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पेसिंग टेक्नोलॉजी : अब खिलाड़ी नहीं तकनीक से बन रहे वर्ल्ड रिकॉर्ड, हाल ही 3 रिकॉर्ड भी टूटे

क्या मनोरंजन के नाम पर खेलों में तकनीक का अत्यधिक इस्तेमाल उचित है? इथोपिया की लंबी दूरी की 22 वर्षीय धावक लेटेसनबेट गिडे ने हाल ही 5 हजार मीटर की दौड़ में महिला इतिहास का सबसे तेज समय निकालकर विश्व रिकॉर्ड बनाया है।लेकिन उनकी जीत के साथ ही विवाद भी शुरू हो गया है।

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जयपुर

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Mohmad Imran

Oct 24, 2020

पेसिंग टेक्नोलॉजी : अब खिलाड़ी नहीं तकनीक से बन रहे वर्ल्ड रिकॉर्ड, हाल ही 3 रिकॉर्ड भी टूटे

पेसिंग टेक्नोलॉजी : अब खिलाड़ी नहीं तकनीक से बन रहे वर्ल्ड रिकॉर्ड, हाल ही 3 रिकॉर्ड भी टूटे

दौड़ स्वस्थ प्रतिस्पर्धाओं वाला खेल है जहां मनोरंजन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण इसमें निहित खेलभावना और खिलाड़ी की शारीरिक व मानसिक क्षमता है। लेकिन बीते कुछ दशकों से खेल की प्राकृतिक शैली पर तकनीक हावी होती जा रही है। क्रिकेट और फुटबॉल जैसे मनोरंजन प्रधान खेलों के इतर अब तो विशुद्ध शारीरिक दमखम वाले खेलों में भी तकनीक ने हार और जीत के बीच एक लक्ष्मण रेखा खींच दी है। इसका ताजा उदाहरण है हाल में बना महिला धावकों की श्रेणी का नया विश्व रिकॉर्ड। स्पेन के वेलेंसिया में इथोपिया की 22 वर्षीय लंबी दूरी की धावक लेटेसनबेट गिडे ने 5 हजार मीटर की दौड़ में 14 मिनट 6.62 सेकंड्स में दौड़ पूरी कर इतिहास में किसी भी महिला धावक द्वारा सबसे तेज समय निकालने का कीर्तिमान रचाा है। इस रिकॉर्ड को सालों से तोड़ा नहीं जा सका था। इतना ही नहीं, एक घंटे से भी कम समय में उसी ट्रैक पर युगांडा के जोशुआ चेप्तेगी ने भी 15 साल पुराने रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए पुरुषों के 10 हजार मीटर के रिकॉर्ड को अपने नाम कर लिया। लेकिन इन खिलाडिय़ों की जीत ही अब विवाद का कारण बन गई है।

वेवलाइट पेसिंग तकनीक पर विवाद
स्पोर्ट्स शूज की नई तकनीक ने खिलाड़ियों के प्रदर्शन में गजब का सुधार किया है, लेकिन सुर्खियां बटोरने के साथ ही इस तरह खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन को बढ़ावा देने के तरीके से विवाद भी खड़ा हो गया है। रेसिंग ट्रैक पर वेवलाइट पेसिंग तकनीक भी इसी विवाद का नतीजा है। इस तकनीक में धावकों के ट्रैक के किनारे रंगीन चमकदार लाइटें लगाई जाती हैं। जलती-बुझती रोशनी की यह कतारें धावक को रिकॉर्ड समय के साथ गति बनाए रखने में मदद करती है। इन्हीं वेवलाइट पेसिंग तकनीक लाइटों के कारण कुछ ही सप्ताह में तीन अजेय विश्व रिकॉर्ड टूट गए। हालांकि ओलंपिक या विश्व चैंपियनशिप जैसी किसी प्रतियोगिता में इन लाइट्स के इस्तेमाल की योजना नहीं है क्योंकि वहां विभिन्न देशों की प्रतिष्ठा दांव पर होती है और खिलाड़ी रिकॉर्ड के लिए नहीं बल्कि मेडल के लिए जी-जान लगाते हैं। लेकिन इस साल मुट्ठी भर खेलों में इन लाइट्स का इस्तेमाल किया गया है। इन प्रतिस्पर्धाओं में विश्व रिकॉर्ड का पीछा करना खिलाड़ियों का प्राथमिक लक्ष्य था। लेकिन इसने प्रशंसकों, खिलाड़ियों, कोच और खेल विश्लेषकों के बीच सुगबुगाहट पैदा कर दी है।

