तलवंडी िस्थत वैद दाऊदयाल जोशी अस्पताल में संचालित राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय में वनौषधी उद्यान वाटिका का काम शुरू हो गया है। इसमें डेढ़ सौ से अधिक वनौषधी लगाई जाएगी। यह द्वितीय सेमेस्टर के विद्यार्थियों के पढ़ाई में काम आएगी। वाटिका में लगे वन पौधों की विद्यार्थियों को प्रेक्टिकल जानकारी मिलेगी। अस्पताल में इस वाटिका को तैयार करने के लिए कोटा दक्षिण विधायक संदीप शर्मा ने 20 लाख दिए थे। कार्यकारी एजेंसी नगर निगम को बनाया गया। 2500 स्क्वायर मीटर में यह वनौषधी वाटिका तैयार हो रही है। पार्षद योगेन्द्र राणावत का भी पूरा सहयोग मिल रहा है। वाटिका में चारदिवारी का काम पूरा हो गया है। अब इसमें उपजाऊ मिटटी डलवाई जा रही है। इसके बाद पौधे लगने शुरू हो जाएंगे।
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ऐसे लगेंगे पौधे
एमडी आयुर्वेद डॉ. अनुपमा चतुर्वेदी ने बताया कि वाटिका में तलाश, अर्क, श्वेत अर्क, करील, अमलताश, अतिबला, खादिर, बबूल, बिल्व, अंकोल, अपामार्ग, चौलाई, सारिया, शतावरी, हिंगोट, वज्रदंती, हिंगोट, गुग्गुल, जामुन, पीपल, शंखपुष्पी, धतूरा, करेंज, कमल, गूगा, पीलू, सेमल सहित 110 तरह की हाड़ौती वन क्षेत्र में उपलब्ध तथा 150 तरह के पौधे हिमाचल व अन्य बाहरी पहाड़ी क्षेत्र में मिलने वाले वन पौधे लगाए जाएंगे। द्रव्य गुण विषय का अध्ययन द्वितीय सेमेस्टर में आता है। यह कॉलेज की मान्यता दिलाने के नियम में भी आती है।
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इस प्रकार काम आती है औषधियां
डॉ. चतुर्वेदी ने बताया कि यह औषधियां अलग-अलग प्रकार से विविध रोगों में काम करती है। इन औषधियों में अन्य औषधियां मिलाकर औषध योग भी बनाए जाते हैं। इनका उपयोग हम ज्वर, श्वास, कास, उदररोग, हृदयरोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, वातरोगों, आमवात, सन्धिवात, अवसाद, अनिद्रा जैसी कई बीमारियों में उपचार के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए अडूसा या वासा जिसे वैज्ञानिक भाषा में आधाटोडा वासिका कहा जाता है। उसका उपयोग श्वसन सम्बन्धी विकारों में, चक्रमर्द जिसे केसिया टोरा कहा जाता है। उसका उपयोग त्वचा विकार में, शंखपुष्पी का मस्तिष्क जन्य दुर्बलता लक्षणों में उपयोग किया जाता है।