
प्रदेश में पहली बार मशीन से कपास चुनाई का प्रयोग खरगोन में हुआ है
खरगोन.
सफेद सोने की पैदावार के लिए प्रसिद्ध खरगोन जिले में किसानों द्वारा खेती में कई तरह के नवाचार किए जा रहे हैं।
इसी दिशा में बैजापुरा के किसानों ने ऐसे दो अनुपम और नायाब प्रयोग किए जो माली हालत को बदलने में क्रांतिकारी साबित होसकते हैं। पहला एक ऐसी विधि जो अब तक गेंहू, सोयाबीन, सरसों आदि में बुवाई उपयोगी मानी जाती थी। लेकिन अब सघन बुवाई (प्रणाली) का कपास बुवाई में उपयोग कर दोगुना उत्पादन लिया है। दूसरा कपास के उत्पादन में 100 प्रतिशत मैकेनाइज्ड फॉर्म पद्धति का प्रयोग किया। ये दोनों हो प्रयोग अपने आप में नए भी है और सफल भी है। एक प्रयोग से किसानों को दोगुना उत्पादन प्राप्त हो सकता है। तो दूसरे से कपास की उपज बिना मजदूरों की भीड़ के बगैर भी लेना संभव कर दिखाया है। नाबार्ड के सहयोग से किसान उत्पादक समूह बनाया। जिसमें 351 किसानों के फॉर्मर प्रोड्यूसर कंपनी को दो वर्षों में ही सफलता दिलाई। समूह ने गेहूं की विभिन्न किस्मों के बीजों से अच्छा मुनाफा लेने के बाद कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयोग किए।
एक एकड़ में 12 क्विंटल उत्पादन
एफपीओ के डायरेक्टर सिसौदिया ने बताया कि विश्व के 40 कपास उत्पादक देशों में भारत में कपास का रकबा सबसे अधिक है लेकिन उत्पादन के मामले में हम सबसे पीछे हैं। जबकि जलवायु और भूमि के लिहाज से हम बेहतर है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर अध्ययन किया गया। फिर 27 किसानों के साथ 248 एकड़ रकबे में सघन बुवाई से कपास लगाया गया। यह विधि बीज बोने की है जबकि सामान्य विधि में हम कपास के बीज एक निश्चित दूरी पर चोपते है। इसमें भले ही बीज अधिक लगता लेकिन उत्पादन लगभग दो गुना होता है। सघन पद्धती से प्रति एकड़ लगभग 12 क्विंटल का उत्पादन मिला। जबकि सामान्य विधि में अधिकतम उत्पादन 5 क्विंटल मिलता है। गुजरात और महाराष्ट्र में सघन बुवाई से 35 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन लिया जा रहा है। इस विधि का प्रदेश में पहला प्रयास किया गया।
पहली बार मशीनों से चुनाई
नाबार्ड के डीडीएम विजय पाटिल ने बताया कि प्रदेश में पहली कृषि में नवाचार करते हुए एफपीओ के किसानों के साथ मिलकर 100 प्रतिशत मैकेनाइज्ड फॉर्म से कपास लेने की योजना बनाई गई। बुवाई सीडर से कर कीटनाशक छिड़काव भी स्प्रेयर के द्वारा किया गया। इसके बाद कपास चुनाई में कॉटन पिकर मशीन का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा कल्टीवेशन भी मशीनों से किया गया। इसका प्रयोग 24 दिसंबर 2022 को कसरावद में बह्मणगांव के किसान महेंद्र चैनसिंह सिसौदिया के खेत पर हुआ है।
Published on:
17 Jan 2023 11:57 am
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