18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

इनोवेशन: वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा प्लास्टिक जो 740 डिग्री गर्मी पर भी नहीं पिघलता

इसे बायोमास जैसे पौधों, अंडों के छिलके, पक्षियों के पंख यहां तक टकीला उत्पादों से भी बनाया जा सकता है।

2 min read
Google source verification

जयपुर

image

Mohmad Imran

Oct 22, 2020

इनोवेशन: वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा प्लास्टिक जो ७४० डिग्री गर्मी पर भी नहीं पिघलता

इनोवेशन: वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा प्लास्टिक जो ७४० डिग्री गर्मी पर भी नहीं पिघलता

पेट्रोलियम उत्पादों से बने पारंपरिक प्लास्टिक में ऐसे गुण होते हैं जो बायोप्लास्टिक्स में नहीं होते। लेकिन अब वैज्ञानिक इस अंतर को भी खत्म करने की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल, जापान में वैज्ञानिकों ने बायोमास से बना एक ऐसा बायोप्लास्टिक विकसित किया है जो पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में बहुत अधिक गर्मी प्रतिरोध पैदा करता है यानी यह उच्च तापमान के संपर्क में आने पर भी पिघलता नहीं है। हैरानी की बात यह है कि वैज्ञानिकों ने इसे बिल्डिंग ब्लॉक्स जैसी परम्परागत सामग्रियों से बनाया है। बायोमास से बनी यह प्लास्टिक इसलिए पारंपरिक प्लास्टिक की तुलना में न केवल ज्यादा टिकाऊ और काम की है बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर में हरित क्रांति की ओर भी एक कदम है।

अंडे के छिलकों और पौधों से बना
आज उपयोग होने वाला प्लास्टिक ज्यादातर सिंथेटिक है जिसे कच्चे तेल, गैस और कोयले से बनाया जाता है। लेकिन जापान एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और टोक्यो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का बनाया यह बायो प्लास्टिक हानिकारक प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है जिसे बायोमास जैसे पौधों, अंडों के छिलके, पक्षियों के पंख यहां तक टकीला उत्पादों से भी बनाया जा सकता है।

घटेगी जींवाश्म ईंधन पर निर्भरता
इस विधि से बनने वाले प्लास्टिक के कारण हमारी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है। लेकिन इनके इस्मेमाल से पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता है। साथ ही ये आसानी से नष्ट भी हो जाते हैं। इससे लैंडफिल और समुद्रोकं में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आएगी। हालांकि इस बायो प्लास्टिक में अब भी लचीलापन और परंपरागत प्लास्टिक जैसे दमखम की कमी है। लेकिन यह सामान्य प्लास्टिक की तुलना में उच्च तापमान सहन कर सकता है जो इसका सबसे बड़ा गुण है। टीम ने क्राफ्ट पल्पिंग प्रक्रिया से लकड़ी को लुगदी में बदलकर बायोप्लास्टिक बनाने वाली यह सामग्री प्राप्त की है। यह एएचबीए और एबीए नाम के दो सुगंधित अणु हैं।

ऐसे बनाया नया बायोप्लास्टिक
इन अणुओं को अन्य रसायनों के साथ पुन: संयोजक सूक्ष्मजीवों के साथ जोड़ा गया और पॉलिमर में परिवर्तित किया गया। जो रासायनिक प्रक्रिया के बाद एक थर्मो-प्रतिरोधी फिल्म में बदल गया। जिसे बाद में एक हल्के कार्बनिक प्लास्टिक में बदल दिया गया। यह रिकॉर्ड पर अब तक सबसे ज्यादा उष्मा सहने वाला प्लास्टिक है, जो कि 740 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान सहन करता है। जापान के वैज्ञानिकों की टीम का मानना है कि इस तकनीक को प्लास्टिक के अन्य प्रकारों के साथ मिलाकर उनकी कार्यक्षमता और गुणवत्ता में भी सुधार किया जा सकता है।

यह नया मैक्रोमोलीक्युलर डिज़ाइन थर्मोरेजिस्टेंस को बढ़ाता है और हल्के पदार्थों के उत्पादन के लिए व्यापक रूप से अच्छी तरह से संसाधित और टिकाऊ प्लास्टिक के रूप में ढाला जा सकता है। यह शोध जर्नल एडवांस्ड सस्टेनेबल सिस्टम्स में प्रकाशित किया गया था।