पौराणिक लेखों के अनुसार महेश्वर राजा सहस्त्रार्जुन, जिसने रावण को पराजित किया था उसकी राजधानी रहा है। ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था। कालांतर में यह शहर होलकर वंश की महान महारानी देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी भी रहा है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ी के लिए भारत भर में प्रसिद्द है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमें राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है।
इस शहर को महिष्मति नाम से भी जाना जाता है। महेश्वर का रामायण तथा महाभारत में भी उल्लेख मिलता है। देवी अहिल्या बाई होलकर (devi ahilya bai holkar) के कालखंड में बनाए गए यहां के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के जल में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है। महेश्वर इंदौर से ही सबसे नजदीक है। अपने धार्मिक महत्व में यह शहर काशी के सामान भगवान शिव की नगरी है। मंदिरों और शिवालयों की निर्माण श्रंखला के लिए इसे गुप्त काशी कहा गया है। अपने पौराणिक महत्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड तथा वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में इसका महिष्मति (mahishmati) नाम से उल्लेख मिलता है। महेश्वर के किले के अन्दर रानी अहिल्या बाई की राजगद्दी पर बैठी एक मनोहारी प्रतिमा रखी है।
पवित्र नगरी का दर्जा प्राप्त है महेश्वर को
इंदौर से 90 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा नदी के किनारे बसा यह ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल मध्य प्रदेश शासन द्वारा पवित्र नगरी का दर्जा प्राप्त है। अपने आप में कला, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं एतिहासिक महत्व समेटे यह शहर लगभग 2500 वर्ष पुराना है।