गोबर के मांडने कर देते हैं मन की हर मुराद पूरी…श्राद्धपक्ष में कुंवारी कन्याएं घर के बाहर मांडती है सैजा, घुल रही सेजा के गीतों की मिठास करीब 75 बरस की मथरी बाई के चेहरे से खुद ब खुद दर्द बोल उठाता है। करीब 25 बरस पहले पति ने साथ छोड़ दिया। कुछ वर्ष पूर्व उसके बेटे की भी मौत हो गई और अब मकान भी ढह गया। वह बोली ‘म्हारा पंखा भी बहग्या, खाबा पीबा को काईं न बच्यो। म्हांरो ईं दुनिया मं कोई कोई न। म्हूं खां जाऊंगी, खां रूंगी। पति तो 25 बरसर फल्यां मरग्या। नदी न म्हांरो बेटो भी मार द्यो। अब घर भी बह ग्यो तो म्हूं खां जाऊ…. Ó।
कहते कहते मथरी बाई ने आपबीती बताई तो उसकी आंखों में आंसू तेर उठे। मथरी के साथ खड़ी एक रिश्तेदार ने बताया कि मथरी बाई यहां अकेली रहती है। इसके कोई नहीं है।
अग्रवाल समाज का प्रतिभाओं को तोहफा..लुटा दिए चांदी के सिक्के…विचित्र बोले प्रतिभाएं समाज की धरोहर एक बेटी है, उसकी शादी हो चुकी है। यह
गेहूं बीनकर जैसे तैसे भर पोषण कर रही है। मथरी बताती है कि उसका घर वापिस बन जाए तो जिंदगी ी सांझ आसानी से कट जाए। भट्टजी घांट क्षेत्र में बाढ़ प्रभावित लोगो ने मंगलवार को पत्रिका को बताया कि क्षेत्र में बाढ़ का पानी उतरे सप्ताह भी होने को आया, पर अब तक प्रशासन की ओर से राहत के छीटे भी नहीं दिए।