
कोटा . थानों में दर्ज मुकदमों में पुलिस किस तरह जांच करती है। इसका एक नमूना तब देखने को मिला जब आरपीएससी के परीक्षा नियंत्रक व एडीएम की ओर से दर्ज मुकदमें में पुलिस ने बिना जांच किए ही एफआर पेश कर दी। अब एडीएम की ओर से पेश प्रोटेस्ट पिटीशन पर अदालत ने उस मामले की जांच स्वयं एसपी को करने के आदेश देते हुए जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है।
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राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से राजस्थान राज्य एवं अधीनस्थ सेवा प्रतियोगी (मुख्य) परीक्षा 27 मार्च 2017 को हुई। इस दौरान एक युवती परीक्षा केन्द्र पर आई। जिसके संदिग्ध होने पर आरपीएससी के प्रभारी अधिकारी व एडीएम ने उसी दिन नयापुरा थाने में रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में बताया कि बारां रोड महालक्ष्मी एनक्लेव निवासी सविता मीणा के प्रवेश पत्र पर परीक्षा केन्द्र राजकीय बालिका उच्च माध्यमक विद्यालय नयापुरा बाग अंकित था। जबकि उस केन्द्र पर परीक्षा नहीं करवाई जा रही थी।
इस बारे में अजमेर में दूरभाष पर जानकारी चाही तो प्रवेश पत्र फर्जी बताया। कार्ड को आयोग द्वारा जारी करना नहीं बताया गया। इस पर उन्होंने नयापुरा थाने में सविता मीणा के खिलाफ फर्जी दस्तावेज से धोखाधड़ी करने का मुकदमा दर्ज कराया था। लेकिन पुलिस ने मामले को झूठा मानते हुए एफआर पेश कर दी। इस पर एडीएम ने अपने अधिवक्ता के जरिये अदालत मेंं प्रोटेस्ट पिटीशन पेश की। जिस पर अदालत ने मामले की पुन: जांच कराने के आदेश दिए हैं।
यह जताई आपत्ति
प्रोटेस्ट पिटीशन में एफआर पर आपत्ती की गई कि अनुसंधान अधिकारी ने अधूरी जांच की है। आईओ ने एफआईआर दर्ज करवाने वाले परिवादी एडीएम के ही बयान नहीं लिए। लोक सेवा आयोग के किसी भी अधिकारी व कर्मचारी के बयान लेखबद्ध नहीं किए तथा कोई रिकॉर्ड प्राप्त नहीं किया। पुलिस ने आरोपित से कूटरचित प्रवेश पत्र भी जब्त नहीं किया। कार्ड की न तो एफएसएल और न ही हस्तलेख विशेषज्ञ से उसकी जांच करवाई।
अनुसंधान अधिकारी ने आरोपित को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से उसके बताए अनुसार ही व्यक्तियों के बयान लेखबद्ध कर एफआर पेश की। पिटीशन में इस मामले का अग्रिम अनुसंधान कराने के लिए पत्रावली को पुन: थाने भेजा जाए।
Published on:
01 Feb 2018 11:53 am
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