
कोलकाता. मूर्धन्य साहित्यकार, हिंदी के लोकप्रिय और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह कोलकाता को दूसरा घर मानते थे और उनका जाना एक युग का अवसान है। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय कोलकाता केंद्र की ओर से साल्टलेक, एकतान परिसर में उनकी याद में मंगलवार को श्रद्धांजलि सभा हुई, जिसमें उनकी हिंदी सेवा और रचनाधर्मिता को याद किया गया। श्रद्धांजलि सभा में केंद्र प्रभारी प्रो. कृपाशंकर चौबे ने कहा कि विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र को उसके स्थापना काल से ही केदारनाथ का भरपूर अकादमिक सहयोग मिलता रहा। वे इस केंद्र को अपना केंद्र मानते थे। चौबे ने केदारनाथ के साथ बिताए आत्मीय समय को याद करते हुए कहा कि वे मां और गांव के मूल्यों के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे। हिंदी विश्वविद्यालय के कोलकाता केंद्र की अतिथि अध्यापक प्रो. चंद्रकला पांडेय ने कहा कि केदारनाथ के जाने से होने वाली क्षति के भाव को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं। वे हिंदी के स्तंभ रचनाकार की भूमिका में थे। अतिथि अध्यापक प्रो. अमरनाथ ने कहा कि हिंदी साहित्य के लिए उनका निधन बहुत बड़ी हानि है, उनकी कमी को पूरा करना संभव नहीं होगा। मिलने पर भोजपुरी में ही बात करते थे। केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुनील कुमार ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में केदारनाथ से जुड़े दिनों को याद करते हुए उनकी अध्यापन शैली के असर के बारे में बताया। श्रद्धांजलि सभा में अतिथि अध्यापक समीर गोस्वामी, कंप्यूटर शिक्षक पूजा शुक्ला, क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पीयूष पतंजति सहित केंद्र के शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद थे। सभा के अंत में दो मिनट मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
उधर मिदनापुर में शोकसभा
मिदनापुर. विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से शोकसभा हुई, जिसमें 2 मिनट का मौन रखा गया। विभागाध्यक्ष प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि केदारनाथ हिंदी काव्य परम्परा के सबसे ज्यादा समादृत कवि थे और उन्होंने हिंदी कविता को लोकप्रिय बनाने में मुख्य भूमिका निभाई। डॉ. संजय जायसवाल ने उनके साथ बिताए गए क्षणों को याद करते हुए कहा कि केदारनाथ हिंदी कविता के मानक-सौम्य और आत्मीयता के भाव से भरे थे। दीपनारायण ने कहा कि हिंदी साहित्य ने एक हीरा खो दिया। पुष्पा मल्ल ने कहा कि वे जन के कवि थे। शोधार्थी मधु सिंह ने कहा कि उनकी कविताओं में जीवन जीने की प्रेरणा है और उनका जाना एक युग का अवसान है।
अलविदा केदारनाथ---....‘मेरी सबसे बड़ी पूंजी है, मेरी चलती हुई सांस’
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि केदारनाथ सिंह (86) का निधन दिल्ली के एम्स अस्पताल में सोमवार रात को हुआ था। 2013 में ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले वे हिन्दी के 10वें लेखक थे। यूपी के बलिया जिले के चकिया गांव में 1934 में जन्में केदारनाथ जेएनयू में हिंदी विभाग के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने हाथ, जाना, दिशा, बनारस आदि जैसी कई चर्चित रचनाएं लिखीं। इनमें से मुख्य रचना पूंजी भी थी, जिसमें उन्होंने सबसे बड़ी पूंजी अपनी चलती हुई सांस बताया। सांस की तकलीफ के कारण उन्हें 13 मार्च को एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग में भर्ती किया गया था। ‘अंत महज एक मुहावरा है’ और ‘दिन के इस सुनसान पहर में रुक सी गई प्रगति जीवन की’ के रचयिता को ‘यह जानते हुए कि जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है’ बचाया न जा सका। बीएचयू से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी करने वाले सिंह ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले हिंदी के 10वें लेखक थे। उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार , व्यास सम्मान पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
Published on:
20 Mar 2018 07:36 pm
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