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मांगते तो बहुत कुछ हैं.. पर मिलता कुछ खास नहीं जनाब

सर, हमें इस बात की जानकारी जाहिए कि भरतपुर जिले के बांधों की मरम्मत को लेकर सरकार से कितना राशि मांगी गई और कितनी मिली। इसे सुन जल संसाधन विभाग के कार्यालय में बैठे अधिकारी एवं कर्मचारियों के मुख पर व्यंग मिश्रित मुस्कान आ जाती है। जवाब मिलता है.. मांगते तो बहुत कुछ हैं.. मिलता कुछ खास नहीं..। आप तो

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कोटा

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aniket soni

Jul 22, 2016

ऐसे में जिले के बांधों की मरम्मत व रखरखाव की कल्पनस सहज है। बाढ़ को भरतपुर के लिए वरदान माना जाता रहा है, यह बात सुनने में अटपटी लगती है, लेकिन जिले भौगोलिक स्थिति एवं उसकी जरुरतों के हिसाब से है सटीक।

बाढ़ के वरदान एवं श्राप में एक बारीक सी लकीर है। यदि इस बाढ़ के पानी को नियंत्रित करके इस्तेमाल किया गया तो यह वरदान बन जाती है और यदि यह आपे से बाहर हो जाए तो विनाश की ऐसा ताडंव मचाती है कि जिलेवासी त्राहि-त्राहि कर उठते हैं।

बीते दशको में जब भी बाढ़ आई, वह लोगों की जहन में है। बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए पूरे भरतपुर जिले में बांधों एवं नहरों का ऐसा तंत्र मौजूद है जिससे वर्षा के पानी का उपयोग सिंचाई एवं पेयजल के लिए किया जा सके।

लम्बे समय से सरकार इस तंत्र की बर्बादी के प्रति मूक दर्शक बनी हुई है और भरतपुरवासियों को कुदरत के रहमो-करम पर छोड़़ा हुआ है। जब भी भरतपुर के बांधों एवं नहरों की मरम्मत के लिए धन मांगा जाता है तो सरकार का हाथ ऐसा तंग हो जाता है मानो उसके लिए भरतपुर की जरुरतों के लिए कोई पैसा है ही नहीं।

चंद लाख रुपए मिल रहे

जल संसाधन विभाग के सूत्रों के अनुसार बांधों के लिए सरकार को हर साल लाखों रुपए के प्रस्ताव सरकार को भेजे जाते हैं, लेकिन इनका हश्र काफी बुरा होता है। यदि बीते पांच साल के आंकड़ों पर ही गौर करें तो पता चलता है कि सरकार ने हर साल चंद लाख रुपए देकर अपने कत्वर्य से इतिश्री कर ली। यह तो शुक्र रहा कि इस अवधि में बारिश नहीं हुई, नहीं तो जनता को बुरे हालात से गुजरना पड़़ता।

पांचना के पानी ने दिखाया आईना

हाल ही में पांचना बांध से तीन लाख क्यूसेक पानी छोड़े के बाद रूपवास व बयाना उपखण्ड में हुआ नुकसान इस बात को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि यहां के लोगों पर कितनी भारी पड़ रही है। विभागीय जानकारी के अनुसार यह राशि मरम्मत एवं रखरखाव के नाम दी जाती है, लेकिन इसमें बांधों की मरम्मत, नहरों का काम के साथ-साथ कार्यालय तक का खर्चा जोड़ दिया जाता है। ऐसे में गेटों की ऑयलिंग एवं ग्रीसिंग जैसी जरूरी काम भी खींच-तान तक ही हो पाते हैं। मरम्मत की बात तो सोचना भी बेमानी है। ऐसे में जिले के बांधों क्या हश्र होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

फैक्ट फाइल

मिली राशि की जानकारी


वर्ष ....... राशि ....... खर्च
2011-2012 ....... 20 ....... 19.36
2012-2013 ....... 14.29 ....... 14.29
2013-2014 ....... 12 ....... 11.50
2014-2015 ....... 29 ....... 28.34
2015-2016 ....... 12 ....... 12
(स्रोत-जल संसाधन विभाग, राशि लाख रुपए में)

जिले में बाढ़ की स्थिति

वर्ष ....... जिले में वर्षा ....... हालात
1995 922 ....... एमएम ....... भारी बाढ़
1996 1036 ....... एमएम ....... भयानक बाढ़
1998 915 ....... एमएम ....... आशिंक बाढ़
2003 716 ....... एमएम ....... आंशिक बाढ़

फूल सिंह मीणा अधीक्षण अभियंता जल संसाधन विभाग ने बताया कि भतपुर के बांध एवं उनसे जुड़ा जल निकासी तंत्र काफी पुराना पड़ चुका है। इसे मरम्मत की जरुरत है। कुछ वर्षों से बारिश नहीं होने से उदासीनता रही है। बांधों की मरम्मत की दरकार है। बीतों वर्षों में मिली धनराशि जरुरत के हिसाब से काफी कम है।