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खरगोन

मप्र के एक मात्र नवग्रह मंदिर खरगोन में, यहां गर्भगृह में पड़ती हैं सूर्य किरणें

-मप्र का पहला ऐसा मंदिर जहां सूर्य के उत्तरायण होते ही पूर्ण किरणें सबसे पहले 15 फीट भूतल में बने गर्भगृह में स्थापित सूर्य चक्र व सूर्य रथ पर पड़ती है, मकर संक्रांति पर पहुंचेंगे हजारों भक्त

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खरगोन

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Gopal Joshi

Jan 09, 2023

खरगोन.
मप्र का जिला खरगोन। यहां मुख्यालय स्थित कुंदा नदी तट पर बना 225 पुराना नवग्रह मंदिर शहर की पहचान है। यह प्रदेश का पहला ऐसा मंदिर हैं जहां सूर्य के उत्तरायण होते ही पूर्ण किरणें मंदिर के 15 फिट नीचे बने गर्भगृह तक पहुंचती हंै। जल्द ही इस प्राचीनतम पौराणिक व ज्योतिष महत्व वाले मंंदिर की तस्वीर बदलने वाली है। दिसंबर में खरगोन पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मंदिर परिसर को कॉरिडोर में तब्दील करने का निर्णय लिया है। इसके बाद यह मंदिर देशभर में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगा। जिला प्रशासन को इसका प्लान तैयार करने का जिम्मा दिया है। पौराणिक महत्व वाले इस मंदिर में मकर संक्रांति पर हजारों भक्त पहुंचेंगे।
पुजारी लोकेश द. जागीरदार ने बताया मंदिर की स्थापना व रचना 225 साल पहले उनके वंशज व पूर्वज कर्नाटक के शेषप्पा सुखावधानी वैरागकर ने प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों अनुसार की थी। उनकी छठी पीढ़ी के रूप में जागीरदार परिवार यहां की व्यवस्थाएं संभाल रहा है। पंडित जागीरदार ने बताया शेषप्पा देशाटन के लिए दक्षिण भारत आए और भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुंचे। यहां रात्रि विश्राम किया। अनके अनुसार माता बगलामुखी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर उक्त स्थान के नदी तट पर सरस्वती कुंड व बगलामुखी स्थान व सिद्ध शांति मंत्र के आधार पर मंदिर का निर्माण किया।

ऐसी है मंदिर रचना
मंदिर के तीन शिखर त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक है। मंदिर में नवग्रह की अधिष्ठात्री माता बगलामुखी स्थापित होने से पीताम्बरा ग्रहशांति पीठ कहलाता है।मंदिर में प्रवेश करते समय सात सीढिय़ा हैं, जो सात वार का प्रतीक है। इसके बाद ब्रह्मा विष्णु स्वरूप के रूप में मां सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं। गर्भगृह में जाने के लिए जहां 12 सीढिय़ा है जो 12 महीने की प्रतीक हैं। गर्भगृह में नवग्रह का दर्शन होता है। इसके बाद दूसरे मार्ग पर फिर 12 सीढिय़ां से ऊपर चढ़ते हैं, जो 12 राशियों की प्रतीक हैं। इस प्रकार से सात वार, 12 माह, 12 राशियां और नवग्रह इनके बीच में हमारा जीवन चलता है। उसी आधार पर मंदिर की रचना की गई है।

मकर संक्रांति का विशेष महत्व
मकर संक्रांति का ज्योतिष अनुसार विशेष महत्व है। ज्योतिष में ग्रहों और नक्षत्रों के साथ ही राशियों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है।मकर संक्रांति का पर्व सूर्य उपासना का दिन है। नवग्रह मंदिर सूर्य प्रधान मंदिर है। इसके चलते सूर्य उपासना के महापर्व मकर संक्रांति पद उदयमान साक्षात सूर्य व मंदिर में स्थापित सूर्य मूर्ति के दर्शन और पूजन का विशेष महत्व है। 15 जनवरी को मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होना शुरु होंगे। भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही धरातल से करीब 15 फीट नीचे गर्भगृह में स्थित सूर्य चक्र और सूर्यदेव के रथ से सूर्य की रोशनी गमन होना शुरू करेगी।

ऐसी है गर्भगृह की रचना
पुजारी जागीरदार ने बताया गर्भग्रह में सूर्य की मूर्ति बीच में विराजित है। मूर्ति के आसपास अन्य ग्रहों की मूर्तिया हैं। मकर संक्रांति पर मंदिर में विशेष पूजन और अनुष्ठान के साथ ही श्रद्धालुओं द्वारा तिल और गुड़ का भोग लगाया जाता है। मंदिर परिसर में ही कई श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सत्यनारायण की कथा कराते हैं।

मंदिर से जुड़ी यह कडिय़ां
तीर्थ स्थान : मंदिर के पास नदी तट पर सरसवती कुंड, विष्णु कुंड, सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, शिव कुंड है। इसके चलते इसकी गिनती तीर्थ स्थानों में आती है।
नवग्र्रह मेला : यहां वर्ष 1878 से नवग्रह महाराज की जतरा (मेला) लगती आ रही है। तब आकार छोटा था अब विशाल स्तर पर मेला लगता है।
पंचक्रोशी यात्रा : क्षेत्र की सुख-शांति, समृद्धि के लिए पोष कृष्ण एकादशी से पौष कृ़ष्ण अमावस्या तक पांच दिनी नवग्रह पंचक्रोशी पदयात्रा निकलती है।

आकार लेगी कॉरिडोर की कल्पना तो मिलेंगे नए आयाम
मंदिर के जीणोद्धार और यहां कॉरिडोर तैयार होगा। इसकी शुरुआत वर्ष 2023 में होगी। जिस हिसाब से यह परिकल्पना तैयार हुई है यदि वह धरातल पर उतरती है तो मंदिर की प्रसिद्धि को मप्र ही नहीं, देशभर में नए आयाम मिलेंगे।