सरकारी मदद से रोशनी की आस
इसे बदकिस्मती कहें या फिर भाग्य का खेल कि पहले ब्रेन ट्यूमर हो जाने से छह साल पहले आंखों की ज्योति गवाई और अब इलाज के लिए दर-दर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। दिव्यांग को दोनों आंखों से बिल्कुल भी नहीं दिखता है, लेकिन उम्मीदों की रोशनी के चलते दोस्तों से मिन्नतें कर अधिकारियों के पास लगातार दिव्यांग यही आस लगाकर पहुंच रहा कि शायद एक न एक दिन कोई अफसर सुन ले और उसकी आंखों को सरकारी मदद से रोशनी मिल जाए।
२०१६ में गवाई रोशनी, अब तक नहीं मिला इलाज
हम बात कर रहे हैं नई कंपनी एवरेस्ट नगर निवासी अरुण कुमार पांडेय की। अरुण पांडेय का कहना कि 2016 में ब्रेन ट्यूमर के कारण दोनों आंखों की ज्योति चली गई, अपने सामथ्र्य के अनुसार उपचार कराया, लेकिन आराम नहीं मिला। अब आंखों के इलाज में लाखों रुपये का खर्च आना है, लेकिन कोई लाभ नहीं मिल रहा। एसडीएम, सामाजिक न्याय विभाग, स्वास्थ्य अधिकारियों से लेकर कलेक्टर तक से अरुण ने गुहार लगाई है, लेकिन 2016 से अबतक कोई सुनवाई नहीं हुई।
दो बार बना है इस्टीमेट
अरुण पांडेय का कहना है कि 9 फरवरी 2016 को एक 5 हजार रुपये का इस्टीमेट बना था, वह भी नहीं मिला। मुख्यमंत्री स्वच्छानुदान के तहत राशि मिलनी थी। यह पास भी हुआ, लेकिन राशि नहीं मिली। इसके बाद अक्टूबर 2017 में 40 हजार रुपये का इस्टीमेट बना, इसके बाद भी उपचार के लिए राशि अबतक नहीं मिली। वह विजयराघवगढ़ एसडीएम को समस्या बताई तो आश्वासन मिला, लेकिन आजतक काम नहीं हुआ। 600 रुपये पेंशन व 5 किला अनान नि:शुल्क मिलता है, जिससे गुजारा नहीं हो पा रहा। अरुण का कहना है कि सरकार की मदद से उसकी नेत्र में ज्योति वापस आ सकती है, जिससे वह अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। अभी रुपये न होने के कारण दवाएं भी नहीं खरीद पा रहा।
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इनका कहना है
इस मामले में तत्काल पता लगवाते हैं कि अबतक उपचार व सहायत क्यों नही मिली। दिव्यांग के इलाज के लिए आवश्यक पहल की जाएगी।
-महेश मंडलोई, एसडीएम विगढ़