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कृषि वैज्ञानिकों ने किया कमाल, अब रसोई में गलेगी कोटा की दाल

नौ साल की लंबी मेहनत के बाद कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने मसूर दाल की नई किस्म इजाद की है।

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कृषि वैज्ञानिकों ने किया कमाल, अब रसोई में गलेगी कोटा की दाल

कोटा कोचिंग, कोटा स्टोन, कोटा कचौरी और कोटा डोरिया के बाद अब कोटा की दाल का नाम भी दुनिया भर में चमकेगा। कोटा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अनुसंधान केंद्र उम्मेदगंज में कृषि वैज्ञानिकों ने 9 साल की मेहनत के बाद मसूर दाल की नई किस्म इजाद करने में सफलता हासिल की है। कृषि वैज्ञानिकों ने दाल की इस नई किस्म को जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन से जोड़ते हुए इसका नाम कोटा मसूर-२ रखा है।

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दो दालों के मिलन से हुआ नया जन्म

दाल की नई किस्म इजाद करने वाले मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सुमेर सिंह पूनिया ने बताया कि मसूर उत्पादक किसानों के सामने कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली किस्म का अभाव था। जिसे दूर करने के लिए वर्ष 2008 में नई किस्म इजाद करने का कार्य हाथ में लिया गया था। नई किस्म में एलएल-1049 से उत्पादकता और आरकेएल-11 से जल्द पकाव के जीन का समिश्रण किया गया है। किस्म को इजाद करने में डॉ. बलदेव सिंह, डॉ. आरके महावर ने भी सहयोग किया।

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चार राज्यों में होगी इसकी पैदावार

कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रताप ङ्क्षसह धाकड़ ने बताया कि रायपुर में हुई हाल ही में हुई अखिल भारतीय मूलार्प अनुसंधान परियोजना की मीटिंग में इस किस्म का प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शन के बाद इस किस्म को कोटा संभाग के साथ-साथ भरतपुर, चित्तौडग़ढ़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, डूंगरपुर जिले में बुवाई के लिए सिफारिश की गई। वहीं प्रदेश के अलावा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात के लिए भी इस किस्म की बुवाई की सिफारिश की गई है।

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खासियतों से भरी है कोटा मसूर 2

कोटा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. जीएल केशवा ने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की खोज मसूर 2 दाल तमाम खासियतों से भरी हुई है। मसूर की इस नई वैरायटी का दाना अन्य किस्मों की मसूर दाल से ज्यादा मोटा है। मसूर 2 महज 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। वहीं 14-16 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की पैदावार होने से किसानों को कम लागत में ज्यादा मुनाफा होगा। इतना ही नहीं उखटा रोग प्रतिरोधी, चेैंपा कीट से मध्यम प्रतिरोधी होने से ये बीमारियां दाल की पैदावार को खराब नहीं कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि नई किस्म के 100दानों का वजन औसत 3.1 ग्राम है।मसूर दाल की नई वैरायटी की खोज से राजस्थान समेत देश के पांच बड़े मसूर उत्पादक राज्यों के किसानों को फायदा होगा। कम लागत पर ज्यादा पैदावार मिलेगी। पकने में आसान और पोष्टिक होने के कारण रसोई में इसकी पहुंच बढ़ेगी।