी हो चुका है। शिक्षा के मंदिर सिर्फ मूलभूत सुविधाओं के लिए ही नहीं बल्कि शिक्षकों के लिए भी मोहताज हैं।
जिले में शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद- 7,694
वर्तमान में पदस्थ शिक्षक- 4,347
रिक्त पदों की संख्या- 3,347
बिना किसी शिक्षक के संचालित स्कूल- 48
शिक्षक अधिकता (सरप्लस) वाले स्कूल- 122
अतिरिक्त शिक्षक- 135
जिले में अध्ययन कर रहे बच्चे- 146611
जिले में स्कूलों की संख्या- 1986
जिले के जिन 48 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं उनमें बड़वारा का का पठरा, करछुला, बगैहा, झिंझरी, भदौरा नं.-2, लखाखेरा, बनगवां, गुड़ा, लालपुर टोला, हदरहटा, बड़ेरा, गणेशपुर, मगरहटा में शिक्षक नहीं हैं। इसी प्रकार बहोरीबंद के सुनाई, खमतरा, पथराड़ी पिपरिया, चांदनखेड़ा, जुजावल, अमाड़ी, कूड़ा, हाथीभार, ककरेहटा स्कूल में शिक्षक नहीं हैं। इसी प्रकार ढीमरखेड़ा के गूड़ा, घुघरी, खंदवारा, बनहरा, छीतापाल, सनकुई, महगवां, पौनिया, भैंसवाही, भलवारा, बरही, खम्हरिया बागरी, कारीपाथर, हरदुआ स्कूल में शिक्षक नहीं हैं। इसी प्रकार रीठी ब्लॉक के सिमरा, नयाखेड़ा, खिरवाटोला, खम्हरिया, कूड़ा, नैगवां, कुम्हरवारा व विजयराघवगढ़ के बम्हौरी, टीकर, जिजनौड़ी, लाल नगर व खलवारा बाजार स्कूल ऐसे हैं, जिनमें शिक्षक ही नहीं हैं।
जिले की एक तस्वीर ऐसी भी है, जहां पर स्कूलों में शिक्षकों की संख्या अधिक है। 122 स्कूल ऐसे हैं, जहां पर 135 शिक्षक अतिरिक्त हैं। सरप्लस शिक्षकों को जरुरतमंद स्कूलों में भेजने कोई पहल नहीं हो रही। कैलवारा कला में 4 शिक्षक, हिरवारा स्कूल में 3 शिक्षक, गैंतरा में दो शिक्षक, कन्हवारा में दो शिक्षक, करौंदीकला में दो शिक्षक सहित शेष स्कूलों में एक-एक शिक्षक अतिशेष हैं।
जिले में शिक्षा विभाग की हकीकत यह है कि 3 हजार से अधिक शिक्षकों की कमी बनी हुई है। जिले में शिक्षकों के 32 वर्ग समूह के अनुसार स्कूल व विद्यार्थियों के मान से 7 हजार 694 शिक्षकों की आवश्यकता है। वर्तमान में 4 हजार 347 शिक्षक ही पदस्थ हैं। 3 हजार 347 शिक्षकों की कमी बनी हुई है। जहां पर शिक्षक नहीं हैं वहां पर अतिथि शिक्षकों के भरोसे शिक्षा व्यवस्था चल रही है।
जिन स्कूलों में शिक्षक आवश्यकता से अधिक हैं, वहां से उन्हें ऐसे स्कूलों में भेजने की कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है जहां एक भी शिक्षक नहीं है। इस लचर प्रणाली का सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है। रिक्त पदों पर नियुक्ति हो या कम से कम सरप्लस शिक्षक ट्रांसफर किए जाएं, लेकिन जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस पर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाया है।
प्राथमिक, माध्यमिक, हाइस्ूल और हायर सेकेंडरी विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या छात्र संख्या, शिक्षा के लिए निर्धारित शिक्षक छात्र अनुपात के आधार पर तय होती है। नीचे प्राथमिक विद्यालय में 30 बच्चों पर एक शिक्षक, 91-120 छात्र तक 4 शिक्षक, एक प्रधानाध्यापक यदि विद्यालय में 150 से अधिक छात्र हों तो संख्या बढ़ाई जा सकती है। माध्यमिक विद्यालय में हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, संस्कृत/उर्दू के हिसाब से औसतन 5 से 7 शिक्षक होने चाहिए। हाइस्कूल में 6 से 8 शिक्षक, हायर सेकंडरी में प्रत्येक संकाय (विज्ञान, वाणिज्य, कला) में अलग विषय शिक्षक अनिवार्य के साथ फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी, मैथ्स, भूगोल, इतिहास, राजनीति, समाजशास्त्र आदि के लिए 10 से 12 शिक्षक जरूरी हैं।
केस-01
प्राथमिक शाला नैगवां टोला में एक भी शासकीय शिक्षक की पदस्थापना नहीं हैं। एक अतिथि शिक्षक के भरोसे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। सरकारी स्कूल में यह मंजर शिक्षा विभाग, शासन-प्रशासन के दावों की हकीकत को बयां कर रहा है।
केस 02
शासकीय प्राथमिक शाला खखरा में बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां पर सिर्फ एक ही शिक्षक हैं। एक शिक्षक के पास विभाग के काम, बैठक सहित कई उलझनें होती हैं, ऐसे में स्कूलों में दो शिक्षकों का ना होने भी समस्याप्रद है।
मध्य प्रदेश शिक्ष संघ के जिला अध्यक्ष आशीष उरमलिया ने कहा कि संगठन के द्वारा शिक्षकों व बच्चों की समस्या को सतत उठाया जा रहा है, जबतक समाधान नहीं हो जाता तबतक आवाज बुलंद करते रहेंगे। परामर्शदात्री समिति की बैठक में भी समस्या उठाते हैं। जिले से लेकर प्रदेश स्तर पर मांग उठाई जा रही है। विभाग में समस्या जटिल तो हैं कि उससे कहीं ज्यादा उन्हें बना दिया जाता है। सरकार नीतिगत निर्णय ले और स्कूलों की दिशा-दशा सुधारे।
जिले में 7 हजार 694 शिक्षकों के पदों के विरुद्ध 4 हजार 347 शिक्षक पदस्थ हैं। शेष अतिथि शिक्षक रखे गए हैं। जहां पर समस्या है वहां पर भी व्यवस्था की जाएगी। जहां एक भी शिक्षक नहीं हैं वहां अतिशेष से भेजे जाएंगे। जैसे-जैसे शिक्षकों की भर्ती होती जाएगी, पदस्थापना होती जाएगी।
पीपी सिंह, जिला शिक्षा अधिकारी।