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नक्सली, रिक्शा चालक, रसोइए के बाद अब पुस्तक लेखक

जयपुर साहित्य उत्सव से साहित्य जगत के नए नक्षत्र बने मनोरंजन बयापारी

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Kolkata West bengal

नक्सली, रिक्शा चालक, रसोइए के बाद अब पुस्तक लेखक

मनोरंजन बयापारी का 14 किताबों के लिए करार करना भारतीय भाषाओं के लेखकों में आश्चर्य पैदा कर रहा है। वेस्टलैण्ड पब्लिकेशन ने बयापारी की बांग्ला में लिखित 14 किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद और उनके अधिकार अधिग्रहण का करार किया है।
कोलकाता.

पहले, नक्सली फिर रिक्शा चालक उसके बाद रसोइया और अब लेखक के रूप में अपने पांव जमा चुके कोलकाता के लेखक मनोरंजन बयापारी का 14 किताबों के लिए करार करना भारतीय भाषाओं के लेखकों में आश्चर्य पैदा कर रहा है। वेस्टलैण्ड पब्लिकेशन ने बयापारी की बांग्ला में लिखित 14 किताबों का अंग्रेजी में अनुवाद और उनके अधिकार अधिग्रहण का करार किया है। लेखक और प्रकाशक, दोनों ने करार की रकम का खुलासा नहीं किया है। लेकिन निसंदेह यह करार कोलकाता के इस दलित लेखक का जीवन बदलने वाला है।
पिछले कुछ महीने तक मुक बधिरों के छात्रावास में रसोईया का काम कर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे बयापारी के जीवन का सफर नक्सल आंदोलन से शुरू हुआ। जेल जाने पर उन्होंने लिखाई-पढ़ाई शुरू की और जेल से लौटने के बाद उन्होंने अपने जीवन की दूसरी पारी रिक्शा चालक के रूप में शुरू की। इस बीच एक बुजुर्ग प्रोफेसर ने अपनी साहित्यिक पत्रिका में उनकी रचनाओं को जगह दे कर उनके जीवन की तीसरी पारी का दरवाजा खोल दिया और वे पश्चिम बंगाल में दलित लेखन के पथ प्रदर्शक बन गए। जयपुर साहित्य उत्सव में उनकी बांग्ला में लिखी पुस्तक बताशे बारुदेर गंधो का अंग्रेजी में अनुवाद देयर्स गनपाउडर इन द एयर ने उन्हें दुनिया के नजरों में लाया और उनकी जिंदगी बदल दी। मनोरंजन बयापारी ने कहा कि जेल में रहने के दौरान लिखाई-पढ़ाई शुरू होने के साथ ही उनका जीवन बदल गया था। लेकिन इस करार ने लेखन के लिए उनका मनोबल बढ़ा दिया है। अमेजन-वेस्टलैण्ड के लिए मनोरंज बयापारी की पहली पुस्तक बाताशेर बारुद गंधो का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले अरुणाभ सिन्हा ने कहा कि कहा कि बहुत से प्रकाशक बयापारी से करार करना चाहते है यहां तक कि बॉलीवुड के एक निदेशक ने भी उनसे संपर्क किया है। इससे पहले मनोरंज का नाम न ही बंगाल में जाने-माने लेखकों में शामिल हुआ था और न ही उनकी रचनाएं मुख्य धारा के प्रेस में प्रकाशित होती थीं।

जिजीविषा का अर्थ पूछा था प्रोफेसर से
जेल से रिहाई के बाद जीवन यापन के लिए रिक्शा चला रहे बयापारी के रिक्शे में एक दिन दोपहर एक बुजुर्ग प्रोफेसर बैठे थे। बयापारी ने उनसे जिजीविषा का बांग्ला अर्थ पूछा। प्रोफेसर ने उन्हें इस शब्द का अर्थ बताने के साथ अपनी साहित्यिक बांग्ला पत्रिका में रचना भेजने का आमंत्रण दिया। मनोरंजन ने बताया कि उन्होंने उक्त बांग्ला पत्रिका में अपनी पहली रचना रिक्शा चलाई (मैं रिक्शा चलाता हूं) भेजी जो प्रकाशित हुई। वहीं से उनके लेखन के सफर ने गति पकड़ी। मनोरंजन ने बताया कि साठ के दशक में जेल में कलम और कागज नहीं होने के कारण उन्होंने जमीन पर लकड़ी से बांग्ला के अक्षर लिखना और पढऩा सीखा।