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गोबर के मांडने कर देते हैं मन की हर मुराद पूरी…श्राद्धपक्ष में कुंवारी कन्याएं घर के बाहर मांडती है सैजा, घुल रही सेजा के गीतों की मिठास

Shraddha Paksha मीठे गीतों की मधुर तान से खुशनुमा होती हैं सांझ

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कोटा

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Suraksha Rajora

Sep 23, 2019

कोटा. भागदौड़ के जीवन में कई लोक पर्व त्योहार लोग भूलते जा रहे हैं, लेकिन कोटा में अब भी इन पर्वों की मिठास घुल रही है। बात हो रही है सांझी पर्व की। श्राद्ध पक्ष से शुरू होने वाले इस पर्व की रौनक सप्ताह भर से नजर आ रही है।

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छावनी, विज्ञान नगर, केशवपुरा समेत अन्य इलाकों में बालिकाएं व कन्याएं सेजा बनाती नजर आती हैं। शुक्रवार को भी कई बालिकाएं सेजा बाई क सासरे जाजे रे सवार.. खाटो पूड़ी खाजे रे सवार… सांझा लाल बनरा को चाले रे बनरा टेसुरा..जैसे गीतों की मिठास घोलती नजर आई।

सेजा मांड रही बालिकाओं के साथ मौजूद महिलाएं पदमा, सुमन, एडवोकेट प्रतिभा दीक्षित, रजनी सिंह, मंजू प्रजापति, गीता, शकुंतला आदि ने बताया कि तीज त्योहार हमारी संस्कृति हैं, इनको आगे बढ़ाना सभी की जिम्मेदारी है।

ऐसे होती है पूजा

दीवार पर गोबर से सांझा सांझी की मूर्ति बनाकर हर दिन अलग-अलग तरह का भोग लगाया जाता है। अमावस्या पर पन्द्रहवें दिन गोबर से विशाल कोट बनाकर पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बालिकाओं को सेजा बनाने का इंतजार रहता है।

इसलिए मनाया जाता है सांझी पर्व

े सैजा माता के पूजन को लेकर कई किवदंतियां हैं, इन्हीं में से एक राम भगवान से जुड़ी हुई है। छावनी क्षेत्र स्थित दुर्गानगर बस्ती के भगवान दास बताते हैं कि एक किवदंती के अनुसार भगवान राम जब रावण रावण से युद्ध करने की तैयारी कर रहे थे, तो उन्होंने एक गुफा में पत्तियों का पूजन किया। इसमें सैजा बाई प्रकट हुई। उन्होंने सैजामाता का पूजन किया।


बाद में सैजा माता से आज्ञा लेकर समुद्र के किनारे भगवान शिव के पिंड की स्थापना की। बाद में समुद््र पार किया। भगवान राम ने 116 दिन तक सैजा माता का पूजन किया था। इस कारण 16 दिन तक सैजा माता का पूजन किया जाता है। इसके बाद में नवरात्र आते हैं।