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जहां राज्यपाल धनखड़ का घेराव हुआ उसी जेयू में हो चुकी है कुलपति की हत्या

जादवपुर विश्वविद्यालय (Jadavpur University) एक बार फिर चर्चा में है। इस बार यहां कुलाधिपति व राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) का घेराव हुआ है। रक्तरंजित छात्र आंदोलन के गवाह इस विश्वविद्यालय में नक्सलवाद के अभ्युदय के दौर में गांधीवादी कुलपति की हत्या भी हो चुकी है।

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जहां राज्यपाल धनखड़ का घेराव हुआ उसी जेयू में हो चुकी है कुलपति की हत्या

गांधीवादी प्रोफेसर गोपाल चंद्र सेन

कोलकाता। जादवपुर विश्वविद्यालय की बैठक में शामिल होने के लिए गए राज्यपाल व कुलाधिपति जगदीप धनखड़ का सोमवार को विश्वविद्यालय में घेराव हुआ। वहां छात्रों ने नारेबाजी की उन्हें काले झंडे दिखाए गए। आइए आपको विवि से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताएं जो शायद आप नहीं जानते होंगे। वो बीती शताब्दी के सातवें दशक के अंतिम साल थे। पश्चिम बंगाल में रक्तरंजित राजनीति का दौर शुरू हो चुका था। सशस्त्र आंदोलन के सहारे सत्ता परिवर्तन का नारा देने वाले नक्सली गांव खेतों से निकलकर महानगर कोलकाता के उच्च शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच चुके थे। किताबें रखने वाले बैग में पिस्तौल बम रखे जाते थे। शाम का अंधेरा होते ही महानगर के कॉलेज पाड़ा की सडक़ों पर पुलिस के बूटों की आवाज और बमबाजी सुनाई देने लगती थी। कॉलेज पाड़ा से दूर महानगर के जादवपुर विश्वविद्यालय की कमान उस समय गांधीवादी प्रोफेसर गोपाल चंद्र सेन के पास थी। वे विश्वविद्यालय के कुलपति थे। विश्वविद्यालय में नक्सली, माओवादी, चरम वामपंथी सक्रिय थे। जो विश्वविद्यालय की इंजीनियरिंग विभाग की परीक्षाएं नहीं होने देने पर आमादा थे। कुलपति गोपाल चंद्र सेन ने परीक्षाएं कराने का बीड़ा उठाया। उनका मानना था कि जो छात्र परीक्षाएं देना चाहते हैं उनके लिए परीक्षा आयोजित करनी ही होगी। यह उनका दायित्व है। परीक्षाएं हुईं। उनके नतीजे भी तैयार किए गए। पूजा की छुट्टियां आने वाली थीं सो कुलपति निवास से ही प्रोविजनल सर्टिफिकेट वितरण किया जाने लगा। यह सब विश्वविद्यालय में चरम वामपंथियों को कहां पसंद आने वाला था। बातें शुरू हुई तो कुलपति तक खबर भी आई कि उनकी जान को खतरा है। लेकिन गांधी जी के साथ 1930 के दशक से जुड़े गोपाल बाबू ने किसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था लेने से इंकार कर दिया। यहां तक की वे कुलपति को मिलने वाली सहुूलियत भी नहीं लेते थे, वाहन का प्रयोग नहीं करते थे। आवास से कार्यालय पैदल आना जाना करते थे।

कार्यकाल के आखिरी दिन ही हुई हत्या
30 दिसम्बर 1970 कुलपति गोपाल चंद्र सेन के कार्यकाल का आखिरी दिन था। आखिरी फाइल साइन कर शाम साढ़े बजे वे कार्यालय से आवास के लिए निकले, परिसर के तालाब के पास ही उनकी हत्या कर दी गई। हत्या किसने की, क्यों की, यह अब तक पता नहीं चल पाया। हत्या का आरोप उस समय के चरम वामपंथियों पर लगा लेकिन न कोई सबूत मिला न गवाह। एक गांधीवादी, अहिंसावादी, सादगी से तकनीकी शिक्षा को लोकप्रिय कर रहे मैकेनिकल इंजीनियर मौत की नींद सुला दिए गए।

महात्मा गांधी की सभाओं में संभालते थे माइक्रोफोन
गोपाल बाबू अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओ ंमें हाथ वाला माइक्रोफोन की जिम्मेदारी संभालते थे। वे ऐसे भारतीय इंजीनियर थे जो अमरीका के मिशिगन विश्वविद्यालय में वहां के मैकेनिकल इंजीनियरिंग के पुरोधा बोस्टन के साथ छात्रों को पढ़ाते थे। वे ऐसे भारतीय इंजीनियर थे जिसके मन में इंजीनियरिंग की स्वदेशी तकनीक छात्रों तक पहुंचाने की जीजिविषा कूट कूट कर भरी हुई थी। वे ऐसे मैकैनिकल इंजीनियर थे जिसने जादवपुर विश्वविद्यालय की मैकेनिकल लैब को अपनी पाठशाला समझते थे। वे ऐसे इंजीनियर थे जिनका प्रोडक्शन इंजीनियरिंग पर तैयार किया गया पाठ्यक्रम आज भी इस क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है।

अर्बन नक्सलों का गढ़
खुफिया विभाग से जुड़े रहे एक सेवानिवृत्त अधिकारी के मुताबिक विवि अर्बन नक्सलों का गढ़ बन चुका है। यहां के कई वरिष्ठ शिक्षकों के चरम वामपंथियों से संपर्क रखने और उनकी विचारधारा को प्रोत्साहित करने की सूचना एजेंसियों को मिलती रहती है। राज्य के कई हिंसक आंदोलनों से विवि के पूर्व छात्रों के जुड़े होने की सूचना भी सामने आ चुकी है।

जेयू के विवादों की टाइमलाइन
र्ष 2010- विवि की पूर्व छात्रा देवलीना चक्रवर्ती के विवि कैम्पस में पत्रकार वार्ता करने पर जोरदार विवाद। उसपर यूएपीए का मामला चल रहा था।
अगस्त 2013- विवि की पूर्व छात्रा जोइता दास को माओवादियों से संपर्क होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया
सितम्बर 2014- विवि में होक कलरब नाम का बड़ा आंदोलन हुआ। उस समय भी आंदोलन के नेपथ्य में चरम वामपंथियों का नाम सामने आया।
फरवरी 2016 - चरम वामपंथी व माओवादी समर्थक छात्र संगठन के सदस्यों ने रैली निकाली, भारत विरोधी नारे लगाए।
मई 2016- विवि में फिल्म निर्देशक विवेक अग्रिहोत्री की फिल्म बुद्धा इन ए ट्राफिक जाम के प्रदर्शन को लेकर हंगामा, अग्रिहोत्री का घेराव। फिल्म की पृष्ठभूमि अर्बन नक्सलवाद थी।
अगस्त 2017- परिसर में कुलपति का कई घंटों तक घेराव।
मार्च 2018 - श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा में तोडफ़ोड़, रेडिकल के कई समर्थक गिरफ्तार।
20 सितम्बर 2019- केन्द्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो का घेराव, उनपर हमला।