
Siyaram Baba death : सब कुछ दान देकर जीवनभर दक्षिणा में सिर्फ दस रुपए लेने वाले निमाड़ के संत सियाराम बाबा बुधवार को मोक्षदा एकादशी पर ब्रह्मलीन हो गए। 10 दिन पहले निमोनिया के बाद सनावद ले गए, पर उन्होंने अस्पताल में भर्ती रहने से इनकार कर दिया। आश्रम में इंदौर मेडिकल कॉलेज की टीम ने देखभाल की, पर सेहत नहीं सुधरी। सुबह 6:10 बजे देह छोड़(Siyaram Baba death) गए। सीएम डॉ. मोहन यादव सहित 2.5 लाख श्रद्धालुओं ने अंतिम दर्शन कर विदाई दी। नर्मदा तट पर अंतिम संस्कार किया गया।
भक्तों का कहना है कि बाबा(Siyaram Baba death) जब भी लोगों को चाय देते है तो उनकी केतली की चाय कभी खत्म नहीं होती। कड़ाके की सर्दी हो या फिर झुलसा देने वाली गर्मी बाबा हमेशा सिर्फ एक लंगोट में ही रहते, कभी भी बाबा को लंगोट के अलावा किसी और कपड़े में नहीं देखा।
सियाराम बाबा(Siyaram Baba death सहजता, सरलता, दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। वे प्रकृति के इतने निकट थे कि पूरा जीवन लंगोट में काट दिया। वे नर्मदा परिक्रमा करने वालों के सदाव्रत भंडारे या भक्तों के यहां से आने वाला भोजन ही ग्रहण करते। जितना थाली में परोसते उसका आधे से ज्यादा आश्रम के कुत्तों को ही दे देते। वे सभी को समान मानते इसलिए दान में सिर्फ 10 रुपए लेते। कोई ज्यादा राशि देता तो बाकी लौटा देते। नर्मदा तट का उनका आश्रम महेश्वर जलविद्युत परियोजना में डूब क्षेत्र में आया तो मुआवजे के 2.57 करोड़ रुपए नागलवाड़ी शिखरधाम मंदिर को दान कर दिए। जामघाट मंदिर को 40 लाख, पीपलगांव गुुरुकुल में 60 लाख, अयोध्या श्रीराम मंदिर को 2.50 लाख रुपए दिए। दान में मिले 40 लाख रुपए से नर्मदा घाट का निर्माण कराया।
बाबा महाराष्ट्र से आए। असली नाम कोई नहीं जानता। 1933 से नर्मदा किनारे 10 साल खड़े मौन तपस्या के बाद मुंह से पहली बार सियाराम का उच्चारण हुआ। तभी से लोग सियाराम बाबा कहने लगे। भक्त उन्हें 100 वर्ष से ज्यादा का मानते थे। वे हनुमानजी को पूरे मन से पूजते, रोज बिना चश्मे घंटों रामायण की चौपाई पढ़ते। लगातार 21 घंटे भी रामायण पाठ किया।
Published on:
12 Dec 2024 09:01 am
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