कोरबा

एसईसीएल की 12 छोटी खदानों से खनन शुरु होने में बार-बार दखल

कोरबा. एसईसीएल की 12 ऐसी परियोजनाएं हैं जहां से कोयला का उत्पादन पूरी तरह से नहीं हो पा रहा है। कुछ पर्यावरण स्वीकृति की वजह से अटके हुए हैं तो कुछ स्थानीय भूविस्थापितों के आंदोलन के कारण खनन शुरु नहीं हो पा रहा है। टार्गेट को लेकर मेगा प्रोजेक्ट पर बढ़ रहा दबाव

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Jan 08, 2023
वित्तीय वर्ष गुजरने में सिर्फ तीन महीने ही शेष

एसईसीएल के मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, कुसमुंडा, दीपका से एक तरफ खनन पर जोर है तो दूसरी तरफ एक दर्जन ऐसी योजना है जहां कोयला खनन या तो शुरु नहीं हो पा रहा है, या फिर शुरु होने के बाद बार-बार बंद करना पड़ रहा है। कंपनी का लक्ष्य था कि इन खदानों को हर हाल में इस वर्ष २०२२-२३ तक पूरा कर लिया जाएगा। कुछ जगह काम शुरु भी हो गया है, लेकिन अधिकांश जगह स्थिति जस की तस ही है।

गर्मी में बढ़ेगी कोयले की डिमांड
पिछली बार गर्मी शुरु होते ही बिजली की डिमांड अपने उच्चतम स्तर तक पहुंच गई थी। प्रदेश के साथ-साथ अन्य बड़े शहरों के पॉवर प्लांट तक कोयले की आपूर्ति करने के लिए एसईसीएल की खदानों पर दबाव था। कंपनी इसे देखते हुए इस वित्तीय वर्ष में छोटे-छोटे पॉवर प्लांट को उत्पादन में लाना चाह रही थी ताकि कोयले की सप्लाई में किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े।

करीब 30 मिलियन टन होना है खनन
12 छोटी परियोजनाएं जो विलंब से चल रही है उनसे सालाना करीब 30 मिलियन टन कोयले का खनन होना है। इसमें सबसे बड़ा छाल और जगन्नाथपुर से करीब 10 मिलियन टन हर साल खनन होगा। हालांकि जगन्नाथपुर से खनन शुरु कराया गया था, बीच में फिर से कुछ भूविस्थापितों ने काम बंद करा दिया था।

ये हैं वे 12 परियोजनाएं
खदान क्षमता
जगन्नाथपुर 3
सराईपाली 1.40
अम्बिका 1
छाल 6
आमाडांड 4
कंचन 2
राजनगर १.७०
अमेरा १
अमगांव १
करतली २.५
बदगेवा विस्तार .७५
बिंकारा ०.३६

भूविस्थापितों का मुद्दा नहीं सुलझ पा रहा
कंपनी और जिला प्रशासन स्तर पर कई बार भूविस्थापितों को लेकर बैठक हो चुकी है। हर बार यही आश्वासन मिलता है कि जल्द की मामला सुलझ जाएगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। एक तरफ लोग रोजगार और पुर्नवास को लेकर इंतजार में है तो दूसरी ओर एसईसीएल अपनी इन परियोजनाओं को समय से शुरु करने में पिछड़ती जा रही है।

Published on:
08 Jan 2023 09:00 pm
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