
लहकी नृत्य करते सहरिया आदिवासी।
अंधेरा घिरने लगा...खामोशी पसरने लगी... तभी दूर जंगलों में एक धुन छिड़ी... एक साथ सैकड़ों कदम मचल उठे... हाथ एेसे मचले कि साफे झूमने लगे...कर्मों के देवता से जीवन में उजाले की कामना ले हर लब पर दुआएं तैरने लगीं... अच्छी फसलों और निरोगी काया के लिए कोटा के अजरोडा गांव में एक बार फिर दस हजार साल से भी ज्यादा पुरानी 'लहकी' सजी। आदिम लोक नृत्य की इस विधा पर लोग रात भर नृत्य करते हुए इंद्र और कर्म देवता को मनाने में जुटे रहे।
लहकी पर झूमते हुए मांगी मन्नतें
आदिवासियों ने अब भी अपनी अनुपम संस्कृति और सभ्यता को बचा कर रखा है। चाहे शादी-ब्याह हो या फिर खुशी का कोई और मौका गाहे-बगाहे वह प्रकृति से जुड़े इन अनूठे आयोजनों को जीवंत करते नजर आ जाते हैं। ऐसे में बात जब पूरे परिवार के पालन पोषण और मेहनत के फल की हो तो फिर आदि देवता से खुशियों की मन्नत मांगने का उत्साह और भी बढ़ जाता है। सदियों से कोटा और आसपास के इलाकों में बसे आदिवासी सहरिया लोग बारिश का दौर शुरू होते ही लहकी नृत्य का आयोजन करते हैं। इस लोक नृत्य के जरिए वह इंद्र देवता अच्छी फसलों का वरदान मांगते हैं। वहीं कर्म देवता से उनके द्वारा साल भर की गई मेहनत के अच्छे परिणाम।
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अजरोडा में रात भर सजी लहकी
कोटा के अजरोड़ा गांव में बीती रात लहकी का आयोजन किया गया। जिसमें अजरोडा के आसपास बसे सहरिया आदिवासियों के दर्जनों गांव के सैकड़ों लोग शामिल हुए। बात खुशियों का वरदान मांगने की थी, इसलिए गैर सहरिया जाति के लोगों ने भी लहकी के आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। रात घिरते ही लोगों ने एक बड़ा सा घेरा बनाया और लहराते-झूमने हुए 10 हजार साल से भी ज्यादा पुराना लहकी नृत्य शुरू किया। प्राचीन वाद्य यंत्रों और सामुहिक सुरों में छिड़ी तान इस लय को भोर तक परवान चढ़ाती रही। रात भर आस्था और मस्ती का ऐसा सैलाब उमड़ता रहा कि दूर दूर से लहकी का आयोजन देखने आए लोग भी झूमे बिना नहीं रह सके।
Updated on:
05 Aug 2017 02:15 pm
Published on:
05 Aug 2017 01:51 pm
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