5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

 माखनलाल चतुर्वेदी के हिन्दी साहित्य 49 सालों से रखे हैं कबाड़ में 

आज 4 अप्रेल को माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती है। हिन्दी साहित्य में इतिहास रचा उन्हे अब लोग भूलने लगे हैं। खंडवा उनकी कर्मभूमि रही है, एक भारतीय आत्मा की हिंदी पिछले 47 वर्षों से कबाड़ में कैद है। 

3 min read
Google source verification

image

Abha Sen

Apr 04, 2017

makhanlal chaturvedi

makhanlal chaturvedi

खंडवा। माखनलाल चतुर्वेदी के का इतिहास कबाड़ मे रखा खराब हो रहा है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। जयंती हो या पुण्यतिथि उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर भूल जाते हैं। भले ही हिंदी के विस्तार की बात की जा रही हो, लेकिन एक भारतीय आत्मा की हिंदी पिछले 49 वर्षों से कबाड़ में कैद है। आज इनकी पुण्यतिथि है, मप्र से स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में कलम के माध्यम से अंग्रेजों से लोहा लेने वाले माखनलाल चतुर्वेदी खंडवा से हिंदी में लिखे उनके साहित्य के माध्यम से एक भारतीय आत्मा के नाम से ख्यात हुए थे।
माखनलाल चतुर्वेदी का देहांत वर्ष 1968 में हुआ, तभी से उनका रचित साहित्य और पत्रकारिता को दिशा प्रदान करने वाला लेखन अप्रकाशित है। उनके पोते प्रमोद चतुर्वेदी इस साहित्य को खंडवा में दो कमरों में रखी तीन अलमारियों में सहेज कर रख रहे हैं। माखन दादा के नाम से कईं कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली सरकारों ने कभी भी उनके साहित्य को प्रकाशित कर समाज तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाई।



गांधी, बच्चन भी करते थे पत्राचार
माखनलाल चतुर्वेदी ने वर्ष 1920 से 1958 तक साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से कई लेख और रचनाएं कलमबद्ध किए। ऐसी एक हजार से अधिक फाइलों में बंद पड़ी है। इसके अलावा उनको कईं महान साहित्यकारों, कलमकारों और महापुरुषों से उनका पत्राचार भी धूल खा रहा है। वे 1913 में ही खंडवा में आकर बस गए थे। वे शिक्षक थे लेकिन आजादी के आंदोलन से जुडऩे के बाद उन्होंने कलम के माध्यम से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे।

कई बार उनके साप्ताहिक प्रकाशन कर्मवीर पर अंग्रेजों ने छापा मारा और उनके आलेखों को जब्त कर लिया लेकिन कलम की धारा अविरल बहती रही। महात्मा गांधी, हरिवंश राय बच्चन, सुभद्राकुमारी चौहान उनसे पत्राचार करते थे। वे पत्र भी हिंदी में हिंदुस्तानियों की स्वतत्रंता की लड़ाई से संबंधित हैं, लेकिन वे सब पत्र फाइलों में कैद होकर रह गए।



नई पीढी का आह्वान किया
भारत के ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा।
विद्यार्थियों के लिए धरोहर साबित होगी
अगर माखनलाल चतुर्वेदी की अप्रकाशित पत्रकारिता से संबंधित सामग्री का प्रकाशन कर उसको पत्रकारिता के छात्रों के अध्ययन के लिए प्रस्तुत किया जाए तो यह एक धरोहर साबित होगी। प्रमोद चतुर्वेदी ने कहा कि अगर सरकार और साहित्यिक संगठन चाहें तो खंडवा में दादा के नाम से एक संग्राहलय बनाकर उसको सबके लिए रख सकते हैं।

ये भी पढ़ें

image