
अटल बिहारी वाजपेयी ने जब रचा था ये अनोखा इतिहास, विरोधी भी बन गए उनके मुरीद
लखनऊ. अपने अलौकिक व्यवहार के कारण विरोधियों के भी चाहते रहे atal bihari vajpayee का स्वस्थ्य पिछले 24 घंटे से काफी गड़बड़ चल रहा है। वे लगभग 2 महीने से एम्स में भर्ती हैं। उनके व्यवहार कुशलता, राजनीतिक समझ के बारे में आज हर कोई जनता है। अपने भाषण को लेकर सबके चाहते बने अटल बिहारी वाजपेई का नदाज़ ही कुछ अलग है। इसी अंदाज़ के कारण उन्हें भाजपा को न चाहने वाले मुसलमान भाई में उन्हें अपने दिल में बसाते थे। उनके भाषण को सुनने के लिए हर कोई रूक जाता था या मानो ठहर जाता था, जब वे बोलते थे तो सदन में सन्नाटा छा जाता था और हर कोई उनकी आवाज को ध्यान से सुनता था। जब नेहरू जी प्रधानमंत्री थे उस समय पूर्व प्रधानमंत्री अटल जब सदन में बोलने के लिए खड़े होते थे तो विरोधी उनकी आवाज को दबा देते थे और उन्हें बोलने का मौका काफी कम ही मिलता था, उस समय नेहरू जी कहा करते थे कि इस व्यक्ति को बोलने का मौका दें यह व्यक्ति आग चलकर देश का प्रधानमंत्री बनेगा और ऐसा ही हुआ बाद में अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने। Atal Bihari Vajpayee पहली बार यूपी के बलरामपुर से सांसद चुने गए थे।
बलरामपुर से है गहरा नाता
वैसे तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का पूरे यूपी से गहरा नाता है लेकिन बलरामपुर से उनका कुछ अलग ही सम्बन्ध है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई पहली बार 1957 में यूपी के बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।1975 से 1977 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए, जब वे आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे। जेल से छूटने के बाद वाजपेयी ने जनसंघ को जनता पार्टी में विलय कर दिया। 1977 में देश में लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें जनता पार्टी की जीत हुई और मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी जिसमें अटल जी विदेश मंत्री बने। जनता पार्टी की सरकार 1979 में गिर गई, लेकिन उस समय तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल एक अनुभवी नेता और कुशल वक्ता के रूप में जाने जाने लगे थे।
लखनऊ से कई बार लोकसभा सांसद रहे
अटल बिहारी वाजपेई ने कानपुर से राजनीति शास्त्र में एमए किया और यहीं से उनके राजनीति की शुरुआत भी हुई। वे लखनऊ से कई बार लोकसभा सांसद रहे। 2005 में उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेयी हिन्दी एवं ब्रज भाषा के कवि थे और गांव के स्कूल में टीचर थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल को काव्य विरासत में मिली है। 1942 में आए राजनीति में अटल विहारी वाजपेयी 1942 में राजनीति में आए उस समय भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए थे। अटल विहारी वाजपेयी ने 1951 में आरएसएस के सहयोग से जनसंघ पार्टी बनाई, जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए।
भीष्म पितामह कहलाए अटल बिहारी वाजपेई
अटल बिहारी वाजपेई 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। 1996 में बीजेपी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वाजपेयी पहली बार पीएम बने। 1998 में दुबारा हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और फिर पीएम बन गए। यह सरकार तेरह महीने तक चली। 1999 में फिर लोकसभा का चुनाव हुआ और बीजेपी फिर से सत्ता में आई और वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस बार उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। राजनीति में अटल जैसा नेता विरले ही पैदा होता है। 2005 में वाजपेयी ने राजनीति से सन्यास ले लिया। जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल ने सन्यास लिया तो उसी समय मनमोहन सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी को वर्तमान राजनीति का भीष्म पितामह कहा था।
Updated on:
16 Aug 2018 12:16 pm
Published on:
16 Aug 2018 09:48 am
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