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राजस्थान में ईसाइयों को करनी पड़ रहीं दो-दो बार शादियां!

चर्च में हुई ईसाई युवाओं की शादियों के लिए नगर निगम जारी नहीं करते मैरिज सर्टिफिकेट, शादी का प्रमाण पत्र हासिल करने के लिए मैरिज रजिस्ट्रार के यहां करनी पड़ती है दोबारा शादी    

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कोटा. ईसाई समाज के युवाओं को दो दो बार शादियां करनी पड़ रही हैं। चर्च में परंपरागत तरीके से शादी करने वाले ईसाई समाज के जोड़ों को राजस्थान के नगर निकाय शादी प्रमाण पत्र जारी नहीं करते। ऐसे में शादी को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए उन्हें मैरिज रजिस्ट्रार के दफ्तर में बकायदा दोबारा शादी करनी पड़ती है। तब जाकर ईसाई जोड़ों को कानूनी मान्यता मिल पाती है। लॉक डाउन के दौरान बुधवार को कोटा में ईसाई समाज की पहली शादी हुई। राजस्थान सरकार ने मेरिज एक्ट के तहत शादियों के पंजीयन की शक्तियां नगर निगमों को दे रखी हैं। परंपरागत तौर पर शादी करने के बाद उसके सबूत देने पर नगर निगम शादी की वैधानिकता को मंजूरी देने के लिए विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र जारी कर देते हैं, लेकिन ईसाई समुदाय को इस नियम से बाहर रखा गया है।

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दोबारा करनी पड़ी शादी!
कोटा में 20 फरवरी को ईसाई समाज के युवा अनुज विलियम्स और आराधना ने सब्जी मंडी स्थित सीएनआई चर्च में परंपरागत तरीके से शादी की। शादी के बाद आराधना को जब पासपोर्ट, आधार कार्ड, वोटर आईडी और बैंक एकाउंट, आदि में पिता के स्थान पर पति का नाम दर्ज कराने की जरूत पड़ी तो उन्होंने कोटा नगर निगम में विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र जारी करने के लिए आवेदन किया। निगम अधिकारियों ने ईसाई समाज के युवाओं की शादी का पंजीयन प्रमाण पत्र जारी न करने की कानूनी बाध्यता बताते हुए इस आवेदन को खारिज कर दिया। जिसके बाद अपनी शादी को कानूनी मंजूरी दिलाने के लिए अनुज विलियम्स और आराधना को कोटा के मैरिज रजिस्ट्रार नरेंद्र गुप्ता के दफ्तर में आवेदन करना पड़ा। जिसे मंजूर करने के बाद छह मई को दोनों को कानूनी तरीके से शादी की सभी प्रक्रियाएं दोबारा पूरी करनी पड़ी। तब जाकर उन्हें विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र मिल सका।

निगम जारी नहीं कर सकता प्रमाण पत्र
वरिष्ठ अधिवक्ता रोहित सिंह राजावत ने बताया कि राजस्थान में नगर निगमों द्वारा शादी का प्रमाण पत्र राजस्थान में विवाहों का अनिवार्य पंजीयन अधिनियम 2009 के तहत किया जाता है। इस एक्ट की धारा 20 में स्पष्ट उल्लेख है कि एक्ट लागू होने के बाद भारतीय क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872, पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1936 और स्पेशल मैरिज एक्ट 1946 के दायरे में होने वाली शादियों के पंजीयन का प्रमाणपत्र निगम जारी नहीं कर सकेंगे। इसी वजह से चर्च में परंपरागत तरीके से शादी करने के बाद इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए ईसाई समाज के विवाहित जोड़ों को नगर निगम से विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र जारी नहीं करता। इसके लिए उन्हें मैरिज रजिस्ट्रार के यहां शादी की वैधानिक प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है और वहीं से उन्हें विवाह पंजीयन प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। इसी वजह से विगत एक दशक से क्रिश्चियन समाज को शादी की प्रक्रिया दोहरानी पड़ रही है।