24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन, नियम है ढाई किलो ढो रहे 6 से 8 किलो लाद कर नौनिहाल जा रहे स्कूल

School bag korba : पत्रिका के पड़ताल मेें खुलासा, बच्चों के वजन से आधा है बैग का बोझ - बड़े निजी स्कूल के बच्चे सबसे अधिक परेशान

3 min read
Google source verification
पत्रिका के पड़ताल मेें खुलासा, बच्चों के वजन से आधा है बैग का बोझ - बड़े निजी स्कूल के बच्चे सबसे अधिक परेशान

बस्ते के बोझ तले दब रहा बचपन, नियम है ढाई किलो ढो रहे 6 से 8 किलो लाद कर नौनिहाल जा रहे स्कूल

कोरबा. नौनिहालों पर बस्तों का बोझ बढऩे लगा है। उनकी उम्र से आधा बैग का बोझ पीठ पर है। 6 से आठ किलो लाद कर बच्चे स्कूल जा रहे हैं। जितना बड़ा स्कूल उतना बड़ा बैग। बच्चों में अब भी से पीठ दर्द की समस्या सामने आने लगी है।
जिले के निजी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों का वजन और बस्ते के वजन से उनकी तुलना करने पर हैरान करने वाली बातें सामने आई हैं। तीसरी से छठवीं तक के बच्चे अपने कुल वजन के 25-30 प्रतिशत से भी ज्यादा का हिस्सा हर रोज स्कूल बैग के रूप में ढोकर स्कूल जा रहे हैं। पत्रिका टीम ने मंगलवार को शहर के कई प्रमुख स्कूलों के आसपास अभिभावकों की मौजूदगी में बच्चों के बैग का वजन किया। तो क्लास टू के बच्चे के बैग का वजन साढे 7 किलो मिला। जबकि उसकी माता ने बताया कि बच्चे का वजन महज साढ़े 9 किलो है। इसी तरह अधिकांश जगह बच्चों के वजन से आधा उनके बैग का वजन मिला।

इस तरह करें संतुलित
चिकित्सक कहते हैं कि शरीर के वजन की तुलना में 10 से 15 फीसदी ही बैग का वजन होना चाहिए। जब एक भारी बैग को कंधे से गलत तरीके से उठाया जाता है तो कंधे पर बोझ बढ़ता है। इसलिए इस तरह के उपाय करना जरूरी है।
- एक लाइटवेट बैग ही बच्चों के लिए लेना चाहिए, जो खुद भारी ना हो।
- बैग में कमर बेल्ट होनी चाहिए। इसका उपयोग करने से पूरे शरीर में अधिक समान रूप से वजन को वितरित करने में मदद करेगा।
- बैग को पूरे दिन की पुस्तकों को ले जाने की बजाएं बच्चों को स्कूल में इसकी सुविधा मिलनी चाहिए कि वह पुस्तकें रखे सके।

Read More : पति को छोड़ चार साल से मायके में रह रही थी पत्नी, गुस्साए पति ने एक रात ये किया...

स्कूल के अनुसार बैग के वजन में अंतर
पड़ताल करने पर पता चला कि एक ही क्लास की किताबों का वजन स्कूल बदलने पर अलग-अलग हो जाता है। हर स्कूल अपने अनुसार किताबें खरीदवाते हैं। जिसके कारण हर स्कूल में कई तरह की किताबों से अध्यापन होता है। जिसके कारण ही कक्षा के स्कूल बैग का वजन स्कूल बदलने पर बदल जाता है

कमीशन ने बढ़ाया बच्चों का बोझ
पुस्तक दुकानों व स्कूलों के बीच के कमीशन ने बच्चों का बोझ बढ़ा दिया है। संबंधित पब्लिकेशन की किताबें खरीदने पर एक तय कमीशन की सौदेबाजी होती है। अभिभावकों को एक ही दुकान से किताबें खरीदने को कहा जाता है। हर क्लास के लिए बंडल पहले ही तैयार रखा होगा है। इनके दाम भी बेहद ज्यादा होते हैं। इस बंडल में स्कूल के लिए अलग व घर के लिए अलग किताब व नोटबुक होते हैं। कई तो गैरजरूरी होते हैं। जिन्हें अभिभावकों को मजबूरन खरीदना पड़ता है।

Read More : Chhattisgarh Elephant : 24 घंटे के रेस्क्यू के बाद पकड़ में आया उत्पाती हाथी, भेजा जाएगा सरगुजा के तिमोर तिंगला अभ्यारण्य

वर्जन

- लगातार पीठ पर वजन लादकर चलने के लिए इसे मैनेज करना पड़ता है। बच्चे सामने की तरफ झुक कर चलने के आदि हो जाते हैं। इसके साथ ही शरीर की जिस हड्डी पर भार पड़ता है, वहां का विकास धीमा होता है। बस्ते का बोझ ज्यादा होने से बच्चों के सामान्य शारीरिक विकास के साथ ही उनकी उचाईं पर भी फर्क पड़ेगा।
सतदल नाथ, हड्डी रोग विशेषज्ञ,

काव्या स्वर्णबेर, अभिभावक

- 7 किलो मैं नहीं उठा सकता, लेकिन बेटी को हर रोज पीठ पर लाद कर लाना पड़ता है इससे मैं खुद हैरान हूं। इस संबंध में स्कूल प्रबंधक से मिलकर बात की जाएगी। कुछ पुस्तकों को भी कम करने कहा जाएगा।
सतिश पाठक, अभिभावक

Chhattisgarh School से जुड़ी खबरें यहां पढि़ए ...

Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर Like करें Follow करें Twitter और Instagram पर या ताजातरीन खबरों, Live अपडेट के लिए Download करें Patrika Hindi News App