दशहरा मेले में रविवार रात राष्ट्रीय अटल कवि सम्मेलन मेें 19 कवियों ने काव्यपाठ किया। देर रात तक काव्य की विभिन्न धाराएं बहती रहीं।
kota dusshara mela 2018
कोटा. कवियों ने शीतल मंद बयार के बीच शब्दों के जाल में श्रोताओं को इस तरह से बांधे रखा कि तालियां बजाने को सिर्फ हाथ खुले रहे। कभी पाक, कभी बांग्लादेश तो कभी देश के सैनिक और आतंकवाद पर श्रोताओं से वाह-वाही लूटी। अवसर था दशहरा मेले में आयोजित राष्ट्रीय अटल कवि सम्मेलन का।
इसमें देश के विभिन्न स्थानों व स्थानीय समेत 19 कवियों ने काव्यपाठ किया। देर रात तक ओज श्रृंगार समेत काव्य की विभिन्न धाराएं बहती रहीं और श्रोता शब्दों से सजी निशा को सुनते रहे। शुरुआत रुचि चतुर्वेंदी ने देवी सरस्वती की स्तुति से की। फिर अंता के दैवेन्द्र वैष्णव ने छोटे-छोटे चुटकलों से रंग जमाना शुरू किया।
वैष्णव ने रामजी के होने का सबूत मांगते हो क्या खोपड़ी के स्क्रू ढीले हो गए…पंक्तियां सुनाई। संचालन कर रहे सुरेन्द्र सार्थक ने इसी बीच ‘पड़ी लाठी अचानक से जमी पर सो गया होगा, जब उसे निहारा होगा तो तिरंगा रो रहा होगा…Ó सुनाई। निशामुनि गौड़ ने भ्रष्टाचार अगर आपने नहीं किया होता तो झौपडिय़ां आपकी महल कैसे हो गई….कविता पढ़ी।
कवि डॉ. फ रीद फ रीदी ने…यंू मर मिटूं देश पर सौ बार मन में आई है…, कवियित्री डॉ. कविता किरण ने ये दौर इम्तिहान का निकल ही जाएगा अंधेरा अपनी खैर कब तक मनाएगा…..सुनाकर दाद बटोरी। लाखेरी के भूपेन्द्र राठौर ने अब तो कौओं ने हंसों पर आरोप लगा डाला… सुनाकर राजनीति पर तंज कसा। नरेन्द्र बंजारा..भाईचारे को बढ़ा कर हीनता हटाएं, हम तिरंगा उठालो वंदे मातरम गाएं हम।
संजय शुक्ला ने मातृभूमि के लिए मर मिट जाना हर किसी के बस की बात नहीं… कविता पढ़ी। इसी बीच मंदसौर से आए मुन्ना बेटरी ने अपनी रचनाओं से तंज भी कसे और संदेश भी दिए। उन्होंने देश में दिए जा रहे उल्टे सीधे बयानों को लेकर काव्य पाठ करते हुए कहा कि एक बार गटर में उतरे तो पता चले टाइगर मरा है या ङ्क्षजदा है…, मेरी खामोशी को कमजोरी न समझो…, गीला कचरा हरे बॉक्स में डालो, सूखा कचरा नीले बॉक्स में डालो…समेत कई कविताएं पढ़ी। मुन्ना ने श्रोताओं की बेटरी को कम नहीं होने दिया न श्रोताओं ने मुन्ना की बेटरी को कम होने दिया।
नरेश निर्भीक,संजय शुक्ला, छतरपुर के श्रीप्रकाश पटेरिया,रामबिलास रखवाना, राजेन्द्र पंवार व अन्य ने काव्य पाठ किया। निर्भीक ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी को याद करते हुए लोकतंत्र के मंदिर के बड़े पुजारी को, भूल से भी भूल न जाना…की कविता सुनाकर भाव विभोर किया।