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हमारे सांता: 18 साल में 50 रोगियों को मौत की दहलीज से वापस लाकर बने कोटा की शान

कोटा के बजरंग नगर निवासी 43 वर्षीय दीपक गोहानी 50 जिंदगियों को बचा चुके हैं।

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कोटा

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abhishek jain

Dec 24, 2017

दीपक गोहानी

कोटा .

जीवन अनमोल है, इसे बचाने के लिए व्यक्ति हर संभव प्रयास करता है। कई लोग समाज में एेसे भी हैं जो शरीर में प्रकृति प्रदत्त तत्वों को दान कर लोगों की जीवन को बचाने में सुकून की अविरल धारा महसूस करते हैं। एेसे ही 50 जिंदगियों को बचा चुके हैं कोटा के बजरंग नगर निवासी 43 वर्षीय दीपक गेहानी। वे अब तक 50 बार एसडीपी डोनेट कर चुके हैं। हमेशा ही इस दान के अवसर का इंतजार करते हैं। वे कहते हैं, इस में जो सुख मिलता है, उसकी अनुभूति को बयां नहीं कर सकता।

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लम्बा सफर
गेहानी ने बताया कि उन्होंने 1999 में पहली बार बार एसडीपी डोनेट की। तब मौत की दहलीज पर जा चुके उस रोगी को वापस चलता फिरता देखा तो खुद का जीवन सार्थक लगने लगा। उसके बाद तो जैसे सिलसिला चल पड़ा, जो अब तक जारी है। इन 18 साल से वे एसडीपी व रक्तदान करते आ रहे हैं। कभी किसी मां ने आशीर्वाद दिया तो कभी किसी भाई ने दुआ दी। लोगों की दुआएं मिलती हैं उनका कोई मोल नहीं है। डोनेट करने में कोचिंग स्टूडेंट, ग्रामीण और कई बार तो ये भी पता नहीं होता कि किस व्यक्ति को एसडीपी चढाई जाएगी।

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पत्नी व मां से होता है विवाद
वे बताते हैं, इस साल डेंगू का कहर बहुत ज्यादा था। लिहाजा, इस वर्ष अब तक ९ बार एसडीपी दे चुके हैं, लेकिन कई बार जल्दी ही एसडीपी देने का नम्बर आ जाए तो अध्यापिका पत्नी परेशान हो जाती हैं। कई बार घर पर झगड़ा हो जाता है। मां भी बार-बार एसडीपी डोनेट करने से मना करती हैं। लेकिन, किसी की जिंदगी बचाने के लिए उनकी डांट-फटकार भी सुन लेता हूं।

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फैमिली फीलिंग : मैं भी करूंगी
पुत्री लवण्या गेहानी (16 वर्ष) का कहना है कि पिता से प्रेरणा मिलती है, जब भी वह किसी को एसडीपी डोनेट कर आते हैं तो खुश रहते हैं। पापा जब दूसरों की जिंदगी बचाते हैं तो उन पर गर्व महसूस होता है। मैं जब 18 वर्ष की हो जाउंगी तो लोगों की मदद कर रक्तदान व एसडीपी डोनेट करना चाहती हूं।