
people of Kota eat 50 lakh pills for sleeping
कोटा.
जिंदगी की भागमभाग और सफलता हासिल करने के दवाब ने आम शहरियों की नींद तक छीन ली है। जिस तेजी से करियर सिटी कोटा में नींद न आने की समस्या बढ़ती जा रही है उतनी ही तेजी से नींद लाने का कारोबार भी रफ्तार पकड़ता जा रहा है। शहर में अब योग और पंचकर्म की प्राकृतिक पद्धतियों से लेकर हैप्पीनैस कोर्सेस के जरिए तनाव को खत्म कर लोगों को सुलाने के लिए अत्याधुनिक स्लीप लैबरेटरीज तक खुलने लगी हैं।
लाइफ स्टाइल ने उड़ाई नींद
न्यू मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. विनोद कुमार दडिय़ा के मुताबिक नींद उडऩे की सबसे बड़ी वजह लोगों की तेजी से बदलती लाइफ स्टाइल है। लम्बे समय तक काम करने, कॉर्पोरेट जॉब्स की टेंशन, काम के सिलसिले में बाहर की यात्रा, टेक्नोलॉजी का ज्यादा इस्तेमाल और सोशल मीडिया पर संलिप्तता कोटा के लोगों की सबसे ज्यादा नींद उड़ा रहे हैं।
सबसे ज्यादा उड़ी इनकी नींद
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्लीप साइंसेज (आईआईएसएस) के शोध के मुताबिक वर्तमान हालातों में इस समस्या से पीडि़त लोगों में इन्वेस्टमेंट बैंकर्स, आईटी प्रोफेशनल्स, कॉरर्पोरेट एंप्लाई और होम मेकर्स के बाद नींद उडऩे वालों में पांचवी बड़ी संख्या स्टूडेंट्स की हैं। क्योंकि इन सबको अपने-अपने फील्ड में खासे दवाब और लम्बे समय तक मेहनत का सामना करना पड़ता है। युवाओं का बड़ा वर्ग सोशल मीडिया के क्रेज में फंसकर इस समस्या की जद में आ चुका है।
14 करोड़ की गोलियां
डॉ. दड़िया के मुताबिक कोटा में लोगों को सुलाने का कारोबार दो तरह से काम कर रहा है। एक सीधे तौर पर नींद की गोली या दवाएं देकर लोगों को सुलाना और दूसरा तनाव मुक्त कर बिस्तर तक पहुंचाना। डॉ. दडिय़ा कहते हैं कि नींद की गोलियां खाने के बाद लोग सो तो जाते हैं, लेकिन उनका स्लीपिंग सिस्टम सुधरने के बजाय और बिगड़ जाता है। ऐसे लोग मस्तिष्क की दूसरी तमाम गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। बावजूद इसके इंस्टेंट इलाज की चाहत में कोटा के बासिंदे सालाना करीब 50 लाख नींद की गोलियां गटक जाते हैं। बाजार में सबसे सस्ती दस गोलियों का पत्ता औसतन 35 रुपए का आता है। यानि हर महीने कोटा 14 करोड़ रुपए से ज्यादा की गोलियां खा रहा है।
स्लीप लैब्स तक खुली
नींद की तलाश में कोटा के लोग हैप्पीनैस कोर्स, रिलेक्सेशन कोर्स, योगा और पंचकर्म जैसी प्राकृतिक आयुर्वेद चिकित्सा का तेजी से सहारा ले रहे हैं। स्लीपिंग लैब्स जैसी नई लकदक शैलियां तक नींद के कारोबार का हिस्सा बनने लगी हैं। कोटा में फिलहाल 12 स्लीप लैब्स संचालित हो रही हैं। जहां सबसे सस्ता सेशन भी आमतौर पर 600-1,000 रुपये लेते हैं। इसके अलावा कई थेरपी पर अलग से खर्च होता है। जबकि सात दिन की प्राकृतिक चिकित्सा और हैप्पीनैस कोर्सेज के कोटा में 3500 रुपए से 10 हजार रुपए तक वसूले जा रहे हैं।
अच्छी नींद के लिए करें यह काम
डॉ. दडिय़ा के मुताबिक दिमाग कंप्यूटर सिस्टम की तरह काम करता है। जब तक आप इसे शटडाउन नहीं करेंगे यह काम करता रहेगा। इसीलिए अच्छी नींद के लिए दिमागी उधेड़बुन खत्म होना जरूरी है। यह तभी आएगी जब बैडरूम में फुल डार्कनैस और साइलेंस हो। यह कमरे की बिजली बुझाने से नहीं होगा, बल्कि मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीन भी बंद करनी होगी। उन्हें पूरी तरह साइलेंस मोड़ पर डालना या बंद करना होगा। बॉडी के बॉयोलॉजिकल सिस्टम के मुताबिक रात में सात से आठ घंटे की नींद ही आपको तरोताजा रख सकती है। भले ही आप पूरे दिन क्यों न सो लें।
Published on:
16 Mar 2020 10:25 pm
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