
ईशा कहती हैं, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता बस खुशियां समेटते हुए जीना आना चाहिए। हम ये काम पहले भी कर सकते थे, लेकिन लोग कहते कि इनसे कुछ नहीं हुआ, इसलिए ये किया।

ईशा ने बताया कि हमने स्थाई जॉब पकड़ी, फिर इसे छोड़ी, इसके बाद जिंदगी एक प्राथमिकता फाउंडेशन (एनजीओ) शुरू किया, अब कोचिंग के बच्चों को हेल्दी फूड खिला रहे हैं

साथ ही उन्हें समझाइश कर रहे हैं कि आत्महत्या करना या डिप्रेशन में रहना जीवन के साथ खिलवाड़ है। सफल होने तक बार-बार प्रयास करें, रास्ते बदलते हुए भी कुछ नया और बेहतर किया जा सकता है।

ईशा बताती हैं, बड़ी बहन की मौत के बाद अचानक पिता को भी हार्ट अटैक आ गया और फिर मां बीमार रहने लगी। छोटा भाई स्कूल में था, मैं ग्रेजुएेशन कर रही थी। परिवार की माली हालत बिगड़ चुकी थी। उस समय ख्याल आया कि सुसाइड कर लूं।

सुजाता भी जीवन में कुछ कर गुजरने की चाहत से अपनी दोस्त के साथ आ गई। दोनों ही अब राजीव गांधी नगर में फूड कॉर्नर में पहले स्टूडेंट को पौष्टिक व्यंजन खिलाती हैं, उसके बाद उन्हें जीवन के इन्द्रधनुष समझाती हैं।

सुजाता कहती हैं, यहां से सफल होने के बाद गांव-गांव जाकर लोगों को नि:शुल्क कानूनी सलाह भी देंगी और आवश्यकता हुई तो नि:शुल्क उनके लिए वकालत भी करेंगे।