
Rampura ke raja ka darbar ganesh pandal in kota
रामपुरा मुहल्ले के 15-20 युवाओं ने 12 साल पहले पीपल चौराहे पर गणेशोत्सव मनाने की शुरुआत की। चंदा इकट्ठा कर पाच-छह फीट की गणेश प्रतिमा सजाई और पूरे आयोजन में 25 किलो पेठे का प्रसाद बांटा। इसके बाद तो इस प्रसाद की मिठास पूरे शहर में ऐसी छाई कि 'रामपुरा के राजा' के दरबार के बिना कोटा का गणेशोत्सव अधूरा ही लगने लगा। अब आलम यह है कि यहां सजने वाले भगवान गणेश के दरबार की सजावट को देखने के लिए पूरा शहर आता है।
पूरा शहर है दीवाना
अनंत चतुदर्शी महोत्सव के तहत वैसे तो शहर के विभिन्न क्षेत्रों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। लेकिन जैसी सजावट रामपुरा के पीपली चौक में स्थापित गणेश प्रतिमा स्थल पर होती है। वैसी शहर में अन्य जगह देखने को नहीं मिलती। यहां की सजावट, चकाचौंध का पूरा शहर दीवाना है। यहां आयोजन शिव शक्ति मंडल की ओर से किया जाता है। मंडल के अध्यक्ष देव खंडेलवाल बताते हैं कि करीब 12 साल पहले मोहल्ले के युवाओं ने करीब 50हजार रुपए इकट्ठा कर इस आयोजन की शुरुआत की। आज इस कार्यक्रम की भव्यता इतनी हो गई है कि लोग यहां होने वाले आयोजन का इंतजार करते रहते हैं।
शिवभक्त मंडली करती है आयोजन
आयोजन समिति के कुलदीप शर्मा बताते हैं कि यहां के कार्यक्रम की भव्यता को देखते हुए आसपास के अन्य युवा भी मंडल से जुड़ते गए। आज मंडल में 50-60 से अधिक सक्रिय कार्यकर्ता है। जो स्वयं श्रद्धा अनुसार राशि तो देते ही है। साथ ही क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा भी श्रद्धा के अनुसार पूरा आर्थिक सहयोग किया जाता है। यहां के सदस्य गणेश चतुर्थी के एक सप्ताह पहले से ही तैयारियों में जुट जाते हैं।
10 दिन में बंट जाता है साढ़े चार कुंटल प्रसाद
'रामपुरा के राजा' के दरबार में आने वाले भक्तों की संख्या का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दस दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव में 2100 किलो की पकौड़ी, 1100 किलो पेठा और 1500 किलो अन्य मिठाइयों आदि का अलग-अलग प्रकार का प्रसाद वितरित किया जाता है। मंडल के सेवादार दीपक मेवाड़ा ने बताया कि अनंत चतुर्दशी के दिन तो यहां सुबह से ही लोगों की भीड़ लगी रहती है।
खूबसूरत सजावट का नहीं कोई मुकाबला
रामपुरा के राजा की सजावट बेहद खास होती है। सूरज ढलने के बाद इसकी जगमगाहट को देखने के लिए मानो पूरा शहर ही उमड़ आता है। यहां स्थापित गणेश प्रतिमा का हर दिन अलग-अलग श्रंगार किया जाता है। श्रंगार की इस पूरी सामग्री को एकत्र कर प्रतिमा के साथ ही अनन्त चतुर्दशी के दिन जल में विसर्जित किया जाता है।
Published on:
03 Sept 2017 12:08 pm
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