21 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पांच मिनट देर से पहुंचे बच्चे तो प्राचार्य ने स्कूल में नहीं दिया प्रवेश, दो घण्टे गेट के बाहर इंतजार कर लौटे वापस

बच्चों के लिए प्रवेश द्वारा बंद कर गेट में ताला जड़ दिया गया

3 min read
Google source verification

कोरबा

image

Shiv Singh

Dec 01, 2018

बच्चों के लिए प्रवेश द्वारा बंद कर गेट में ताला जड़ दिया गया

बच्चों के लिए प्रवेश द्वारा बंद कर गेट में ताला जड़ दिया गया

कोरबा. कड़कड़ाती ठंढ में सुबह पांच मिनट की देर से स्कूल पहुंचना बच्चों को इतना भारी पड़ गया कि उन्हें स्कूल में प्रवेश से ही वंचित कर दिया गया। प्राचार्य के आदेश पर देर से स्कूल पहुंचने वाले बच्चों के लिए प्रवेश द्वारा बंद कर गेट में ताला जड़ दिया गया। जिसके कारण सरकारी स्कूल में पढऩे में वाले बच्चे मायूस होकर दो घण्टे इंतजार कर वापस अपने-अपने घर लौट गए।


यह पूरा मामला शासकीय हाई स्कूल गोपालपुर का है, जहां कि प्राचार्य सीमा भारद्वाज अपनी कारगुजारियों के अक्सर विवादों में रहती हैं। इस बार प्राचार्य ने तुगलकी फरमान जारी करते हुए 5 मिनट लेट से स्कूल पहुंचेलगभग 40 बच्चों को स्कूल के भीतर प्रवेश नहीं दिया। दरअसल शनिवार के दिन सरकारी स्कूलों के संचालन का समय सुबह 7.30 बजे से निर्धारित है। इसलिए शनिवार की सुबह शासकीय हाई स्कूल में पढऩे वाले लगभग 40 बच्चे 7.30 की बजाए 5 मिनट लेट से स्कूल पहुंचे थे।

Read more : घटते तापमान ने बढ़ाई चिंता, ठंढ में बच्चों पर कोल्ड अटैक का खतरा

जिन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं दिया गया। प्राचार्य के आदेश से बच्चों को गेट के बाहर कर उसमें ताला जड़ दिया गया। जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित रही। इसकी सूचना पर गोपालपुर निवासी रमेश दास महंत व क्षेत्र के अन्य जानगरूक लोग प्राचार्य से चर्चा करने स्कूल पहुंचे थे, जिसे स्कूल के भृत्य ने भीतर आने नहीं दिया।

गेट का ताला प्राचार्य के आदेश से 11 बजे खुलने की जानकारी दी गई। इस संबंध में रमेश दास महंत का कहना है कि प्राचार्य के खिलाफ लापरवाही और मनमानी की शिकायत उसने पूर्व में की थी, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। प्राचार्या के इस रवैय्ये से अभिभावक व स्थानीय ग्रामीणों में नाराजगी है।

लेट आने पर वापस भेजने का कोई आदेश नहीं
निजी हो या सरकारी बच्चों के स्कूल पहुंचने पर उन्हें वापस लौटा देने का कोई नियम नहीं है। ना ही इस विषय में कोई लिखित आदेश है। बावजूद इसके बच्चों को स्कूल से किस नियम के तहत वापस भेजा गया, यह सवाल उठ रहा है। ज्यादातर प्राचार्य अक्सर किसी भी कार्य के लिए लिखित आदेश की बात कहते हैं, लेकिन इस मामले में बिना किसी आदेश के बच्चों को वापस भेज दिया गया। सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले निचले व गरीब तबके से आते हैं। इसलिए बात जब इनके अधिकार की हो तब नियमों को अपने अनुसार इस्तेमाल कर लिया जाता है। जबकि ऐसा यदि किसी निजी स्कूल के प्राचार्य ने किया होता तो निश्चित तौर पर बवाल मच गया होता। लेकिन यहां तो स्थानीय निवासी जब बात करने पहुंचे तब गेट खोलने से ही इंकार कर दिया गया।

पहले ही कर ली थी फील्डिंग
गेट के बाहर खड़े बच्चों ने दबी जुबान यह स्वीकार किया कि स्कूल में अक्सर ऐसा होता है। लेकिन इस बार स्थानीय निवासियों के साथ कुछ अन्य लोगों के ऐन वक्त पर स्कूल पहुंच जाने के कारण मामला खुल गया। फील्डिंग तगड़ी रखने के लिए प्राचार्य सीमा भारद्वाज ने खुद ही डीईओ सतीश पांडे को फोन कर बता दिया कि कुछ बच्चे देर से स्कूल आए थे, जिन्हें वापस लौटा दिया गया है। ताकि स्कूल में अनुशासन बना रहे और बच्चों को सबक मिल जिससे कि वह अगले दिन ठीक समय पर स्कूल पहुंचे। यहा दांव काम भी आया क्योंकि जब डीईओ से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि प्राचार्य ने इसकी सूचना दे दी है।


स्कूल का परिणाम निराशाजनक
हाई स्कूल गोपालपुर में पदस्थ सीमा भारद्वाज की इसी मनमानी व हिटलरशाही की वजह से पिछले वर्ष के स्कूल का परीक्षा परिणाम महज 40 फीसदी था। स्कूल में शिक्षा का ग्राफ लगातार गिर रहा है। प्राचार्य के खिलाफ लगातार मनमानी और भर्राशाही की शिकायतें मिल रही है। इसके बाद भी किसी तरह की कार्रवाई न होना विभागीय संरक्षण की ओर इशारा कर रही है।

पोताई में घोटाला करने का भी है आरोप
ज्ञात रहे कि इससे पूर्व भी तुमान निवासी फिरतराम पटेल नामक एक व्यक्ति ने प्राचार्य सीमा भारद्वाज पर साक्षरता मिशन की डीपीओ रहते हुए लाखें के पोताई घोटाला करने का सनसनीखेज आरोप लगाया था। दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ इसकी शिकायत कलेक्टर से लेकर एसपी से भी की थी। इस मामले में जांच तो शुरू हुई लेकिन कार्रवाई अब तक नहीं हो पाई है।

आठ साल से गोपालपुर में पदस्थ
निर्वाचन आयोग से शिकायत के बाद भी प्राचार्य सीमा भारद्वाज का स्थानांतरण हाई स्कूल से कहीं और नहीं किया गया है। जबकि राजपत्रित अधिकारी होने के कारण इनका हर तीन साल में स्थानांतरण अनिवार्य तौर पर किया जाना चाहिए। रसूख और उंची पहुंच के कारण अब प्राचार्य की मनमानी स्कूल में में चरम पर पहुंच चुकी है। पांच मिनट लेट होने पर भी बच्चों को सीधे स्कूल से वापस घर भेज दिया जाता है। बच्चों से बातचीत करने पर पता चला कि इस तरह अक्सर उन्हें जरा सी भी देर होने पर घर भेज दिया जाता है।