
रानीसागर स्थित शिवलिंग की जलहरी में सर्प उत्कीर्ण हैं
कवर्धा
रायपुर दिशा की ओर ग्राम रानीसागर स्थित शिवमंदिर है। यहां शिवलिंग जो कि राजमाता देवकुमारी द्वारा सन् 1935 में स्थापित किया गया। अधिकतर लोग वहां की विशेषता से अवगत नहीं हैं। जिला पुरातत्व समिति के सदस्य आदित्य श्रीवास्तव ने बताते हैं कि रानीसागर स्थित शिवलिंग की जलहरी में सर्प उत्कीर्ण हैं इसे सिद्धेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। आचार्यों के अनुसार कालसर्प दोष वाले यहां पूजा कर संकट मुक्त हो सकते हैं। इसी प्रकार झिरना प्राचीन नाम पीपरखूंटी में राजा बहादुर सिंह की धर्मप्रेमी कन्या रेवाकुंवर ने लगभग सन् 1865 में भोरमदेव से लाकर वृहत शिवलिंग को मन्दिर में स्थापित किया। इस शिवलिंग की जलहरी पर प्राचीन शिलालेख अंकित है। पूज्य जानकी शरण दास महंत ने बताया था कि तब से यहां पर कभी सर्पदंश नहीं हुआ। पूर्व में यहां एक माह का मेला लगता था, जो अब दो दिनों का हो चुका है। इसी तरह कवर्धा स्थित श्री राधाकृष्ण बड़े मन्दिर में राधा व कृष्ण की प्रतिमा को तो हर कोई जानता है लेकिन यहां पर एक शिवलिंग भी है जो बेहद विशेष है। यह दक्षिण-पूर्व दिशा में उत्तराभिमुख शिवलिंग है जो कल्याणकारी रूप में सन् 1802 से स्थापित है।
एक-एक शिवलिंग पर पांच-पांच मुख
नगर के सिद्धपीठ उमापति पंचमुखी बूढ़ा महादेव मंदिर में आदि काल से स्वयंभू स्थापित पंचमुखी शिवलिंग की ख्याति दूर-दूर तक है, क्योंकि यहां 25 मुखों वाले अद्भुत शिवलिंग हैं। यह साधु-संतों की तपोभूमि भी रही है। बूढ़ा महादेव मंदिर में दिव्य पंचमुखी शिवलिंग रियासत काल से भी पूर्व स्वयंभू शिवलिंग है। एक-एक शिवलिंग में पांच-पांच मुख है। संभवत: देश का एकमात्र कुल 25 लिंगों का अद्भूत शिवलिंग है। साथ ही सांख्य दर्शन के लिए अनुसार भगवान शंकर पंचभूत अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु हैं। पंचमुखी बूढ़ा महादेव के शिवलिंग भी इसी तरह है। माना जाता है कि यह दुर्लभ और अद्वितीय शिवलिंग है, जिसके चलते ही इसकी ख्याति है।
11 वीं सदी से स्थापित शिवमंदिर भोरमदेव
छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहे जाने वाले भोरमदेव मंदिर की सुंदरता आज भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह मूलरूप से शिवमंदिर ही है, जहां पर शिवलिंग स्थापित है। ११वीं सदी का यह मंदिर पूरी तरह से चट्टानी पत्थरों से नागर शैली में निर्मित और मूर्तियां खुदी हुई है। भोरदमेव मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर और खजुराहो मंदिर के साथ एक समानता है। यह अपनी अद्भुत कलाकृति के कारण ही विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन यहां जो शिवलिंग है वह 11वीं सदी से भी पुराना है।
शिव मंदिर में हुई थी राजा की शादी
मंडवा महल मूल रूप से एक शिव मंदिर था लेकिन अपने आकार की वजह से एक शादी मंडप के रूप में जाना जाता है। इसे फणि नागवंश के चौबीसवीं पीढ़ी के राजा रामचंद्र द्वारा 1349 ईसवी में बनवाया गया था। इस मंदिर के निर्माता राजा रामचंद्र का विवाह हैहयवंशी राजकुमारी अम्बिका देवी के साथ हुआ था। इस शिलालेख में तिथि विक्रम संवत 1406 दी हुई है जो 1349 ईस्वी सन ठहरती है।
नागवंशी राजा ने बनवाया शिव मंदिर
छेरकी महल भी शिव मंदिर ही है जो चौरा गांव में स्थित है। ईंट प्रस्तर निर्मित यह भोरमदेव व मंडवा महल की अपेक्षा छोटा है। कवर्धा के स्थानीय नागवंशी शासकों के राज्यकाल में 14वीं सदी से उत्तरार्ध में यह मंदिर निर्मित कराया गया हे। मंदिर का गर्भगृह सुरक्षित स्थिति में है जिस पर शिखर स्थित है। मंदिर का शिखर भाग नीचे चौकोर तथा ऊपर क्रमश: संकरा होता गया है।
नदी के हृदय पर जालेश्वर महादेव
डोंगरिया वह स्थल है जहां भगवान आदिदेव आशुतोष शिव जालेश्वर महादेव के रूप में स्वयं-भू विराजमान है। फोंक नदी अपने हृदय में स्वयंभू जालेश्वर महादेव को धारण की हुई है। नदी वलय पर पवित्र शिलाखंड पर विराजमान हैं। श्याम वर्ण शिवलिंग अखिल विश्व में अपने किस्म की एकमात्र अनोखी प्रतिमा है। बताया जाता है कि करीब १०० वर्ष पूर्व झड़ी नामक केंवट को है मछली पकड़ते हुए उक्त शिवलिंग मिला था।
Published on:
01 Mar 2022 01:15 pm
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