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छत्तीसगढ़ की इस पहाड़ी में जटायू का बसेरा, नजारा देखकर वाइल्ड लाइफ की टीम के उड़ गए होश

Jatayu of Ramayana period: वाइल्ड लाइफ की नजर इन गिद्धों को बचाने पर है। इसके लिए गिद्धों के प्राकृतिक संरक्षण और बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्था आईयूसीएन आगे आई है। वाइल्ड लाइफ से संबद्ध इस संस्था की टीम ने शनिवार को वनमंडल कटघोरा के उस पहाड़ी का दौरा किया जो जटायूराज का रहवास स्थल है।

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Found Jatayu in CG: प्राकृतिक संसाधन से भरपूर कोरबा के जंगल विलुप्त होने के कगार पर खड़ी कई प्रजातियों के पशु-पक्षियों के रहवास स्थल भी हैं। इसमें लंबी चोंच वाले गिद्ध भी शामिल हैं। इस प्रजाति के कटघोरा वनमंडल के जटगा स्थित एक पहाड़ी पर 50-51 गिद्ध मिले हैं जो पहाड़ी के ओट में रहते हैं।

वाइल्ड लाइफ (Wild Life) की नजर इन गिद्धों को बचाने पर है। इसके लिए गिद्धों के प्राकृतिक संरक्षण और बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली संस्था आईयूसीएन आगे आई है। वाइल्ड लाइफ से संबद्ध इस संस्था की टीम ने शनिवार को वनमंडल कटघोरा के उस पहाड़ी का दौरा किया जो जटायूराज (Jatayuraj) का रहवास स्थल है। टीम ने गिद्धों को लेकर पहाड़ी के आसपास रहने वाले लोगों के साथ बैठक की। इनके संरक्षण और बचाव को लेकर बातचीत किया। लोगों से कहा गया कि वे अपने मवेशियों के इलाज में डाइक्लोफिनेक (Diclofenac) का इस्तेमाल न करें।

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वाइल्ड लाइफ टीम के सदस्य अभिजीत शर्मा ने बताया कि किसी जानवर को डाइक्लोफिनेक का इंजेक्शन लगा हो और अगर उस जानवर की मौत हो जाए तो इसके मांस को खाकर गिद्धों की किडनी फेल हो जाती है और उनकी मौत हो जाती है। टीम ने इस कार्य में वन विभाग से भी मदद मांगी। क्षेत्र में इस इंजेक्शन की बिक्री न हो इस पर नजर रखने के लिए वन विभाग से अपील किया ताकि विलुप्तता की कगार पर खड़ी गिद्धों के इस प्रजाति को बचाई जा सके।

भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां पायी जाती हैं। सभी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर खड़ी हैं। इसमें कटघोरा के जटगा पहाड़ी पर पायी गई लंबी चोंच वाले गिद्ध भी शामिल हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में भी इस प्रजाति के गिद्ध रहते हैं, जिन्हें इंडियन लांग्स वील्ट वल्चर के नाम से जाना जाता है। यह प्रजाति तेजी से विलुप्त हा रही है इसका बड़ा कारण पांच साल की आयु में इनमें प्रजनन क्षमता को विकसित होना और एक बार जोड़ा बना लेने के बाद जीवन भर साथ रहने के साथ एक वर्ष में एक ही अंडा देना है। इससे इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।

विलुप्त होने के कगार पर खड़े गिद्धों को बचाकर उनकी संख्या बढ़ाने के लिए वाइल्ड लाइफ की टीम प्रयास कर रही है। जटगा के पहाड़ में रहने वाले इन गिद्धों पर नजर रखने के लिए वाइल्ड लाइफ की योजना गिद्धों के शरीर पर एक कम्प्यूटराइज्ड चिप लगाने की है ताकि इनके उड़ान और इनकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके और इनकी आबादी को बढ़ाई जा सके। कोरबा जैसे जगह पर गिद्धों के मिलने से वन विभाग के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए एक उम्मीद की किरण नजर आ रही है।

कटघोरा के वनमंडलाधिकारी कुमार निशांत ने कहा कि जटगा क्षेत्र की एक पहाड़ी में इंडियन लांग्स बिल्ड वल्चर (लंबी चोंच वाला गिद्ध) 50 से 51 की संख्या में रहते हैं। इनके संरक्षण और बचाव के लिए आईयूसीएम नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था के एक्सपर्ट पहुंचे थे। उनसे विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है।

1990 के आसपास गिद्ध आसानी से लोगों को नजर आ जाते थे, लेकिन इसी दशक में मवेशियों पर जहरीली दवाओं का इस्तेमाल जैसे डाइक्लोफिनेक का इस्तेमाल शुरू हुआ। सस्ती होने के कारण यह दवाईयां बाजार में आसानी से लोगों को उपलब्ध होने लगी और इसका गंभीर असर गिद्धों (vultures) पर पड़ा। मृत मवेशियों के शरीर में डाइक्लोफिनेक मांस के जरिए गिद्धों की पेट तक पहुंच गया और उनकी किडनी को फेल करने लगा, जिससे गिद्धों की मौत शुरू हुई। विशेषज्ञ बताते हैं कि 1990 से लंकर सन् 2000 तक गिद्धों की 99 प्रतिशत आबादी खत्म हो गई। अब भारत में गिनती के स्थान पर ही गिद्धों का रहवास है। इन्हें सुरक्षित रखना पशु-पक्षी प्रेमियों के लिए चुनौती है। कोरबा के कटघोरा में गिद्धों के मिलने और उसके बचाव के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के सामने आने से वन विभाग उत्साहित है।

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