दो धड़ों में बंटे प्रशंसक-खिलाड़ी
दरअसल, खेल में तकनीक के अत्यधिक इस्तेमाल ने खिलाड़ियों और प्रशंसकों को दो धड़ों में बांट दिया है। एक वर्ग इन तकनीकों की सराहना कर रहा है क्योंकि इससे खिलाड़ियों का प्रदर्शन स्तर बढ़ गया है। वहीं दूसरा धड़ा खेल में परंपरागत तौर-तरीकों का पक्षधर है और खिलाड़ी के शारीरिक एवं मानसिक दमखम को ही वास्तविक कसौटी मानता है। उनका कहना है कि यह उन पुराने खिलाडिय़ों के साथ नाइंसाफी है जिन्होंने बिना किसी तकनीकी मदद के केवल अपनी प्रतिभा और इच्छाशक्ति से ऐसे रिकॉर्ड बनाए जो आज भी प्रशंसकों को रोमांचित करते हैं। इन खिलाडिय़ों, प्रशंसकों और खेल विश्लेषकों का मानना है कि खिलाड़ी अब एक कृत्रिम सहायता से लाभान्वित हो रहे हैं जो पिछली पीढिय़ों को उपलब्ध नहीं थी। विश्व एथलेटिक्स के अध्यक्ष और चार बार के ओलंपिक पदक विजेता सेबेस्टियन कोए तकनीक का समर्थन करते हुए कहते हैं कि यदि खेल हमारी पहचान है तो मनोरंजन हमारा व्यवसाय है। हम ऐसी चीजें चाहते हैं जो खेल को और मजेदार व रोमांचक बनाए। पेसिंग लाइट्स तकनीक इसी जरुरत को पूरा कर रही है।

डच कंपनी की ईजाद है पेसिंग लाइट्स
इस तकनीक को डच कंपनी स्पोर्ट टेक्नोलॉजी ने बनाया था जिसे ग्लोबल स्पोर्ट्स कम्युनिकेशन के मुख्य कार्यकारी और पूर्व लंबी दूरी के धावक जोश हर्मेंस की कंपनी द्वारा और अपडेट कर बाजार में उतारा गया। अपने इनोवेटिव एटिट्यूड के लिए पहचाने जाने वाले जोश ने 1976 में ट्रैक पर हर 200 मीटर की दूरी पर पुलिस लाइटें लगवाईं और अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। तब से वे ऐसे आइडिया पर काम कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ट्रैक पर लगी लाइट्स से धावक को अपनी गति और लय बनाए रखने में मदद मिलती है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि पेसिंग लाइट्स तकनीक को दर्शकों और टेलीविजन पर मैच का लुत्फ उठा रहे दर्शकों के लिए एक दृश्य मार्गदर्शिका (विजुअल गाइड) के रूप में डिजाइन किया गया था। लेकिन यह बाद में एक कारगर प्रशिक्षण उपकरण बन गया। 24 साल के जोशुआ ने इन्हीं लाइट्स के दम पर अगस्त में 12 मिनट, 35.36 सेकंड्स के समय के साथ मोनाको में एक डायमंड लीग इवेंट में पुरुषों के 5 हजार मीटर का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया था।

कैसे काम करती है पेसिंग लाइट्स तकनीक
इन लाइट्स को ट्रैक के अंदर धावक की बांई ओर लगाया जाता है। इन्हें किसी भी गति (धावक की स्पीड के अनुसार) के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। इस तकनीक में अलग-अलग रंग होते हैं जिन्हें प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न तरीकों से सुनियोजित किया जा सकता है। हालिया विश्व रिकॉर्ड दौड़ों में हरे रंग की रोशनी से विश्व रिकॉर्ड के करीब पहुंचने का जैसे ही इशारा मिला दोनों धावकों ने अपना पूरा जोर लगा दिया। उन्होंने चमकती रोशनी का पीछा करते हुए अपनी गति बढ़ाई और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिए। इसके अलावा एक अन्य तकनीक भी इन दोनों खिलाड़ियों ने अपनाई। यह थी पेसमेकर तकनीक जिसे खेल जगत में रैबिट पेसमेकर कहते हैं। रिकॉर्ड तोडऩे वाली दौड़ के फस्र्ट-हाफ में उन्होंने इसका इस्तेमाल किया जो गति स्थापित करने और हवा के अवरोध को रोकने के काम आता है। बाकी का आधा टाइम दोनों ने पेस लाइट्स की मदद से पूरा किया। दोनों ने दौड़ पूरी करने के दौरान एक निरंतरता दिखाई और कभी भी थके हुए या परेशान नहीं दिखे।

क्या यह आज की पीढ़ी के खेलों के नए तौर-तरीके हैं जो जल्द ही सामान्य नियमों में तब्दील हो सकते हैं? सवाल यह है कि इससे खेलों में प्राकृतिक क्षमता और खिलाड़ी की अदम्य इच्छाशक्ति क्या हाशिए पर पहुंच जाएगी? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल क्रिकेट, फुटबॉल, रनिंग, क्रॉस कंट्री और ऐसे ही दूसरे हाई इंटेसिटी खेलों में तकनीक के बढ़ते दखल ने एक नए युग की शुरुआत अवश्य कर दी है।