क्या है सीएसआर
मिनिस्ट्रिी ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (एमसीए) ने 2013 में कंपनी एक्ट में संशोधन कर अच्छा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की समाज के प्रति जिम्मेदारी भागीदारी तय करने के लिए कॉर्पोरेट सोशल रिपस्पांसबिलिटी एक्ट लागू किया था। एक्ट के मुताबिक वे कम्?पनियां जिनकी वार्षिक नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए या 1000 करोड़ का टर्नओवर है। आसान शब्दों में समझें तो सालाना 5 करोड़ या इससे ज्यादा का मुनाफा कमाने वाली कंपनियां इस एक्ट के दायरे में आती हैं। इन कम्?पनियों को पिछले तीन सालों में अर्जित शुद्ध लाभ के औसत की 2 प्रतिशत रकम एक समिति गठित कर समाज के उत्थान में खर्च करनी होती है।
कार्य करने के क्षेत्र
सीएसआर के तहत भूख, निर्धनता, कुपोषण उन्मूलन, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, स्वच्छता, पर्यावरण, धरोहर, कला और संस्कृति का संरक्षण, शिक्षा, कृषि, ग्रामीण विकास, खेलकू्रद और सैन्य कल्याण के क्षेत्रों में कार्य किया जा सकता है।
खोला खजाना
कंपनी एक्ट में संशोधन के बाद कोटा में सिर्फ 10 कंपनियों ने माना कि वह सीएसआर के दायरे में आती हैं। हाल ही में विधानसभा के दूसरे सत्र में विधायक संदीप शर्मा ने जब सीएसआर फंड से खर्च का ब्यौरा मांगा तो उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक उद्योग संजीव सक्सेना जानकारी दी कि इन दस कंपनियों ने 2014-15 से लेकर 2017-18 तक सामाजिक उत्थान के लिए 10,394.07 लाख रुपए खर्च किए।
आरएपीपी सबसे आगे
उद्योग विभाग की जानकारी के मुताबिक ज्यादातर कंपनियों ने देश में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए खद्यान्न वितरण किया। आरएपीपी ने क्षेत्रीय विकास पर जोर दिया। आरएपीपी ने गांवों में जर्जर स्कूलों का जीर्णोद्धार किया, सीसी रोड़ बनवाए। गरीब बच्चों स्कॉलरशिप दी। पावर प्लांट ने बीते चार साल में सीएसआर पर सबसे ज्यादा 5097.56 लाख रुपए खर्च किए। वहीं चम्बल फर्टिलाइजर ने ग्रामीण विकास पर 3787.22 लाख रुपए खर्च किए। कोचिंग संस्थानों में बाइव्रेंट ने 51.26 लाख और रेजोनेंस ने 224.72 लाख सीएसआर पर खर्च किए।
निगरानी व्यवस्था नहीं
हालांकि सीएसआर फंड कितना और कैसे खर्च किया गया है, इसकी जांच के लिए राज्य सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं हैं। विधायक संदीप शर्मा के सवाल के जवाब में उद्योग विभाग के संयुक्त निदेशक ने बताया गया कि राज्य सरकार ने अभी तक कोई प्रावधान ही तय नहीं किए हैं।