
दर्पण से ग्रहण करें चाँद की किरणें लौट आएगी जवानी, शरद पूर्णिमा पर 30 साल बाद बना लक्ष्मी नारायण योग
कोटा.चंद्रमा साल भर में शरद पूर्णिमा की तिथि में ही अपनी षोडश कलाओं को धारण करता है। इस बार शरद पूर्णिमा यानी आज पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण महापूर्णिमा भी कहा जाएगा। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। आश्विन शरद पूर्णिमा पर इस बार 16 कलाओं से परिपूर्ण चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसेगा।
इसी दिन माता लक्ष्मी, चंद्रमा और देवराज इंद्र का पूजन रात्रि के समय होता है। ज्योतिषाचार्य अमित जैन के अनुसार पूर्णिमा तिथि सूयोदय से लेकर 14 अक्टूबर की रात 2.38 बजे तक रहेगी। वहीं 13 अक्टूबर की शाम 5.26 बजे चंद्रोदय का समय है। इस पूर्णिमा पर शनि गुरु की धनु राशि में स्थित है। गुरु ग्रह मंगल की वृश्चिक राशि में स्थित है। 30साल बाद चन्दमा ओर मंगल के आपस में दृष्टि सम्बंध होने से लक्ष्मी नारायण योग बन रहा है।
खीर को खुले में रखना चाहिए
इसी दिन भगवान चंद्रदेव की पूजा गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी से की जाती है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा को अर्घ्य देकर और पूजन करने के बाद चंद्रमा को खीर का भोग लगाना चाहिए। रात 10 बजे से 12 बजे तक चंद्रमा की किरणों का तेज अधिक रहता है।
इस बीच खीर के बर्तन को खुले आसमान में रखना फलदायी होता है, उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं और वह मन, मस्तिष्क व शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है।इस खीर को अगले दिन ग्रहण करने से घर में सुख-शांति और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात में चांदनी में रखे गए खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने का विधान है।
नवग्रहों में प्रत्यक्ष है चंद्रमा
ज्योतिषाचार्य अमित जैन ने बताया कि नवग्रहों में हम सूर्य और चांद को ही देख सकते है। चंद्रमा को प्रत्यक्ष देव माना है। समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक चंद्रमा को मानते हैं। इस दिन लोग रात्रि में खीर बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाते है। खीर को खुली चांदनी में रखा जाता है। जिससे औषधि गुण वाली चंद्रमा की किरणें मिलती है। इन किरणों से अमृत बरसता है। इस दिन मंदिरो में पूजा पाठ, हवन, भजन संध्या, लक्ष्मी पाठ कीर्तन, जागरण होते हैं।
रावण रश्मियों को दर्पण से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था
एक अध्ययन के अनुदार शरद पूर्णिमा पर ओषधियो की स्पंदन क्षमता अधिक होती है यानि ओषधियो का प्रभाव बढ़ जाता है रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है तक रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उपन्न होती है।
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी चांदनी रात में दस से मध्यरात्रि १२ बजे के बीच कम वस्त्रो में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है सोमचक्र , नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतू से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
Published on:
12 Oct 2019 07:26 pm
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