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Kawardha Naxalites Surrender: नक्सल दंपती ने किया आत्मसमर्पण, हिड़मा के गांव के हैं निवासी, सिर पर था 10 लाख का इनाम

Naxalites Surrender: सुकमा जिले के पूवर्ती गांव के रहने वाले एक हार्डकोर नक्सली दंपत्ति ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इस दंपत्ति पर 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

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Kawardha Naxalites Surrender

Kawardha Naxalites Surrender: कवर्धा जिला मुख्यालय में 5-5 लाख के दो इनामी नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। राज्य सरकार की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर रमेश मंडावी उर्फ मेस्सा व रोशनी उर्फ हिड़मे मंडावी ने आत्मसमर्पण किया है, जिन्हें शासन की नीति के तहत लाभ मिलेगा।

कलेक्टर व एसपी ने आत्मसमर्पित नक्सलियों को शुरुआती दौर में 25-25 हजार रुपए की आर्थिक सहायता राशि दी है। दोनों नक्सली नक्सली कमांडर हिडमा के गांव के रहने वाले हैं, जो जिले के कई नक्सली वारदात में शामिल रहे हैं। उन्होंने कवर्धा में शनिवार को आत्मसमर्पण कर दिया है। आत्मसमर्पित नक्सली रमेश उर्फ मेस्सा बोड़ला एरिया कमेटी विस्तार प्लाटून नंबर 3 के डिप्टी कमांडर के पद पर था, उसकी पत्नी रोशनी उर्फ हिड़में बोड़ला एरिया कमेटी विस्तार प्लाटून नंबर 3 की सदस्य के रूप में कार्यरत थी। उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने आत्मसमर्पित नक्सलियों के समुचित पुनर्वास एवं अन्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पुलिस एवं प्रशासन को निर्देश दिए हैं।

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लंबे समय से नक्सल गतिविधियों में सक्रिय थे दोनों नक्सली

कवर्धा पुलिस के अनुसार ये दोनों नक्सली लंबे समय से नक्सल गतिविधियों में सक्रिय थे। 2009 में नक्सल संगठन से जुड़ने के बाद, 2015 से 2019 तक ये पति-पत्नी बोड़ला एरिया कमेटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे। 2019 के बाद से रमेश नक्सली संगठन की मिलिशिया में काम कर रहा था। इन दोनों पति-पत्नी पर सरकार ने 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित किया था।

Kawardha Naxalites Surrender: कुख्यात नक्सली रमन्ना का बॉडीगार्ड बना

नक्सली रमन्ना का अंगरक्षक बनने के बाद साल 2015 में एमएमसी जोन का नक्सलियों ने गठन किया। उस वक्त संगठन ने रमेश को बोड़ला एरिया कमेटी का डिप्टी कमांडर और उसकी पत्नी रोशनी उर्फ हिड़मे को कमेटी का सदस्य बनाकर भेजा। रोशनी साल 2003 में नक्सल संगठन से जुड़ चुकी थी। रोशनी भी पुवर्ती गांव की ही रहने वाली है। नक्सल दंपत्ति साल 2015 से लेकर 2019 तक कबीरधाम में सक्रिय रहे। 2019 में दोनों गांव लौट गए लेकिन माओवादियों के संपर्क में लगातार बने रहे।