कोटा

चंबल में फिर दिखा उदबिलाव का जलवा, 2 परिवार के 10 सदस्यों ने बाढ़ से संघर्ष कर कायम रखा अपना वजूद

Beaver, Chambal Rivar, दुर्लभ प्राणियों की श्रेणी में शामिल ऊदबिलाव बहुत ही बहादुर होते हैं। उन्होंने बाढ़ से संघर्ष कर अपने आप को बचा लिया है।

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Nov 02, 2019
चंबल में फिर दिखा उदबिलाव का जलवा, 2 परिवार के 10 सदस्यों ने बाढ़ से संघर्ष कर कायम रखा अपना वजूद

कोटा. चम्बल किनारे ऊदबिलाव ( Beaver ) ने फिर से जलवा बिखेरना शुरू कर दिया है। ऊदबिलाव मोहक अठखेलियों से आकर्षित कर रहे हैं। सितम्बर में चम्बल ( Chambal Rivar ) में बाढ़ आने के बाद से ही वह नजर नहीं आ रहे थे, ( Flood in Chambal Rivar ) इससे वन्यजीव प्रेमी व विभाग काफी चिंतित था, लेकिन दीपावली ( Deepavali Festival ) से पहले चम्बल में फिर से ऊदबिलाव नजर आए हैं। वन्यजीव विभाग के अनुसार ( Wildlife department ) भैंसरोडगढ़ अभयारण्य में करीब 10 ऊदबिलाव हैं। ( Bhainsrorgarh Wildlife Sanctuary ) बाढ़ के कारण इन पर खतरा मंडरा रहा था। विभाग की प्रेमकंवर शक्तावत बताती हैं कि बाढ़ आने के बाद ऊदबिलाव (Beaver in Chambal Wildlife Sanctuary ) कई दिन तक नहीं दिखे, इससे चिंता बढ़ गई थी, लेकिन उन्होंने बाढ़ से संघर्ष कर अपने आप को बचा लिया है।

चम्बल की वादियों में बाघ, घडिय़ाल व मगरमच्छों की तरह से ऊदबिलाव भी आकर्षण का केन्द्र हैं। नेचर प्रोमोटर ए.एच. जैदी के अनुसार यह काफी अद्भुत प्राणी है, इसी के चलते इन्हें देखने व कैमरे में कैद करने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। मई-जून में अजमेर, दिल्ली, जयपुर समेत अन्य जगहों से लोग इन्हें देखने आए थे। हालांकि बारिश में कुछ दिन नजर नहीं आए, लेकिन अब दिखने लगे हैं तो फिर से पर्यटकों को आकर्षित करेंगे।


दो परिवार हैं
वन्यजीव गणना में भैंसरोडगढ़ अभयारण्य में इनके दो परिवार हैं। इसमें 10 सदस्य हैं। एक परिवार में 7 व दूसरे में 3 सदस्य हैं। वर्ष1998 में जवाहर सागर, जावरा, एकलिंगपुरा समेत कोटा बैराज से राणाप्रताप सागर तक इनकी काफी संख्या थी। 70 के दशक में कुन्हाड़ी क्षेत्र में चम्बल में दिखाई देते थे। जैदी के अनुसार चम्बल की अपस्ट्रीम में इनकी संख्या करीब 35 से 40 है।

ऐसे करते हैं अपनी ओर आकर्षित
चम्बल की गहराई से निकलकर ऊदबिलाव किनारे पर स्थित चट्टानों तक आ जाते हैं। मछलियों का शिकार कर उन्हें उछालकर या फिर पानी में पीठ के बल लेटकर खाने का इनका अपना ही तरीका है। मछलियों का शिकार, खड़े होकर खतरे को देखना, पानी व चट्टानों पर आ जाना आकर्षित करता है।

जब चुनाव में ओटर्स ने मांगे थे वोट
गत विधानसभा चुनाव में जिला निर्वाचन अधिकारी की ओर से ओटर्स (उदबिलाव) के साथ मतदाता जागरूकता के संदेश प्रसारित किए गए थे। सभी को मतदान करने के लिए प्रेरित किया गया। जगह-जगह ऑटर्स के होर्डिंग्स भी लगाए गए। इस कारण ओटर्स ने सभी का ध्यान खींचा और चर्चा में बना रहा।


चुलबुले और फुर्तीले होते हैं ये जलमानुष
ऊदबिलाव जल व थल दोनों की जगह पर बड़े आराम से रह लेते हैं। इसकी लम्बाई करीब एक मीटर होती है। इसे जलमानुष भी कहते हैं। मछलियों का शिकार करना इन्हें विशेष पसंद होता है। यह परिवार के साथ रहता है। इनका प्रजनन काल अक्टूबर से दिसम्बर तक होता है। जनवरी में बच्चे होते हैं। खासियत यह है कि वयस्क होते ही यह जोड़ा बनाकर पेड़ों की जड़ों, चट्टानों के बीच मांद बनाकर अस्थाई घर बना लेते हैं। बच्चे होने के बाद ये वापिस परिवार के साथ आ जाते हैं। इन्हें स्वच्छ पानी पसंद है।

दुर्लभ प्राणियों की श्रेणी में शामिल ऊदबिलाव की इस क्षेत्र में मौजूदगी वाकई उत्साहित करने वाली है। पिछले दिनों चंबल में आई बाढ़ के बाद ये कई दिनों तक नहीं दिखे। अब फिर से दिखे हैं, यह काफी सुखद है। क्षेत्र में इनकी संख्या में इजाफा करने का प्रयास कर रहे हैं।
अनुराग भटनागर, सहयक वन संरक्षक, वन्यजीव विभाग

Published on:
02 Nov 2019 05:03 pm
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